मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने सरकार को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के प्रावधानों का सख्ती से पालन करने के लिए दिशानिर्देश जारी करने का निर्देश दिया

LiveLaw News Network

5 April 2021 6:13 AM GMT

  • मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने सरकार को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के प्रावधानों का सख्ती से पालन करने के लिए दिशानिर्देश जारी करने का निर्देश दिया

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने यह देखते हुए राज्य सरकार को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियमों के प्रावधानों का सख्ती से पालन करने के लिए दिशानिर्देश जारी करने का निर्देश दिया कि कई मामलों में राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करने में प्रक्रियात्मक खामियों के कारण प्रतिबंधक रूप से निरूद्ध करने (preventive detention) (उचित आधारों पर पारित) के आदेशों को रद्द कर दिया जाता है।

    न्यायमूर्ति शेल नागू और न्यायमूर्ति आनंद पाठक की खंडपीठ याचिकाकर्ता को तीन महीने की अवधि के लिए हिरासत में लेने के निर्देश पर मध्य प्रदेश के गुना जिले के जिला मजिस्ट्रेट गुना द्वारा पारित प्रतिबंधक रूप से निरूद्ध करने के आदेश को स्वीकार करने के लिए दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

    याचिकाकर्ता के तर्क

    प्रतिबंधक रूप से निरूद्ध करने के आदेश से याचिकाकर्ता के पास से कुछ गलत और मिलावटी सामाग्री की जब्ती का पता चला है।

    याचिकाकर्ता ने प्रतिबंधक रूप से निरूद्ध करने के आदेश को मुख्य रूप से इस हद तक चुनौती दी कि उक्त छापे के लिए पंजीकृत अपराध में ऐसी स्थिति उत्पन्न नहीं हुई जो सार्वजनिक व्यवस्था के लिए पूर्वाग्रह को जन्म दे सकती है।

    यह भी प्रस्तुत किया गया कि खाद्य पदार्थों को मानव उपभोग के लिए असुरक्षित नहीं पाया गया और अंतिम रूप से राज्य सरकार हिरासत के आदेश और उसके आधार के लिए केंद्रीय सरकार से वास्तविक संचार को प्रदर्शित करने में विफल रहा। इसके बाद राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम की धारा 3(2), 4 और धारा 3(5) को बढ़ाया गया।

    कोर्ट का अवलोकन

    कोर्ट ने शुरुआत में कहा कि राज्य सरकार ने केंद्र सरकार को आधार के साथ अनुमोदन के आदेश को आगे बढ़ाया है या ऐसा कोई आदेश केंद्र सरकार को प्राप्त हुआ है या नहीं। यह दिखाने के लिए राज्य सरकार ने कोई भी सबूत प्रस्तुत नहीं किया है।

    कोर्ट ने कहा कि,

    "इस न्यायालय के पास कोई विकल्प नहीं है और यह पाया गया कि केंद्र सरकार ने उक्त पत्र प्राप्त नहीं किया है जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम की धारा 3 (5) के प्रावधान का उल्लंघन हुआ है।"

    कोर्ट ने आगे कहा कि निवारक निरोध का आदेश 18 दिसंबर 2020 को पारित किया गया था, जिसके तहत गुना के जिला मजिस्ट्रेट ने राज्य सरकार से मामले में अप्रूवल के लिए 3 दिन का लंबा समय लिया।

    पीठ ने कहा कि,

    "राज्य द्वारा इस बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है कि क्यों मामला 19 दिसंबर 2020 से 21 दिसंबर 2020 तक जिला मजिस्ट्रेट, गुना के कार्यालय में 3 दिनों तक लंबित पड़ा था।"

    कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह सभी जिला मजिस्ट्रेटों को दिशा-निर्देश जारी करे ताकि एनएसए की धारा 3 के तहत कानून की प्रक्रिया के लिए निर्धारित समय-सीमा और अन्य प्रावधानों का कड़ाई से पालन सभी जिलाधिकारियों / राज्य सरकार द्वारा किया जाए।

    कोर्ट ने आगे कहा कि यह भी देखा जाता है कि संबंधित जिला मजिस्ट्रेट के कार्यालय की ओर से प्रस्तुत मूल रिकॉर्ड में निम्नलिखित चीजें शामिल नहीं हैं: -

    1. अनुमोदन के लिए राज्य को जिला मजिस्ट्रेट द्वारा भेजे गए सबूतों के साथ आगे बढ़ाने की सही तारीख लिखी जानी चाहिए।

    2. राज्य द्वारा प्रतिबंधक रूप से निरूद्ध करने के आदेश की रसीद दिखाने के लिए सबूत के साथ सही तारीख लिखी जानी चाहिए।

    3. राज्य सरकार द्वारा केन्द्र सरकार को अनुमोदन के आदेश को आगे बढ़ाने के लिए भेजे गए सबूतों की सही तारीख लिखी जानी चाहिए।

    4. राज्य सरकार द्वारा केन्द्र सरकार को अनुमोदन के आदेश को आधार के साथ आगे बढ़ाने के लिए भेजे गए सबूतों को केंद्र सरकार द्वारा प्राप्ति की सही तारीख लिखी जानी चाहिए।

    5. जब किसी व्यक्ति के (जो पहले से ही हिरासत में है) खिलाफ जिला मजिस्ट्रेट / राज्य द्वारा प्रतिबंधक रूप से निरूद्ध करने का आदेश पारित किया जाता है, तो प्रतिबंधक रूप से निरूद्ध करने का आदेश विशिष्ट शब्दों में प्रकट नहीं होता है कि सक्षम प्राधिकारी इस तथ्य के प्रति सचेत था और फिर भी आदेश में दर्ज किए जाने वाले कारणों के लिए संबंधित व्यक्ति को रोकने के लिए आवश्यक रूप से अवगत कराता है।

    कोर्ट ने अन्त में इस बात पर भी जोर दिया कि सक्षम प्राधिकारी की संतुष्टि प्रतिबंधक रूप से निरूद्ध करने के आदेश में दिखाई देता है अन्यथा यह शशि अग्रवाल बनाम उत्तर प्रदेश और अन्य [AIR 1988 SC 596] मामले में शीर्ष न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून की कसौटी पर खरा नहीं उतरता है।

    कोर्ट ने याचिका को अनुमति देते हुए रजिस्ट्री को आदेश दिया गया कि वह आदेश की कॉपी मध्य प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव और भोपाल के कानून और विधायी मामलों के प्रधान सचिव को सूचना और सुधारात्मक कार्रवाई के लिए सौंपें।

    केस का शीर्षक - अंशुल जैन बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य [WP.1118.2021]

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:





    Next Story