'तलाक के बाद शादी' का वादा अपने आप में धोखा नहीं: कलकत्ता हाईकोर्ट ने आईपीसी की धारा 417 के तहत मामले में दी गई सजा रद्द की
Shahadat
28 April 2023 10:09 AM IST
कलकत्ता हाईकोर्ट ने हाल ही में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 417 के तहत उस व्यक्ति को दोषी ठहराने के ट्रायल कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया, जिस पर अपनी पिछली शादी के खत्म होने के बाद उससे शादी करने के वादे पर महिला को उसके साथ यौन संबंध बनाने के लिए प्रेरित करने का आरोप लगाया गया।
जस्टिस सिद्धार्थ रॉय चौधरी की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा,
"इस प्रकार यह सुरक्षित रूप से कहा जा सकता है कि आरोपी व्यक्ति द्वारा किया गया विवाह का वादा साधारण वादा नहीं था- यह उसकी शादी के विघटन पर आकस्मिक था, जो निर्वाह था। पीड़िता स्थिति से वाकिफ थी और उसने आरोपी के साथ रहने का फैसला किया। अभियुक्त व्यक्ति के पास विवाह को भंग करने की क्षमता नहीं थी, या तो उसकी पत्नी को सहमत होना होगा या उसे तलाक के लिए डिक्री के लिए मामला बनाना होगा। इसलिए इस तरह के रिश्ते की शुरुआत से ही अनिश्चितता का तत्व मौजूद था। पीड़ित ने जानबूझकर अनिश्चितता के ऐसे जोखिम को स्वीकार किया। 'बदला हुआ आदमी' तलाक नहीं ले सकता। इसलिए तलाक के बाद शादी का वादा अपने आप में धोखा नहीं है।”
अपीलकर्ता शादीशुदा व्यक्ति है, जिसकी एक बेटी है, उसको पहले 10,00,000/- रुपये का जुर्माना भरने का आदेश दिया गया, जिसमें से 8,00,000/- रुपये पीड़ित को मुआवजे के रूप में का भुगतान किया जाना था। 2,00,000/- उसकी सजा के हिस्से के रूप में राज्य के खजाने में जमा किया जाना है।
अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार, पीड़िता अपीलकर्ता के साथ रहने के लिए सहमत हो गई, क्योंकि उसके द्वारा अपनी पहली शादी के विघटन के बाद उससे शादी करने का वादा किया गया। बाद में अपीलकर्ता ने तलाक लेने में असमर्थता व्यक्त की, क्योंकि इससे उसकी बेटी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा और उसकी पारिवारिक प्रतिष्ठा को नुकसान होगा। पीड़िता ने अपीलकर्ता के खिलाफ आईपीसी की धारा 417 और धारा 376 के तहत एफआईआर दर्ज कराई।
दोषसिद्धि के खिलाफ हाईकोर्ट के समक्ष अपील में अपीलकर्ता के वकील बिबासवान भट्टाचार्य ने प्रस्तुत किया कि उन्होंने अपने व्यक्तिगत जीवन, अपनी शादी और अपनी बेटी के बारे में किसी भी तथ्य को नहीं छुपाया। यह आगे प्रस्तुत किया गया कि पीड़िता वयस्क महिला होने के नाते जानबूझकर उसके साथ रहने का निर्णय अपने माता-पिता की जानकारी में लेती है।
यह तर्क दिया गया कि यह मानने का कोई कारण नहीं कि पीड़िता ने तथ्य की किसी गलत धारणा के तहत अपीलकर्ता के साथ रहने का निर्णय लिया। इसलिए आईपीसी की धारा 415 के अर्थ में अपराध का कोई घटक नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि आईपीसी की धारा 415 के प्रावधान को लागू करने के लिए अभियोजन पक्ष यह साबित करने के लिए बाध्य है कि आरोपी व्यक्ति ने पीड़िता को उसके साथ इस तरह के किसी भी यौन संबंध में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।
अदालत ने कहा,
"पीडब्लू 1 जब कहा गया कि आरोपी व्यक्ति ने अपने दुखी विवाहित जीवन और अपनी बेटी के पिता के रूप में अपनी स्थिति का खुलासा किया तो यह किसी भी तरह की कल्पना से नहीं कहा जा सकता कि तथ्य को छुपाया गया, जिसके परिणामस्वरूप धोखा हुआ।"
यह भी देखा गया कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में सक्षम नहीं रहा है कि शुरू से ही आरोपी व्यक्ति की पीड़िता का आर्थिक और यौन शोषण करने की यह बुरी मंशा थी।
इस प्रकार, अदालत ने ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित दोषसिद्धि का आदेश रद्द कर दिया और अपीलकर्ता को आईपीसी की धारा 417 के तहत कथित अपराध से बरी कर दिया।
केस टाइटल: गौरव बीर बासनेट @ गौरव बासनेट बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य।
कोरम: जस्टिस सिद्धार्थ रॉय चौधरी
आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें