राष्ट्रपति मुर्मू ने न्यायपालिका से वंचित वर्गों के लिए न्याय तक पहुंच सुनिश्चित करने, पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता देने का आग्रह किया
Avanish Pathak
26 July 2023 4:24 PM IST
भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू बुधवार को कटक के जवाहरलाल नेहरू इंडोर स्टेडियम में आयोजित उड़ीसा हाईकोर्ट की 75वीं वर्षगांठ समारोह के समापन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुईं।
इस कार्यक्रम में कई गणमान्य व्यक्तियों और कानूनी विशेषज्ञों ने भाग लिया। हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डॉ जस्टिस एस मुरलीधर ने इस कार्यक्रम की अध्यक्षता की, साथ ही ओडिशा के राज्यपाल प्रो गणेशी लाल और हाईकोर्ट के सभी न्यायाधीश भी उपस्थित थे।
ओडिया और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में दिए गए एक संबोधन में, राष्ट्रपति ने न्यायपालिका और कानूनी पेशेवरों से आदिवासियों और समाज के वंचित वर्गों के लिए न्याय तक मुफ्त और आसान पहुंच सुनिश्चित करने की दिशा में काम करने का आग्रह किया। उन्होंने न्यायाधीशों से मामलों का फैसला करते समय पर्यावरण की सुरक्षा को प्राथमिकता देने को कहा।
प्रारंभ में राष्ट्रपति ने ओडिशा और बाराबती किला के समृद्ध इतिहास को याद किया। उन्होंने दर्शकों को उत्कल गौरव मधुसूदन दास, उत्कलमणि गोपबंधु दास और उत्कल केशरी डॉ हरेकृष्ण महताब जैसे उड़िया दिग्गजों द्वारा किए गए सर्वोच्च योगदान और बलिदान की याद दिलाई।
राष्ट्रपति ने उड़ीसा हाईकोर्ट की प्लैटिनम जयंती के अवसर पर उसके सम्मान में एक विशेष डाक टिकट समर्पित करने की पहल करने के लिए भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की सराहना की।
उन्होंने कहा,
“आज आपके बीच आकर मुझे खुशी हो रही है। मैं न केवल इसलिए खुश हूं क्योंकि उड़ीसा हाईकोर्ट अपनी 75वीं वर्षगांठ मना रहा है, बल्कि कानूनी दिग्गजों और अन्य प्रतिष्ठित हस्तियों की उपस्थिति के कारण भी खुश हूं।”
उड़ीसा हाईकोर्ट का इतिहास
उड़ीसा हाईकोर्ट के इतिहास का संक्षिप्त विवरण प्रदान करते हुए राष्ट्रपति ने कहा,
“ओडिशा एक अप्रैल 1936 को एक राज्य बन गया। उससे पहले, यह बंगाल प्रेसीडेंसी का हिस्सा था और फिर बिहार का हिस्सा था। ओडिशा के कुछ हिस्से मद्रास प्रेसीडेंसी और मध्य प्रांत में भी थे। तदनुसार, ओडिशा के लिए कोई अलग हाईकोर्ट नहीं था। पटना हाईकोर्ट की एक सर्किट बेंच 1916 से कटक में कार्य कर रही थी। उड़ीसा हाईकोर्ट की स्थापना राज्य के गठन के लगभग 12 साल बाद 1948 में आज ही के दिन हुई थी। हाईकोर्ट की स्थापना ओडिशा के लोगों की लंबे समय से चली आ रही आकांक्षाओं को दर्शाती है।"
उन्होंने सभा को आगे बताया कि हाईकोर्ट ने केवल 4 न्यायाधीशों के साथ काम करना शुरू किया था, लेकिन अब न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या 33 हो गई है। उन्होंने पिछले दो वर्षों में हाईकोर्ट द्वारा निपटान की उल्लेखनीय दर हासिल करने पर संतोष व्यक्त किया।
उन्होंने कहा, “मुझे बताया गया कि त्वरित न्याय मिलने के कारण लंबित मामलों की संख्या पिछले बैकलॉग की एक चौथाई तक कम हो गई है। इसके लिए मैं चीफ जस्टिस डॉ एस मुरलीधर और अन्य न्यायाधीशों की सराहना करती हूं।”
उन्होंने न्याय प्रदान करने के उद्देश्य से तकनीकी प्रगति को अपनाने के लिए उड़ीसा हाईकोर्ट द्वारा की गई विभिन्न पहलों की भी सराहना की।
कानूनी दिग्गजों को याद करते हुए
राष्ट्रपति ने कहा कि अपनी स्थापना के दिन से लेकर आज तक हाईकोर्ट ने कई मानक स्थापित किये हैं। उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर ओडिशा के कई कानूनी दिग्गजों के अपार योगदान को स्वीकार किया।
इस महत्वपूर्ण अवसर पर, उन्होंने हाईकोर्ट के वर्तमान और पूर्व न्यायाधीशों के साथ-साथ उन वकीलों को भी बधाई दी जिन्होंने पिछले 75 वर्षों में कानून की विभिन्न शाखाओं के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
उन्होंने वकीलों और न्यायाधीशों की सराहना करते हुए कहा,
“इस हाईकोर्ट के नाम और प्रसिद्धि के पीछे आपकी कड़ी मेहनत, ईमानदारी और बुद्धि है। इसलिए, आप लोग प्रशंसा के पात्र हैं”
उन्होंने जस्टिस बच्चू जगन्नाधदास, जस्टिस रंगनाथ मिश्रा, जस्टिस राधा चरण पटनायक, जस्टिस देबा प्रिया महापात्र, जस्टिस गोपाल बल्लव पटनायक, जस्टिस अरिजीत पसायत, जस्टिस अनंग कुमार पटनायक और जस्टिस दीपक मिश्रा के नामों को रेखांकित किया, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत किया गया था।
उन्होंने उपरोक्त तीन न्यायाधीशों (जस्टिस रंगनाथ मिश्रा, गोपाल बल्लाव पटनायक और दीपक मिश्रा) के लिए भी गर्व व्यक्त किया, जो आगे चलकर भारतीय न्यायपालिका के सर्वोच्च पद, यानी भारत के मुख्य न्यायाधीश बने।