बलात्कार के कारण गर्भावस्था आजीवन मानसिक पीड़ा का कारण बन सकती है, सामाजिक-आर्थिक समस्याएं पैदा कर सकती है: गुजरात हाईकोर्ट ने नाबालिग को राहत दी

LiveLaw News Network

23 March 2022 2:30 AM GMT

  • बलात्कार के कारण गर्भावस्था आजीवन मानसिक पीड़ा का कारण बन सकती है, सामाजिक-आर्थिक समस्याएं पैदा कर सकती है: गुजरात हाईकोर्ट ने नाबालिग को राहत दी

    गुजरात ‌हाईकोर्ट ने हाल ही में एक नाबालिग बलात्कार पीड़िता की 6 सप्ताह की गर्भावस्था को समाप्त करने की याचिका को इस आधार पर स्वीकार कर लिया कि यदि गर्भावस्था जारी रहती है तो इससे उसे सामाजिक-आर्थिक समस्याओं के साथ आजीवन मानसिक पीड़ा होगी।

    कोर्ट ने कहा, "याचिकाकर्ता आरोपी द्वारा जबरन बलात्कार के कारण गर्भवती है ... गर्भावस्था के जारी रहने के कारण यह नाबालिग के मानसिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर चोट का कारण बनेगा। साथ ही बच्चे को जन्म देना और उसका पालन-पोषण करने जीवन भर के ल‌िए मानसिक पीड़ा पैदा करेगा और कई अन्य सामाजिक-आर्थिक समस्याओं को जन्म देगा। इसे गर्भवती महिला के मानसिक स्वास्थ्य के लिए गंभीर चोट कहा जा सकता है।"

    जस्टिस विपुल पंचोली 17 साल की रेप पीड़िता की अर्जी पर सुनवाई कर रहे थे, जिसे मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (संशोधन) अधिनियम 2021 की धारा 3 के अनुसार इसकी अनुमति दी गई थी।

    कोर्ट ने कहा कि एमटीपी एक्ट, 2021 की धारा 3 के अनुसार, जहां गर्भावस्था की अवधि 12 सप्ताह से अधिक नहीं है, रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर और जहां गर्भावस्था की अवधि 12 सप्ताह से अधिक है, लेकिन 20 सप्ताह से अधिक नहीं है, वहां दो मेडिकल प्रैक्टिशनर गर्भावस्था को समाप्त कर सकते हैं। लेकिन उन्हें एक राय बनानी होगी कि गर्भावस्था को जारी रखने से गर्भवती महिला के जीवन को खतरा होगा या गर्भवती महिला के जीवन को गंभीर नुकसान हो सकता है, या उसके शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर खतरा या या कोई बड़ी समस्या हो सकती है। यह जोखिम भी है कि यदि बच्चा पैदा होता है तो वह इस तरह की शारीरिक या मानसिक असामान्यताओं से पीड़ित होगा, जैसे कि वह गंभीर रूप से विकलांग हो।

    मामला

    आरोपी व्यक्ति ने याचिकाकर्ता का अपहरण किया था और उसके साथ बलात्कार किया था, जिसके बाद उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 363, 366, 376 (एन) और धारा 4, 5 (एल), 6, पोक्सो एक्ट की धारा 8 और 12 के तहत एफआईआर दर्ज की गई।

    यह पाया गया कि पीड़िता 6 सप्ताह और 3 दिन की गर्भवती थी और गंभीर मानसिक पीड़ा से गुजर रही थी। तदनुसार, याचिकाकर्ता के पिता ने उसकी गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए उसकी ओर से एक सहमति पत्र प्रस्तुत किया।

    याचिकाकर्ता ने कहा कि गर्भावस्था से उसके मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर चोट पहुंचेगी और इसलिए, उसे इसे समाप्त करने की अनुमति दी जानी चाहिए। मिस जे़ड बनाम बिहार राज्य (2018) 11 SCC 572 पर यह कहने के लिए भरोसा रखा गया कि 12 सप्ताह की गर्भावस्था के मामले में, समाप्ति की अनुमति दी जा सकती है। यह भी प्रार्थना की गई कि प्रतिवादी अधिकारी किसी भी शारीरिक नुकसान से बचने के लिए स्त्री रोग विशेषज्ञ, प्रसूति रोग विशेषज्ञ और अन्य सहित दो योग्य सर्जनों के साथ गर्भावस्था की चिकित्सा समाप्ति करें।

    पीठ ने एमटीपी एक्ट की धारा 3 के अनुसार पीड़िता की चिकित्सा जांच के बाद उसके संदर्भ में पारित चिकित्सा अधिकारियों की राय को नोट किया। इसने पुष्टि की कि पीड़िता की चिकित्सीय जांच के बाद, डॉक्टरों की राय थी कि वह जटिलताओं (रक्तस्राव, संक्रमण आदि) के जोखिम के साथ एमटीपी से गुजर सकती है। डॉक्टरों द्वारा यह भी सिफारिश की गई थी कि याचिकाकर्ता के लाभ के लिए प्रक्रिया को बिना देरी किए किया जाए।

    याचिकाकर्ता के स्वास्थ्य और उसकी पिछली स्थितियों को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने "याचिकाकर्ता - पीड़ित के जीवन को बचाने की" प्रार्थना को मंजूरी दी। यह निर्देश दिया गया था कि डॉक्टर एएनसी प्रोफाइल रिपोर्ट के बाद उचित जोखिम के साथ गर्भावस्था को समाप्त कर दें और डीएनए पहचान के लिए भ्रूण से निकाले गए ऊतकों को भी जांच अधिकारी को सौंप दें।

    केस शीर्षक: एबीसी (पीड़ित) बनाम गुजरात राज्य

    केस नंबर: R/SCR.A/2814/2022

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