"प्रथम दृष्टया कॉपीराइट उल्लंघन का मामला"; बॉम्बे हाईकोर्ट ने वेब सीरीज़ 'सिंगारदान' के निर्माताओं को वादी के साथ लाभ साझा करने के लिए कहा

LiveLaw News Network

2 Jun 2020 2:30 AM GMT

  • प्रथम दृष्टया कॉपीराइट उल्लंघन का मामला; बॉम्बे हाईकोर्ट ने वेब सीरीज़ सिंगारदान के निर्माताओं को वादी के साथ लाभ साझा करने के लिए कहा

    बॉम्बे हाई कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि वेब सीरीज़ 'सिंगारदान' के निर्माताओं ने प्रथमदृष्टया वादी शमोएल अहमद खान के कॉपीराइट अध‌िकार का उल्लंघन किया है। खान ने ही 'सिंगारदान' श‌ीर्षक से कहानी लिखी थी।

    ज‌स्ट‌िस एससी गुप्ते ने खान द्वारा दायर वाणिज्यिक मुकदमे की सुनवाई की, जिसमें निर्माता फाल्गुनी शाह, निर्देशक दीपक पांडे, और उल्लू ऐप के सीईओ विभा अग्रवाल के खिलाफ अंतरिम निषेधाज्ञा की मांग की गई थी। कोर्ट ने कहा कि वेब सीरीज़ के निर्माताओं ने वादी के काम का नाजायज तरीके से इस्तेमाल किया है, जिससे वादी को नुकसान हुआ है। हालांकि, कोर्ट ने सीरीज़ के प्रदर्शन पर रोक लगाने के बजाय वादी को मौद्रिक क्षतिपूर्ति दिलाना अधिक उपयुक्त माना है।

    केस की पृष्ठभूमि

    वादी के अनुसार, जो कि एक लेखक है, उनकी उर्दू में लिखी कहानी "सिंगारदान" पहली बार 1993 में "ज़हने-जदीद" नामक साहित्यिक पत्रिका में प्रकाशित हुई थी, और बाद में, 1996 में, वादी के खुद के उर्दू कहानियों के संग्रह जिसका शीर्षक भी "सिंगारदान" था, में प्रकाश‌ित हुई ‌थी। वादी ने कहानी का हिंदी में भी अनुवाद किया था और उसी नाम से हिंदी लघु कहानियों के संग्रह में प्रकाशित किया गया था।

    वादी ने बताया कि उक्त कहानी उसके बाद समय-समय पर साहित्यिक पत्रिकाओं, किताबों आदि में प्रकाशित होती रही और अंग्रेजी, मराठी और पंजाबी जैसी भाषाओं में अनुवादित हुई। इसे नाटक के रूप में भी रूपांतरित किया गया और मंचन किया गया।

    प्रतिवादियों ने 'सिंगारदान' शीर्षक से ही एक वेब सीरीज़ का निर्माण किया, जिसमें 6 एपिसोड हैं, जिनकी अवधि 1 घंटे, 54 मिनट है। सीरीज़ को "उल्लू" ऐप पर दिखाय गया है, जो विभु अग्रवाल (प्रतिवादी नंबर 3) के स्वामित्व वाली ऑन-डिमांड स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म है और यूट्यूब पर उपलब्ध है।

    वादी की शिकायत थी कि प्रतिवादियों ने वादी की कहानी के शीर्षक, कथानक, कहानी के पात्रों को नाम के साथ सीरीज़ में कॉपी किया है। अभियोगी ने अपनी नोटिस में क्षतिपूर्ति के साथ-साथ सीरीज़ पर रोक की मांग की थी।

    वादी के आरोपों का बचाव पक्ष ने विरोध किया और इस बात से इनकार किया कि उनकी वेब सीरीज़ वादी की कहानी "सिंगारदान" की कॉपी या रूपांतरण है। प्रतिवादियों ने कहा कि शीर्षक समान हैं, लेकिन सीरीज़ पूरी तरह से मूल कहानी पर आधारित है। वादी की कहानी और वेब सीरीज़ का प्र‌िमाइस, स्टोरी लाइन और प्‍लॉट, दोनों भौतिक रूप से भिन्न हैं।

    निर्णय

    वादी की ओर से एडवोकेट रश्मिन खांडेकर, साथ में एडवोकेट कविता मुंदकुर और हेमंत थडानी i/b कृष्णा एंड सौराष्ट्र एसोसिएट्स एलएलपी पेश हुए। प्रत‌िवादियों की ओर से एडवोकेट आशीष कामत, साथ में एडवोकेट रविंद्र सूर्यवंशी i/b रवि सूर्यवंशी एंड एसोसिएट्स पेश हुए।

    अदालत ने सबसे पहले वादी की कहानी का शीर्षक और वेब सीरीज़ का नाम एक ही होने के विवाद पर विचार किया। कोर्ट ने कहा कि कृषिका लुल्ला बनाम श्याम विट्ठलराव देवकत्ता के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया ‌था कि किसी भी साहित्य‌िक कृति के शीर्षक पर कॉपीराइट नहीं होता है, किसी अन्य व्यक्ति द्वारा शीर्षक इस्तेमाल किए जाने पर कॉपीराइट उल्लंघन का कोई भी मामला दर्ज नहीं किया जा सकता है; हालॉकि पास‌िंग ऑफ का केसी हो सकता है।

    जस्टिस गुप्‍ते ने कहा,

    "वादी का मामला पास‌िंग ऑफ का है। हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि पासिंग ऑफ के लिए केवल यह दावा करना पर्याप्त नहीं है कि प्रतिवादी ने समान शीर्षक का उपयोग किया है। उसे यह दिखाना होगा कि उसकी साहित्‍यिक कृति का शीर्षक इतना लोकप्रिय हो चुका है कि वो उसे साहित्यकार के नाम से ही पहचाना जाता है, किसी और के नाम से नहीं।"

    कोर्ट ने वादी की कहानी और वेब-सीरीज़ की कहानी के बीच समानताओं की जांच की। जस्टिस जामदार कहा-"सीरीज की कहानी में नायक को एक वेश्या का वैनिटी बॉक्स मिलता है और वह उसे अपने घर ले आता है। नायक देखता है क‌ि उस वैनिटी बॉक्स का इस्तेमाल करने से उसकी पत्नी और बेटी के रूप, व्यवहार और शार‌ीरिक हावभाव में परिवर्तन आने लगा है, जो काफी हद तक एक वेश्या जैसा होता जा रहा है। यही कारण है कि वेब सीरीज़ का नाम 'सिंगारदान' यानी वैनिटी बॉक्स रखा गया है।... वेब सीरीज़ का एक महत्वपूर्ण हिस्सा जिसे वादी की थीम, प्लॉट और स्टोरी लाइन पर आधारित है। यह वादी की कृति की एक कॉपी है।"

    हालांकि, निषेधाज्ञा की मांग के संबंध में कोर्ट ने कहा, "भले ही मैं प्रथम दृष्टया केस की मेरिट स्वीकार करता हूं, हालांकि मैं इस तथ्य से बेखबर नहीं रह सकता हूं कि डिफेंडेंट्स का काम न केवल पूरा हो चुका है (और न कि अभी उस पर काम हो रहा है) बल्कि पर्याप्त रूप से प्रसारित भी हो चुका किया गया है। वेब सीरीज़ 20 जनवरी 2019 को डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर रीलीज़ हुई थी।

    इसमें कोई संदेह नहीं है कि वादी ने जल्द ही मामले में शिकायत की थी (उन्होंने 6 फरवरी 2019 को कानूनी नोटिस जारी किया था)...

    हालांकि वादी की कृति का ब‌िना सहमति के, नाजायज तरीके से इस्तेमाल किया गया है, जिससे उन्हें नुकसान हुआ है। प्रतिवादी को वेब सीरीज के प्रारूप में बदलाव करने अनुमति नहीं दी जा सकती है।"

    जस्टिस जामदार ने कहा कि प्र‌तिवादी वेब सीरीज से होने वाले मुनाफे को तय कर वादी के साथ साझा कर सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि वादी को पर्याप्त पारिश्रमिक या लाभ के हिस्से के रूप में मुआवजा दिया जा सकता है।

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