दिल्ली पुलिस ने दिल्ली हाईकोर्ट को बताया, देवांगना कालिता के खिलाफ प्रेस नोट पुलिस पर लगे सांप्रदायिकता के आरोपों का आनुपातिक जवाब था

LiveLaw News Network

16 July 2020 8:06 AM GMT

  • दिल्ली पुलिस ने दिल्ली हाईकोर्ट को बताया, देवांगना कालिता के खिलाफ प्रेस नोट पुलिस पर लगे सांप्रदायिकता के आरोपों का आनुपातिक जवाब था

    दिल्ली पुलिस ने दिल्ली हाईकोर्ट को सूचित किया है कि पुलिस उपायुक्त की ओर से जारी प्रेस नोट, जिसमें देवांगना कालिता के खिलाफ दिल्ली दंगों की साजिश रचने के आरोपों को उजागर किया गया है, पिंजरा तोड़ सदस्यों की ओर से ट्व‌िटर पर लगाए गए आरोपों का आनुपातिक जवाब था।

    सिंगल बेंच को आगे सूचित किया गया कि उक्त प्रेस नोट का उद्देश्य पुलिस पर जनता के विश्वास को बहाल करना था और पुलिस के सांप्रदायिकता के आरोपों का आनुपातिक जवाब था।

    देवांगना कालिता की ओर से दायर एक रिट याचिका में ये दलील दी गई हैं। याचिका में दिल्ली पुलिस को निर्देश देने की मांग की गई थी कि मीडिया में उसके खिलाफ दर्ज एफआईआर की जानकारी को लीक करने से रोका जाए।

    दिल्ली पुलिस की ओर से अपील करते हुए, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अमन लेखी ने कहा क‌ि डीसीपी के प्रेस नोट, जिसे याचिकाकर्ता ने निष्पक्ष सुनवाई के अपने अधिकार के लिए अपमानजनक और पूर्वाग्रह पूर्ण माना है, पिंजरा तोड़ के सदस्यों की ओर से ट्विटर पर लगाए गए आरोपों का जवाब था।

    लेखी ने कहा कि पिंजरा तोड़ के सदस्यों ने दिल्ली पुलिस पर पर 'बड़े पैमाने पर हिंदुत्व की साजिश'करने और 'अंसतोष को कुचलने के लिए राजनीतिक शत्रुता'करने का आरोप लगाया था, जिसने पुलिस में जनता के विश्वास को कम किया और बाद में सामाजिक व्यवस्था को आघात पहुंचाया।

    लेखी ने आगे कहा कि चूंकि कलिता ने पिंजरा तोड़ की ओर से किए ट्वीट से खुद को अलग करने की कोशिश नहीं की, इसलिए प्रचलित संदर्भ ने पुलिस से प्रतिक्रिया व्यक्त की।

    "प्रेस नोट का इरादा मीडिया ट्रायल करना या अभियुक्तों की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचना या मामले में दुराग्रह पैदा करना नहीं था। इरादा याचिकाकर्ता के सहयोगियों द्वारा लगाए गए आरोपों के कारण पुलिस में जनता के विश्वास को हुए नुकसान के मुद्दे को संबोधित करना था। '

    लेखी ने आगे तर्क दिया कि प्रेस नोट में ऐसी कोई भी जानकारी नहीं है, जो पहले से सार्वजनिक न हो। उन्होंने कहा, 'कलिता के खिलाफ मामले की प्रकृति का खुलासा खुद पिंजरा तोड़ के सदस्यों ने किया था, उसके खिलाफ दर्ज अपराधों के बारे में सारी जानकारी दी।'

    इस बिंदु पर, अदालत ने लेखी को रोका और कहा, 'निर्दोष होने की पूर्वधारणा तब नष्ट नहीं होता, जब आरोपी व्यक्ति यह कहते हुए अभियान चलाता है कि वह निर्दोष है। बल्कि, यह तब नष्ट होती है, जब पुलिस द्वारा मीडिया में पूर्वाग्रहपूर्ण बयान जारी किए जाते हैं।'

    लेखी ने इस अवलोकन पर कहा कि संस्थागत अखंडता की धारणा को प्रस्तुत करना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि निर्दोष होने की की पूर्वधारणा को। और पिंजरा तोड़ के सदस्यों द्वारा किए गए ट्वीट से दोनों धाराणाओं के बीच संतुलन बिगड़ा। इसलिए, इस संतुलन को पुलिस द्वारा बहाल किया गय।

    रोमिला थापर मामले और सहारा बनाम सेबी में सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों पर भरोसा करते हुए, लेखी ने तर्क दिया कि प्रेस नोट में शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित किसी भी कसौटी का उल्लंघन नहीं किया है। उन्होंने बताया कि मीडिया और समाचार एजेंसियों के 480 लोगों को व्हाट्सएप के माध्यम से प्रेस नोट भेजा गया था। इसलिए, यह 'सूचना के चयनात्मक लीक' के आरोप का खंडन करता है।

    लेखी से यह पूछते हुए कि पिंजरा तोड़ के ट्वीट्स के किस हिस्से को वह आक्रामक पाते हैं, कोर्ट ने कहा, 'सोशल मीडिया एक अनियंत्रित घोड़ा है। ऐसी बेतुकी टिप्पणियां की गईं जिनका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं है। '

    अदालत ने कहा, चार्जशीट दायर होने तक आप (पुलिस) अपना गोला बारूद सूखा रख सकते थे। अदालत के लिए यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण हो जाता है कि जिन मामलों की सुनवाई होनी बाकी है, वे पक्षपातपूर्ण न हों। '

    लेखी ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि पिंजरा तोड़ के सदस्य पुलिस की कार्रवाई को सांप्रदायिक रूप नहीं दे सकते और फिर पुलिस से चुप रहने की उम्मीद नहीं की जा सकती है। इन परिणामों को उनके आचरण ने आमंत्रित किया था।

    अदालत ने दोहराया कि आरोपी का निर्दोष होने का दावा या उसकी गिरफ्तारी को चुनौती देना मीडिया को जानकारी जारी करने का आधार नहीं हो सकता। अदालत ने कहा, 'इस तरह विरोध प्रदर्शन होता है। एजेंसियों को अदालत में अपने कार्यों का बचाव करने का अवसर दिया जाता है। ' अदालत ने मामले को अगली सुनवाई के लिए कल तक के लिए स्थगित कर दिया।

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