COVID-19 लॉकडाउन उल्लंघन: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने विदेश से लौटे व्यक्ति को आईपीसी की धारा 269 के तहत इंफेक्शन फैलाने के आरोप से बरी किया

Shahadat

16 Aug 2022 6:44 AM GMT

  • COVID-19 लॉकडाउन उल्लंघन: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने विदेश से लौटे व्यक्ति को आईपीसी की धारा 269 के तहत इंफेक्शन फैलाने के आरोप से बरी किया

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में विदेश से लौटे व्यक्ति को भारतीय दंड संहिता, 1860 (आईपीसी) की धारा 269 के तहत इंफेक्शन फैलाने के आरोप से बरी किया। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने व्यक्ति पर आईपीसी की धारा 188, 269 और 270 के तहत दर्ज एफआईआर भी रद्द कर दी।

    याचिकाकर्ता को पुलिस ने देश में COVID-19 लॉकडाउन की अवधि के दौरान चंडीगढ़ प्रशासन को कनाडा से आने के बारे में सूचित नहीं करने पर गिरफ्तार कर किया था। पुलिस ने उसके खिलाफ एफआईआर की थी।

    जस्टिस विनोद एस. भारद्वाज की पीठ ने कहा कि प्रथम दृष्टया ऐसा कोई सबूत उपलब्ध नहीं है कि याचिकाकर्ता जीवन के लिए खतरनाक किसी संक्रामक बीमारी से पीड़ित है या उसके फैलने का कारण बना है।

    अदालत एफआईआर रद्द करने की मांग के लिए दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 482 के तहत दायर याचिका पर विचार कर रही थी।

    पक्षकारों के प्रतिद्वंदी प्रस्तुतीकरण पर विचार करने के बाद अदालत ने माना कि मामला दर्ज होने के बावजूद जांच एजेंसी द्वारा याचिकाकर्ता का कोई मेडिकल टेस्ट नहीं किया गया। फिर रिकॉर्ड पर कोई सबूत उपलब्ध नहीं है, जिससे यह माना जा सके कि वह किसी संक्रामक रोग से पीड़ित था या जीवन के लिए खतरनाक किसी संक्रामक रोग को फैलाने का कारण बना।

    हालांकि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि मामला दर्ज होने के बावजूद जांच एजेंसी द्वारा याचिकाकर्ता की मेडिकल जांच नहीं की गई। रिकॉर्ड पर ऐसा कोई सबूत उपलब्ध नहीं है जिसके आधार पर प्रथम दृष्टया यह माना जा सके कि याचिकाकर्ता किसी संक्रामक रोग से पीड़ित था या कि उसने अपने कृत्य से जीवन के लिए खतरनाक संक्रामक रोग फैलाया।

    यह एचएलए एसएचडब्ल्यूई बनाम महाराष्ट्र राज्य को संदर्भित करता है, जहां यह माना गया कि जिस व्यक्ति पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 269 और 270 के तहत मुकदमा चलाने की मांग की गई है, उस पर यह आरोप होना चाहिए कि उसने "विवेक" के साथ किसी भी बीमारी का संक्रमण फैलने का कृत्य किया है।

    अदालत ने कहा कि इस मामले में अभियोजन पक्ष के पास यह पता लगाने का कोई आधार नहीं है कि याचिकाकर्ता किसी संचारी/संक्रामक बीमारी से पीड़ित है या नहीं।

    कोर्ट ने आगे कहा कि वह उस सामग्री से बेखबर नहीं रह सकता है जो अंतिम रिपोर्ट का हिस्सा है।

    नतीजतन, अदालत ने वर्तमान याचिका स्वीकार कर ली और भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 188, 269 और 270 के तहत दर्ज एफआईआर रद्द कर दी।

    केस टाइटल: सिदक सिंह संधू बनाम यू.टी. चंडीगढ़ और अन्य

    ऑर्डर डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



    Next Story