प्रेस की स्वतंत्रता निरंकुश नहीं, बांद्रा प्रवासी मामले में गिरफ्तार पत्रकार को जमानत देते हुए अदालत ने कहा

LiveLaw News Network

19 April 2020 4:47 PM GMT

  • प्रेस की स्वतंत्रता निरंकुश नहीं,  बांद्रा प्रवासी मामले में गिरफ्तार पत्रकार को जमानत देते हुए अदालत ने कहा

    बांद्रा की एक मजिस्ट्रेट कोर्ट ने कथित गलत खबर चलाने के मामले में गिरफ्तार किए गए एबीपी माझा के लिए काम करने वाले पत्रकार राहुल कुलकर्णी को जमानत दे दी है। इस पत्रकार को आईपीसी की विभिन्न धाराओं और महामारी रोग अधिनियम के तहत अपराध करने के मामले में गिरफ्तार किया गया था। पत्रकार पर आरोप है कि उसने एक फर्जी खबर चलाई थी कि राज्य भर में फंसे हुए प्रवासियों को उनके मूल स्थानों पर भेजने के लिए रेलवे विशेष ट्रेन चलाएगा।

    एफआईआर के अनुसार, 14 अप्रैल की सुबह इस पत्रकार ने खबर चलाई कि राज्य में फंसे हुए प्रवासी श्रमिकों को उनके मूल स्थानों पर ले जाने के लिए रेलवे विभाग विशेष ट्रेन शुरू कर रहा है। यह एफआईआर भारतीय दंड संहिता की धारा 117, 188, 269, 270, 505 और महामारी रोग अधिनियम की धारा 3 के तहत दर्ज की गई थी।

    पुलिस के अनुसार इस खबर के परिणामस्वरूप सैकड़ों ऐसे प्रवासी श्रमिक और मजदूर बांद्रा स्टेशन के बाहर एकत्रित हो गए,जो वर्तमान देशव्यापी लाॅकडाउन के कारण फंसे हुए हैं, जिससे वहां पर भगदड़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई।

    पुलिस द्वारा लाठीचार्ज शुरू करने और सहायता के लिए अन्य कर्मियों को बुलाने के बाद आखिरकार भीड़ को तितर-बितर किया गया।

    न्यायाधीश पी.बी येरलेकर ने जमानत देते हुए कहा कि '

    'अभियुक्त को किसी भी ऐसे विवाद में नहीं फंसना चाहिए,जैसे विवाद में इस समय वह फंस गया है। अदालत ने कहा कि समाचार रिपोर्ट तैयार करते समय उसे अत्यधिक सावधानी बरतनी चाहिए।''

    पुलिस ने आरोपी की हिरासत की मांग की थी।

    अदालत ने कहा कि-

    "जांच तंत्र के अनुरोध पर विचार करने से पहले, यह पता लगाना उचित होगा कि क्या पुलिस की कार्रवाई उचित थी। ऐसा लगता है कि निर्दिष्ट समाचार में, अभियुक्त ने स्पष्ट रूप से उल्लेख किया था कि फंसे हुए लोगों को यहां से निकालने के लिए सरकार द्वारा विशेष जन साधारण ट्रेन चलाई जाएंगी। उसकी रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि सरकार और रेलवे प्रशासन निश्चित रूप से इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि इस तरह की ट्रेेन का संचालन किया जाएगा। इस समाचार को देखकर किसी भी सामान्य व्यक्ति को यह विश्वास हो जाएगा कि ट्रेनों का संचालन किया जाएगा।''

    कोर्ट ने यह भी पाया कि यह समाचार वायरल हो गया था और कुछ असामाजिक तत्वों ने स्थिति का फायदा उठाते हुए लोगों को बांद्रा स्टेशन पर इकट्ठा होने के लिए उकसाया।

    मजिस्ट्रेट ने कहा कि उसी दिन सुबह 10 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबोधन में लॉकडाउन के विस्तार की घोषणा करते हुए यह स्पष्ट किया गया था कि लॉकडाउन के दौरान परिवहन उपयोगिता के किसी भी साधन का परिचालन नहीं होगा।

    कोर्ट ने कहा कि-

    ''इस पृष्ठभूमि में यह साफ है कि अभियुक्त द्वारा दी गई समाचार रिपोर्ट स्पष्ट रूप से भ्रामक थी। हड़बड़ी में रिपोर्ट की गई इस खबर से पता चलता है कि अभियुक्त ने गैर जिम्मेदाराना तरीके से काम किया है और ऐसा उसने ब्रेकिंग न्यूज चलाने के लिए भी किया था। उसके इसी व्यवहार के कारण वास्तव में वर्तमान स्थिति पैदा हुई।

    न केवल हमारा देश बल्कि पूरी दुनिया इस समय COVID-19 महामारी के कारण एक कठिन स्थिति का सामना कर रही है। इस स्थिति में किसी भी समाचार को रिपोर्ट करने में अभियुक्त जैसे व्यक्तियों को ज्यादा से ज्यादा सावधानी बरतनी चाहिए। हालांकि ऐसा लगता है कि आरोपी ने इस जिम्मेदारी को नजरअंदाज किया है।''

    आरोपी के वकील ने संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत प्रेस की मिली स्वतंत्रता के आधार पर तर्क दिया।

    इस पर कोर्ट ने कहा कि-

    ''इसमें कोई संदेह नहीं है कि प्रेस को विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिली हुई है। हालांकि, ऐसी स्वतंत्रता निरंकुश नहीं है, इसलिए सार्वजनिक आदेश के हित में इस स्वतंत्रता का आनंद लेने के लिए उचित प्रतिबंधों का पालन करना आवश्यक है।''

    यह देखते हुए कि मीडिया का आम जनता पर जबरदस्त प्रभाव है। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि किसी भी समाचार रिपोर्ट के प्रत्याशित परिमाणों को ध्यान में रखते हुए उसको समझदारी से और अधिक जिम्मेदार तरीके से रिपोर्ट किया जाना चाहिए।

    अंत में, अदालत ने अभियुक्त को एक महीने के लिए 15,000 रुपये के निजी मुचलके पर जमानत दे दी। अदालत ने यह भी कहा कि चूंकि अभियुक्त COVID-19 के उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में गया था, इसलिए उसे 15 दिनों के लिए घर में क्वारंटाइन में रहना चाहिए।

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