पैगंबर पर टिप्पणी का मामला| कलकत्ता हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को जमीनी स्थिति का आकलन करने, स्थिति नियंत्रण से बाहर होने से पहले केंद्रीय बलों को बुलाने का निर्देश दिया

Avanish Pathak

16 Jun 2022 8:50 AM GMT

  • कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट 

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने पैंगबर पर टिप्पणी के बाद उभरे विवाद में पश्‍चिम बंगाल राज्य के अधिकारियों को निर्देश दिया है कि उन्हें जमीनी स्थिति का आकलन करना चाहिए और किसी भी जान-माल के नुकसान से पहले जरूरत पड़ने पर केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को तैनात करने के लिए कदम उठाने चाहिए।

    चीफ जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव और जस्टिस राजर्षि भारद्वाज की पीठ भाजपा के पूर्व प्रवक्ताओं नुपुर शर्मा और नवीन जिंदल द्वारा पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ की गई आपत्तिजनक टिप्पणी के खिलाफ चल रहे विरोध के बीच पश्चिम बंगाल में केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की तैनाती की मांग वाली जनहित याचिका (पीआईएल) के एक बैच पर फैसला सुना रही थी।

    याचिका में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) से भी हिंसा की घटनाओं की इस आधार पर जांच कराने की मांग की गई थी कि इस तरह के विरोध प्रदर्शन कथित तौर पर 'पूर्व नियोजित' प्रकृति के थे।

    न्यायालय ने पहले रेखांकित किया था कि राज्य के अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई अप्रिय घटना न हो और आगे निर्देश दिया कि राज्य को स्थिति को नियंत्रित करने में विफल होने पर केंद्रीय बलों से मदद लेनी चाहिए।

    बुधवार को प्रतिद्वंद्वी प्रस्तुतियों के अवलोकन के बाद न्यायालय ने आदेश दिया, "जो आशंका व्यक्त की गई है, उसके संबंध में, हम राज्य के अधिकारियों को जमीनी स्थिति का पहले से आकलन करने का निर्देश देते हैं और जरूरत पड़ने पर स्थिति अनियंत्रित होने से पहले केंद्रीय बलों को पहले के निर्देशों के अनुसार बुलाने के लिए कदम उठाना चाहिए।"

    कोर्ट ने आगे कहा कि राज्य के अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने के लिए हर संभव निवारक कदम उठाने चाहिए कि ऐसी कोई घटना न हो। राज्य के अधिकारियों को वीडियो फुटेज तेजी से एकत्र करने और पश्चिम बंगाल मेंटेंनेस ऑफ पब्‍लिक ऑर्डर एक्ट, 1972 की धारा 15ए, 15बी और 15सी के तहत बदमाशों के खिलाफ कार्रवाई करने का भी निर्देश दिया गया है।

    बुधवार को कार्यवाही के दौरान, मुख्य न्यायाधीश ने सभी वकीलों को संबोधित करते हुए मौखिक रूप से अवलोकन करके सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने की आवश्यकता पर बल दिया,

    "आप सभी बार के नेता हैं, जिन पार्टियों का आप प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, उन्हें कम से कम यह बताएं कि उन्हें सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखना चाहिए। उन्हें ऐसी अप्रिय घटनाओं से बचना चाहिए, कम से कम आप इसे अपनी पार्टियों, मुव‌क्किलों को बता सकते हैं कि आप किसका प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, अन्य मुद्दों पर हम गौर करेंगे। हम इस पर विचार कर रहे हैं।"

    याचिकाकर्ताओं ने अदालत को अवगत कराया कि शांतिपूर्ण सभा के नाम पर भड़काऊ नारे लगाए जा रहे हैं और एफआईआर दर्ज करके निर्दोष लोगों को फंसाया जा रहा है। इसके अलावा, यह भी प्रस्तुत किया गया था कि 'सप्ताह के किसी विशेष दिन' पर फिर से संगठित हिंसा हो सकती है और ऐसी घटना को नियंत्रित करने के लिए केंद्रीय बलों को बुलाया जाना चाहिए और राज्य के अधिकारियों को किसी भी अप्रिय घटना के होने की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए।

    राज्य सरकार की ओर से पेश महाधिवक्ता एसएन मुखर्जी ने अदालत को सूचित किया कि राज्य के अधिकारी उनके खिलाफ कार्रवाई करने के उद्देश्य से बदमाशों की पहचान करने के लिए वीडियो फुटेज एकत्र कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा है कि पिछले 48 घंटों में कोई अप्रिय घटना नहीं हुई है। उन्होंने इन रेफरेंस: डिस्ट्रक्शन ऑफ पब्लिक एंड प्राइवेट प्रॉपर्टीज बनाम एपी सरकार में सुप्रीम कोर्ट फैसले पर भरोसा रखा था, जिसमें सार्वजनिक और निजी संपत्तियों को नुकसान के मुआवजे के अनुदान के लिए दिशानिर्देश तैयार किए गए हैं।

    महाधिवक्ता ने पश्चिम बंगाल मेंटेनेंस ऑफ पब्लिक ऑर्डर एक्ट, 1972 की धारा 15ए, 15बी और 15सी का भी हवाला दिया, जैसा कि पश्चिम बंगाल मेंटेनेंस ऑफ पब्लिक ऑर्डर (एमेंटमेंट) एक्ट, 2017 द्वारा संशोधित किया गया है, ताकि राज्य सरकार हिंसा के अपराधियों के खिलाफ सामूहिक जुर्माना लगाने के की कार्रवाई कर सके।

    राज्य सरकार से आगे की स्थिति रिपोर्ट की मांग करते हुए, अदालत ने मामले को आगे की सुनवाई के लिए 27 जून तक के लिए स्थगित कर दिया।

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