"बकाया का भुगतान सरकार का सर्वाजनिक कर्तव्य": मद्रास हाईकोर्ट ने सरकार को सहकारी समितियों के कर्मचारियों को ग्रेच्युटी और अन्य लाभों का भुगतान करने का निर्देश दिया
Avanish Pathak
7 Jun 2022 11:33 AM IST
मद्रास हाईकोर्ट हाल ही में सहकारी समितियों के कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए मुख्य सचिव, सचिव (सहकारिता), और सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार, पुडुचेरी सरकार को अनपैड सैलरी, अर्न्ड लीव एनकैशमैंट, ईपीएफ अंशदान, ईएसआई लाभ, और उनकी संबंधित सेवाओं के लिए उन्हें देय अन्य स्वीकार्य भुगतानों के संवितरण के आदेश पारित करने का निर्देश दिया।
जस्टिस एमएस रमेश ने आदेश की कॉपी मिलने के तीन महीने के भीतर बकाया भुगतान करने का निर्देश दिया।
याचिकाकर्ता तीन सहकारी समितियों के कर्मचारी थे- ए) पुडुचेरी पब्लिक सर्वेंट्स कोऑपरेटिव स्टोर पी -456; बी) अरियानकुप्पम पब्लिक सर्वेंट्स कोऑपरेटिव स्टोर्स पी -455; और सी) भारती को-ऑपरेटिव कंज्यूमर स्टोर्स लिमिटेड, पी-564 और ये सभी सेल्समैन/सहायक क्लर्क/पर्यवेक्षक आदि के रूप में कार्यरत थे। उनकी सेवा की अवधि 20-25 वर्ष के बीच थी।
सोसायटी के बाय-लॉज़ के अनुसार, जिस कर्मचारी ने स्टोर में पांच साल से अधिक निरंतर सेवा की थी, वह ग्रेच्युटी, अर्न्ड लीव एनकैशमेंट, ईपीएफ योगदान, ईएसआई लाभ और अन्य स्वीकार्य लाभों का पात्र था। चूंकि स्टोर घाटे में चल रहे थे, मार्च और अप्रैल 2007 तक याचिकाकर्ताओं को देय वेतन रोक दिया गया था और अंततः 22 जनवरी 2013 को सरकार ने इन सभी स्टोरों को बंद करने का आदेश दिया था।
याचिकाकर्ताओं सहित कर्मचारियों को अन्य स्टोरों और सोसायटियों में समायोजित करने का प्रयास किया गया लेकिन वह व्यर्थ रहा। वर्तमान याचिका उनकी अनपैड सैलरी, ग्रेच्युटी, अर्न्ड लीव एनकैशमेंट, ईपीएफ योगदान, ईएसआई लाभ और ब्याज के साथ अन्य स्वीकार्य लाभों के संवितरण के लिए दायर की गई थी।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि चूंकि ये स्टोर पूरी तरह से सरकार के स्वामित्व में थे, और चूंकि सरकार याचिकाकर्ताओं को पुनर्वास या वैकल्पिक रोजगार प्रदान नहीं कर सकती थी, इसलिए वह बकाया का निपटान करने के लिए बाध्य थी। ग्रेच्युटी के वैधानिक बकाया को टाला या टाला नहीं जा सकता।
दूसरी ओर प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि के मारप्पन बनाम सहकारी समितियों के उप पंजीयक और अन्य मामले में निर्णय के मद्देनजर याचिका विचारणीय नहीं थी, जिसमें मद्रास हाईकोर्ट की पांच जजों की खंडपीठ ने कहा था कि एक सोसायटी को एक राज्य के रूप में चित्रित नहीं किया जा सकता है और इसके उप-नियमों द्वारा शासित कर्मचारियों की सेवा शर्तों को रिट याचिका के माध्यम से लागू नहीं किया जा सकता है।
अदालत हालांकि इस नजरिए से सहमत नहीं थी। और कहा कि प्रतिवादियों द्वारा उद्धृत निर्णय में भी यह माना गया था कि भले ही संविधान के अनुच्छेद 12 के अर्थ में सोसयटी को राज्य नहीं माना जा सकता है, फिर भी रिट सुनवाई योग्य हो सकती है। वर्तमान मामले में, चूंकि सरकार पर एक सार्वजनिक कर्तव्य है, इसलिए याचिका विचारणीय है।
अदालत ने परिमल चंद्र राहा और अन्य बनाम भारतीय जीवन बीमा निगम और अन्य (1995) और झारखंड राज्य और एक अन्य बनाम हरिहर यादव और अन्य (2014) के निर्णयों पर भरोसा किया। अदालत ने माना कि पुडुचेरी सरकार पर याचिकाकर्ताओं की बकाया राशि का भुगतान करने का सार्वजनिक कर्तव्य है।
केस टाइटल: के रविचंद्रन और अन्य बनाम मुख्य सचिव और अन्य
केस नंबर: WP No. 12505 of 2015 और अन्य
सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (Mad) 240