भागकर शादी करने वाले/इंटर-फेथ जोड़ों का संरक्षणः पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कार्यकारी स्तर पर कदम उठाने का सुझाव दिया

LiveLaw News Network

11 March 2021 10:30 AM GMT

  • भागकर शादी करने वाले/इंटर-फेथ जोड़ों का संरक्षणः पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने  कार्यकारी स्तर पर कदम उठाने का सुझाव दिया

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने बुधवार को घर से भागने वाले और इंटर-फेथ जोड़ों की तरफ से बड़ी संख्या में दायर की जा रही संरक्षण याचिकाओं पर चिंता व्यक्त की।

    न्यायमूर्ति अवनीश झिंगन की एकल पीठ ने कहा कि प्रतिदिन दायर किए जा रहे इस तरह के काफी सारे मामलों के बीच खतरे के वास्तविक मामलों की अक्सर अनदेखी हो जाती है। इसलिए कोर्ट ने कई कदमों का सुझाव दिया है जो ऐसे जोड़ों के जीवन को सुरक्षा प्रदान करने के लिए कार्यकारी को जिम्मेदार बनाते हैं ताकि कोर्ट पर बोझ कम हो सके।

    जज ने इसी बीच जो सुझाव दिए हैं,वो इस प्रकार हैंः-

    -केंद्र शासित प्रदेश,चंडीगढ़ के साथ-साथ पंजाब और हरियाणा के प्रत्येक जिले में सेफ हाउस उपलब्ध कराए जाने चाहिए।

    -एक वेबसाइट या एक ऑन-लाइन मॉड्यूल को ऐसे जोड़ों के लिए बनाया जाना चाहिए ताकि वह फिजिकल तौर पर पेश हुए बिना ही अपनी शिकायतों को दायर कर सकें।

    -पीड़ित व्यक्तियों द्वारा या किसी के माध्यम से ऐसे अभ्यावेदन दाखिल करने के लिए तहसील स्तर पर 24x7 हेल्प डेस्क उपलब्ध कराना।

    -पुलिस विभाग में एक मौजूदा सेल को प्रतिनियुक्त किया जा सकता है या एक नया सेल बनाया जा सकता है जो किसी भी स्थिति में एक समय-सीमा के तहत ऐसे प्रतिनिधित्व पर कार्रवाई कर सके,किसी भी मामले में 48 घंटे से ज्यादा समय न लिया जाए।

    -अधिकारियों द्वारा यह भी सुनिश्चित किया जा सकता है कि यदि प्रतिनिधित्व पर विचार की अवधि के दौरान जोड़ों द्वारा अनुरोध किया जाता है, तो उन्हें सुरक्षित घर/सेफ हाउस में आश्रय प्रदान किया जाता है।

    -कानूनी सेवा प्राधिकरण स्थानीय स्तर पर टेलीफोन सेवा और इंटरनेट कनेक्टिविटी के साथ ऐसे जोड़ों के लिए 24x7 हेल्प डेस्क स्थापित कर सकता है।

    राज्य के वकीलों ने उपरोक्त सुझावों पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी। जिसके बाद ने कोर्ट ने दोनों राज्यों के एडवोकेट जनरलों, केंद्र शासित प्रदेश, चंडीगढ़ के लिए वरिष्ठ स्थायी वकील और कानूनी सेवा प्राधिकरणों के सदस्य सचिवों को इस मुद्दे से निपटने के लिए संयुक्त प्रयास करने का निर्देश दिया है।

    यह भी स्पष्ट किया,

    ''इस तरह की एक्सरसाइज का पूरा प्रयास यह है कि भारत के संविधान के आर्टिकल 21 के तहत मिली जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक व्यावहारिक तंत्र बनाया जा सके। सिर्फ असाधारण मामलों में ही अधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए जोड़ों को कोर्ट आने की परेशानी उठानी पड़े।''

    कोर्ट ने घर से भागने वाले एक कपल की तरफ से द्वारा दायर आपराधिक रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए अवलोकन किया है। इस कपल ने आशंका जताई है कि उनके परिवारवाले उनको मार सकते हैं।

    कोर्ट का निष्कर्ष

    एकल पीठ ने कहा कि अपने माता-पिता और रिश्तेदारों की इच्छा के खिलाफ शादी करने वाले बहुत सारे कपल की तरफ से इस तरह की याचिकाएं दायर की जा रही हैं।

    कोर्ट ने कहा कि,''यह अनुभव किया जा रहा है कि पिछले कुछ समय से इस तरह की याचिकाएं बहुत ज्यादा दायर हो रही हैं। इन याचिकाओं में से अधिकांश से स्पष्ट होता है कि जिस दिन विवाह किया जाता है, उसी दिन एक प्रतिनिधित्व दिया जाता है और कुछ मामलों में रिट याचिका का मसौदा भी उसी दिन तैयार किया जाता है या कोर्ट में रिट याचिका दायर कर दी जाती है। अधिकांश मामलों में, प्रतिनिधित्व प्रस्तुत करने का कोई सबूत भी नहीं होता है।''

    कोर्ट ने आगे कहा कि इस तरह की प्रकृति की याचिकाओं का निपटारा या तो बिना विवाह की वैधता पर टिप्पणी किए बिना ही कर दिया जाता है या फिर आधिकारिक प्रतिवादियों को प्रतिनिधित्व पर विचार करने को निर्देश दे दिया जाता है या आधिकारिक प्रतिवादियों को नोटिस आॅफ मोशन जारी कर दिया जाता है।

    ऐसे मामलों से निपटने के लिए एक उचित तंत्र बनाने पर विचार करते हुए पीठ ने कहा कि,

    ''बहुत सारे ऐसे मामलों में जब पुलिस ने सुनवाई की अगली तारीख आने से पहले याचिकाकर्ताओं के बयान दर्ज किए तो बड़े स्तर पर यह पाया गया कि कोई खतरा मौजूद नहीं है। इनका परिणाम यह होता है कि जिन मामलों में वास्तविक खतरा होता है वह नियमित रूप से दायर इन याचिकाओं के साथ मिक्स हो जाती हैं।''

    न्यायालय ने इस तथ्य पर भी नाराजगी व्यक्त की है कि हाईकोर्ट ने दोनों राज्यों के सभी जिला और सत्र न्यायाधीशों (आशा व अन्य बनाम हरियाणा राज्य व अन्य मामले में 31 मार्च 2010 के आदेश के तहत) को निर्देश जारी किए थे कि इस तरह के कपल को अंतरिम सुरक्षा प्रदान की जाए,परंतु उनका अनुपालन नहीं किया जा रहा है।

    खंडपीठ ने कहा कि इसके परिणामस्वरूप,जिन कपल को पहले ही खतरा होता है उनको रिट याचिका दायर करने की औपचारिकताएं पूरी करने के लिए इस अदालत में आना पड़ता है,जो उन्हें और खतरे में डालता है।

    दलीलें

    पंजाब राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण के अतिरिक्त सचिव डॉ मनदीप मित्तल ने हाईकोर्ट को को सूचित किया कि पंजाब में महिला पीड़ितों के लिए प्रत्येक जिले में एक-एक स्टॉप सेंटर (सखी सेंटर) हैं, जो स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग, पंजाब द्वारा उपायुक्त की निगरानी में चलाया जा रहा है।

    न्यायालय ने सुझाव दिया कि यह उचित होगा कि इन केंद्रों के काम का दायरा बढ़ाया जाए और ऐसे जोड़ों के मुद्दों से निपटने के लिए इनकी सेवाओं का उपयोग किया जाए।

    इस मामले में अब अगली सुनवाई 22 मार्च, 2021 को होगी।

    केस का शीर्षकः लवप्रीत कौर व अन्य बनाम पंजाब राज्य व अन्य

    ऑर्डर डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



    Next Story