सौतेले पिता द्वारा यौन शोषण से बचाने में मां के नाकाम रहने पर पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने 9 साल की बच्ची को नानी के साथ रहने की इजाजत दी
Avanish Pathak
29 March 2023 8:36 PM IST
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा, यदि माता-पिता में से, किसी की कस्टडी से बच्चे की भलाई नहीं होती है तो इसे किसी तीसरे व्यक्ति को सौंपा जा सकता है। कोर्ट ने उक्त टिप्पणियों के साथ 9 साल की बच्ची को उसकी मां को सौंपने से इनकार कर दिया और उसकी कस्टडी नानी को सौंपने की अनुमति दी।
नाबालिग की कस्टडी के मुद्दे पर मां और उसकी नानी के बीच अनोखी कानूनी लड़ाई में जस्टिस मंजरी नेहरू कौल ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं कि बच्चे की मां उसकी प्राकृतिक अभिभावक है, लेकिन वह केवल कानूनी अधिकार के बल पर बेटी की कस्टडी नहीं मांग सकती है।
जस्टिस मंजरी नेहरू कौल ने याचिकाकर्ता-मां की ओर से दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणियां कीं। याचिका में एक वारंट अधिकारी की नियुक्ति की मांग की गई थी, ताकि उसकी नाबालिग बेटी, जिसे उसकी नानी ने अवैध रूप से अपने कब्जे में रखा है, उसका पता लगाया जा सके और उसे रिकवर किया जा सके।
मामले में मां का आरोप था कि उसकी नाबालिग बेटी को उसकी नानी ने अच्छी स्कूली शिक्षा और बेहतर देखभाल का झांसा देकर अवैध रूप से बंधक बना रखा है।
अदालत के समक्ष तर्क दिया गया कि प्राकृतिक संरक्षक होने के नाते उसके पास बेटी की कस्टडी का अधिमान्य अधिकार है। महिला ने आरोप लगाया कि उसकी अपनी मां ने उसके खिलाफ बच्चे को "विषाक्त और ब्रेनवॉश" किया है।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उसकी बेटी के जीवन और स्वतंत्रता के लिए गंभीर खतरा है और इसलिए उसकी हिरासत उसे दी जानी चाहिए।
बच्चे की नानी, जो कि एक सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी हैं, उन्होंने जवाब में कहा कि याचिकाकर्ता अपनी दूसरी शादी के बाद बेटी की ट्यूशन फीस और अन्य खर्चों का भुगतान नहीं कर पा रही थी, जिसके बाद उसने खुद नाबालिग बेटी की कस्टडी उसे दी थी।
उसने कहा कि जब नाबालिग उसके साथ रहने लगी, तो उसने उसे बताया कि उसके सौतेले पिता ने कई मौकों पर उसका यौन शोषण किया और यहां तक कि किसी को भी उसके खिलाफ खुलासा करने या शिकायत करने पर गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी।
उसने यह भी कहा कि जब नाबालिग ने इस बारे में अपनी मां को बताया, तो मां ने उसके पति के खिलाफ कोई कार्रवाई करने के बजाय उसकी नाबालिग बेटी को डांट-फटकार लगाई।
अदालत को यह भी बताया गया कि दादी ने नाबालिग के सौतेले पिता के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए पुलिस और राज्य मानवाधिकार आयोग से संपर्क किया था और परिणामस्वरूप, उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 376 और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 की धारा 6 के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी।
मामले के न्यायोचित फैसले पर पहुंचने के लिए, जस्टिस कौल ने नाबालिग बच्ची को चैंबर में बुलाया और बातचीत में बच्चे ने स्पष्ट रूप से कहा कि वह अपनी मां के साथ नहीं रहना चाहती है।
अदालत ने कहा,
"बच्ची को उसके सौतेले पिता द्वारा कथित यौन शोषण के कारण बहुत आघात लगा है। अपने सौतेले पिता द्वारा अपने साथ किए जा रहे यौन शोषण के बारे में बात करते हुए वह बहुत व्यथित और परेशान थी।"
पीठ द्वारा उससे पूछे गए एक प्रश्न पर कि वह अपनी मां से क्यों नहीं मिलना चाहती या उनके साथ नहीं रहना चाहती, बच्ची ने कहा कि जब उसने यौन शोषण के कथित मामलों को अपनी मां यानी याचिकाकर्ता के संज्ञान में लाया, तो उसने उसे फटकार लगाई। उसे इसके बारे में चुप रहने के लिए कहा।
अदालत ने कहा कि आगे यह पूछे जाने पर कि क्या वह अपनी मां से मिलना या बात करना चाहेगी, उन्होंने जोरदार ढंग से ना में जवाब दिया। अदालत ने यह भी कहा कि वह भी अपनी नानी के साथ रहकर बहुत खुश और सहज लग रही थी।
उक्त तथ्यों मद्देनजर, पीठ ने कहा कि नाबालिग बच्चे की कस्टडी से संबंधित मामलों में, सर्वोपरि विचार केवल बच्चे का कल्याण होना चाहिए।
अदालत ने कहा कि नानी कथित बंदी की अच्छी तरह से देखभाल कर रही है। कोर्ट ने इस बात पर भी ध्यान दिया कि याचिकाकर्ता के पति के खिलाफ न केवल एफआईआर दर्ज की गई है बल्कि उसे गिरफ्तार भी किया गया है।
याचिकाकर्ता को कथित बंदी की कस्टडी देना उचित नहीं मानते हुए, अदालत ने कहा कि ऐसा करना बच्चे के शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक स्वास्थ्य के लिए अनुकूल नहीं होगा।
केस टाइटल: एचएन बनाम पंजाब राज्य और अन्य