कर्तव्य निर्वहन न करने पर बैंक कर्मचारियों की बर्खास्तगी के अनुपात में सजा हो: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

Shahadat

30 Sep 2022 5:34 AM GMT

  • कर्तव्य निर्वहन न करने पर बैंक कर्मचारियों की बर्खास्तगी के अनुपात में सजा हो: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि बैंक कर्मचारियों को ईमानदारी और सत्यनिष्ठा के उच्च मानकों का पालन करने की आवश्यकता होती है और यदि ऐसा कोई कर्मचारी परिश्रम के साथ अपने कर्तव्य का निर्वहन करने में विफलता का दोषी पाया जाता है तो उसे विफलता के अनुपात में सजा के तौर पर सेवा से बर्खास्त किया जा सकता है।

    अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक, यूनाइटेड कमर्शियल बैंक बनाम पी.सी. कक्कड़ (2003), सुप्रीम कोर्ट ने कहा,

    "बैंक के प्रत्येक अधिकारी/कर्मचारी को बैंक के हितों की रक्षा के लिए हर संभव कदम उठाने और पूरी ईमानदारी, भक्ति और परिश्रम के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने की आवश्यकता है। अच्छा आचरण और अनुशासन बैंक के प्रत्येक अधिकारी/कर्मचारी के कामकाज से अविभाज्य है।"

    मामले के संक्षिप्त तथ्य

    याचिकाकर्ता ने यह रिट याचिका सेवा से बर्खास्तगी के आदेश और याचिकाकर्ता की विभागीय अपील को खारिज करने वाले अपीलीय आदेश को चुनौती देते हुए दायर की।

    याचिकाकर्ता 1987 में आंध्रा बैंक की सेवाओं में शामिल हुए और 2002 में उप प्रबंधक (ग्रामीण विकास) के रूप में पदोन्नत हुए।

    उक्त बैंक की सेवा करते हुए याचिकाकर्ता को लोन प्रस्तावों के मूल्यांकन में गंभीर अनियमितताओं के आरोपों वाले आरोप पत्र के साथ जारी किया गया।

    प्रतिवादी ने प्रस्तुत किया कि ग्रामीण विकास अधिकारी के रूप में याचिकाकर्ता को लोन को संसाधित करने से पहले पूर्व-स्वीकृति क्षेत्र का दौरा करना है, जिसे वह निर्वहन करने में पूरी तरह विफल रहा। अनुशासनात्मक प्राधिकरण ने स्पष्ट रूप से निष्कर्ष दर्ज किया कि याचिकाकर्ता ने अल्पकालिक कृषि लोन के लिए आवेदनों का मूल्यांकन किया और उधारकर्ताओं के अस्तित्व भूमि के स्वामित्व, खेती के तहत भूमि की सीमा और उगाई जा रही फसलों की पुष्टि करने के लिए बिना क्षेत्र का दौरा किए किसानों को लोन स्वीकृत करने की सिफारिश की।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उन्होंने क्षेत्र का दौरा किया लेकिन अनजाने में आवेदनों में यात्रा की तारीख दर्ज नहीं की। लेकिन अनुशासनात्मक प्राधिकारी ने दर्ज किया कि याचिकाकर्ता ने प्रसंस्करण अधिकारी होने के कारण मंडल राजस्व अभिलेखों में भूमि की सीमा और स्वामित्व के विवरणों की जांच नहीं की। पूछताछ करने पर पता चला कि कर्जदार का पट्टादार पासबुक भी फर्जी है।

    शामिल मुद्दे

    1. क्या याचिकाकर्ता को आरोपों का दोषी ठहराते हुए और सजा देने के आदेश में इस न्यायालय के हस्तक्षेप की आवश्यकता है?

    2. क्या की गई बर्खास्तगी की सजा सिद्ध आरोपों से अनुपातहीन है?

    न्यायालय की खोज

    पहले मुद्दे पर अदालत ने देखा कि याचिकाकर्ता विभागीय जांच या प्राकृतिक न्याय सिद्धांतों के उल्लंघन में किसी भी अवैधता को इंगित नहीं कर सका। इस प्रकार, रिट अधिकार क्षेत्र के प्रयोग में हस्तक्षेप नहीं करने का आह्वान किया।

    जस्टिस रवि नाथ तिलहरी का दूसरे मुद्दे के संबंध में विचार था कि बैंकिंग के मामलों में व्यक्ति पर जिम्मेदारी उच्चतर होती है और कर्तव्य के प्रति समर्पण सबसे अधिक होता है।

    न्यायालय ने अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक, यूनाइटेड कमर्शियल बैंक (सुप्रा), केनरा बैंक बनाम वी.के. अवस्थी (2005) के मामले का संदर्भ देते हुए कहा:

    "एक बार जब यह दर्ज हो जाता है कि याचिकाकर्ता बैंक के कर्मचारी होने के नाते और लोन के अनुदान के मामले में प्रसंस्करण में अपने कर्तव्य का निर्वहन करने में विफल रहा है, जो फर्जी पट्टादारों के नाम पर पाया गया, साबित होने के निष्कर्ष पर विचार करते हुए अनुशासनात्मक और अपीलीय प्राधिकारी द्वारा समवर्ती रूप से दर्ज अपराध, बर्खास्तगी की सजा को साबित आरोपों से अधिक नहीं कहा जा सकता।"

    उपरोक्त कारणों से न्यायालय ने रिट याचिका खारिज कर दी।

    केस टाइटल: हरिनारायण सीट बनाम आंध्रा बैंक

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