प्रिवेंटिव डिटेंशन का उपयोग दंडात्मक उपाय के रूप में नहीं, बल्कि समाज के व्यापक हित में सार्वजनिक व्यवस्था सुरक्षित करने के लिए किया जाना चाहिए: केरल हाईकोर्ट

Shahadat

18 Nov 2023 5:34 AM GMT

  • प्रिवेंटिव डिटेंशन का उपयोग दंडात्मक उपाय के रूप में नहीं, बल्कि समाज के व्यापक हित में सार्वजनिक व्यवस्था सुरक्षित करने के लिए किया जाना चाहिए: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने गुरुवार को याद दिलाया कि व्यक्तियों को हिरासत में लेने की शक्ति का उपयोग दंडात्मक उपाय के रूप में नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि समाज के व्यापक हित में सार्वजनिक व्यवस्था को सुरक्षित करने के लिए किया जाना चाहिए।

    जस्टिस ए. मुहम्मद मुस्ताक और जस्टिस शोबा अनम्मा इपेन की खंडपीठ ने कहा,

    "निरोध आदेश नागरिकों की स्वतंत्रता को वंचित करने वाला गंभीर मामला है। इसका मतलब है कि वैध आधारों को छोड़कर किसी व्यक्ति को उसकी स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता। इसलिए निरोध आदेश में यह दर्शाया जाना चाहिए कि यदि संबंधित व्यक्ति को हिरासत में नहीं लिया गया तो सार्वजनिक व्यवस्था कैसे खराब होगी। केरल असामाजिक गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 2007 (KAPPA Act) के तहत प्रावधानों को लागू करना होगा। इसका मतलब है, जिस अपराध में वह अतीत में शामिल रहा है उसका विश्लेषण करना होगा, जिससे इस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सके कि वह ''जब उसे बिना हिरासत में रखा जाएगा तो यह समाज के लिए खतरा होगा।''

    न्यायालय ने बंदी के पिता की हेबियस कॉर्पस याचिका पर सुनवाई करते हुए उपरोक्त टिप्पणी की। बंदी 8 अपराधों में शामिल है।

    न्यायालय ने शुरुआत में ही कहा कि वर्तमान मामला ऐसा है, जहां हिरासत में लेने का आदेश देने के लिए अपनी शक्ति का प्रयोग करते समय हिरासत में लेने वाले प्राधिकारी द्वारा विवेक का कोई उपयोग नहीं किया गया। न्यायालय ने आक्षेपित हिरासत आदेश से यह सुनिश्चित किया कि प्राधिकारी ने आक्षेपित आदेश में संदर्भित प्रत्येक अपराध के संबंध में सार्वजनिक आदेश की तुलना में बंदी की गतिविधियों की जांच नहीं की।

    न्यायालय ने इस प्रकार कहा कि बंदी द्वारा अतीत में किए गए अपराध का विश्लेषण करना होगा और सार्वजनिक व्यवस्था पर उसके द्वारा किए गए प्रत्येक अपराध के प्रभाव का उसके द्वारा किए गए अपराध की प्रकृति के संदर्भ में उल्लेख करना होगा। यह निर्धारित करने के लिए कि क्या वह समाज के लिए खतरा होगा।

    उल्लेखनीय है कि बंदी ने व्यक्तियों से संबंधित अपराधों की प्रकृति में कुछ अपराध किए, जिसके लिए उसे पक्षकारों के बीच समझौते के आधार पर बरी कर दिया गया।

    इस पहलू पर न्यायालय ने कहा,

    "...यदि कोई व्यक्ति ऐसे अपराधों में शामिल है, जिसका केवल निजी व्यक्तियों पर प्रभाव पड़ा है, भले ही वह इसी तरह के अपराधों में से एक में शामिल हो सकता है तो उसे KAAPA Act के तहत हिरासत में लेने का कोई आधार नहीं होगा, जब तक कि ऐसी गतिविधि न हो सार्वजनिक व्यवस्था पर असर पड़ेगा।"

    इसमें कहा गया कि हिरासत आदेश जारी करते समय प्राधिकारी को स्पष्ट रूप से उन कारणों को बताना चाहिए कि अपराधों के संदर्भ में पिछले आचरण के परिणामस्वरूप सार्वजनिक व्यवस्था को सुरक्षित करने के लिए हिरासत में लिया जाएगा और बिना किसी कारण के ऐसा कोई भी हिरासत आदेश अवैध और कानूनी रूप से अस्थिर होगा।

    यह पाए जाने पर कि वर्तमान मामले में प्राधिकारी के विवेक का बिल्कुल भी उपयोग नहीं किया गया, लगाया गया हिरासत आदेश रद्द कर दिया गया। साथ ही हिरासत में लिए गए व्यक्ति को रिहा करने का आदेश दिया गया।

    याचिकाकर्ता के वकील: अजित मुरली, मोहनन एम.के. और स्वप्ना विजयन और प्रतिवादियों के वकील: लोक अभियोजक के.ए. आनंद

    केस टाइटल: सुकुमारन बनाम केरल राज्य एवं अन्य।

    केस नंबर: डब्ल्यू.पी. (Crl.) क्रमांक 1081/2023

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