कोर्ट फीस एक्ट की धारा 7(i) | मनी सूट में कोर्ट फीस दावा की गई राशि के अनुसार देय है: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

Shahadat

13 Aug 2022 11:47 AM GMT

  • कोर्ट फीस एक्ट की धारा 7(i) | मनी सूट में कोर्ट फीस दावा की गई राशि के अनुसार देय है: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि कोर्ट फीस एक्ट, 1870 की धारा 7 (i) के अनुसार, रुपए के लिए किए गए वाद में दावा की गई राशि के अनुसार कोर्ट फीस देय है। उक्त वाद में क्षतिपूर्ति या भरण पोषण की बकाया राशि, या समय-समय पर देय अन्य राशियों के वाद शामिल हैं।

    धन के लिए वाद में क्षतिपूर्ति या भरण पोषण की बकाया राशि, वार्षिकी या समय-समय पर देय अन्य राशियों के लिए वाद शामिल है, वहां कोर्ट फीस एक्ट की धारा 7 (i) में यह बताया गया कि देय कोर्ट फीस की राशि की गणना कैसे की जानी चाहिए। इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि जब भी मुकदमा धन के लिए होता है तो दावा की गई राशि के अनुसार कोर्ट फीस देय होती है।

    जस्टिस अर्चना पुरी की पीठ ने वर्तमान मामले के तथ्यों में कहा कि चूंकि यह स्पष्ट है कि मुकदमा निर्दिष्ट राशि की वसूली के लिए है, इसलिए दावा की गई राशि के अनुसार कोर्ट फीस देय होगी।

    अदालत ऐसे मामले से निपट रही थी जहां अनिवार्य निषेधाज्ञा के साथ घोषणा के लिए मुकदमे में याचिकाकर्ता/वादी खराब निर्माण के काम की आड़ में 15,00,000/- रुपये की वसूली की मांग कर रहा था, जो प्रतिवादियों ने वादी का खर्च किया है।

    कोर्ट ने कहा कि कोर्ट फीस की राशि कोर्ट फीस एक्ट, 1870 द्वारा विनियमित होती है। इसमें उक्त एक्ट की धारा 7 सूट में देय फीस की राशि की गणना करने की प्रक्रिया निर्धारित करती है। एक्ट की धारा 7 के अनुसार पैसे के लिए सूट में दावा की गई राशि के अनुसार कोर्ट फीस देय है।

    अदालत ने कहा कि कोर्ट को सीपीसी के आदेश VII नियम 11 के अनुसार, निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए वादी की सामग्री की सावधानीपूर्वक जांच करने का अधिकार है।

    वर्तमान मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के संबंध के बारे में अदालत ने कहा कि भले ही वादी ने घोषणा और अनिवार्य निषेधाज्ञा के लिए मुकदमा दायर किया हो, लेकिन वाद को ध्यान से पढ़ने से यह स्पष्ट हो जाता है कि यह वसूली के लिए किया गया वाद है।

    इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि यह 15,00,000/- रुपये की निर्दिष्ट राशि है, जो याचिकाकर्ता/वादी द्वारा मांगी गई है। यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता/वादी 15,00,000/- रुपये की राशि की वसूली की मांग कर रहा है। हालांकि, यह केवल प्रारूपण के कारण है। उन्होंने घोषणा और अनिवार्य निषेधाज्ञा के लिए मुकदमा दायर किया है। लेकिन इस मुकदमें की आड़ में यह वास्तव में वसूली के लिए दायर मुकदमा है। इस प्रकार, वादपत्र की सामग्री को पढ़ने से यह स्थापित होता है कि वाद 15,00,000/- की वसूली के लिए है। हालांकि अनिवार्य निषेधाज्ञा के परिणामी राहत के साथ चतुराई से घोषणात्मक सूट के रूप में पेश किया गया है।

    अदालत ने 'पंजाब राज्य और अन्य बनाम देव ब्रत शर्मा' मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें यह अभिनिर्धारित किया गया कि क्षतिपूर्ति के रूप में वसूली के वाद में दावा की गई क्षति की राशि पर यथामूल्य कोर्ट फीस देय होगी।

    मामले को देखते हुए अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि मुकदमा धन के लिए है, इसलिए कोर्ट फीस एक्ट, 1870 की धारा 7 (i) के अनुसार, दावा की गई राशि के अनुसार, कोर्ट फीस देय है।

    इस प्रकार वर्तमान पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी गई।

    केस टाइटल : सुरेंद्र कुमार @ सलेंदर कुमार बनाम आबिद खान और अन्य

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