सीआरपीसी की धारा 409 के तहत मामले को वापस लेने की सत्र न्यायाधीश की शक्ति का प्रयोग एएसजे के समक्ष एक बार ट्रायल शुरू होने के बाद नहीं किया जा सकता है: जेएंडकेएंड एल हाईकोर्ट
Avanish Pathak
12 Nov 2022 4:15 PM GMT
![Consider The Establishment Of The State Commission For Protection Of Child Rights In The UT Of J&K Consider The Establishment Of The State Commission For Protection Of Child Rights In The UT Of J&K](https://hindi.livelaw.in/h-upload/2021/01/03/750x450_386705-378808-jammu-and-kashmir-high-court.jpg)
जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि किसी जिले के प्रधान सत्र न्यायाधीश के पास एक ऐसे मामले को वापस लेने/बुलाने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है, जिसमें अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के समक्ष ट्रायल/ सुनवाई शुरू हो गई है, जैसा कि धारा 409 (2) सीआरपीसी में प्रदान किया गया है।
जस्टिस एमए चौधरी ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसके माध्यम से याचिकाकर्ता ने दो मामलों को प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश श्रीनगर की अदालत से श्रीनगर में सक्षम क्षेत्राधिकार के किसी अन्य न्यायालय में स्थानांतरित करने की मांग की थी।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि अपीलीय अदालत द्वारा वाद सूची में दिखाए बिना मामले को अपने हाथ में लेने और मामले की सुनवाई नहीं होने पर आदेश पारित करने से मामले के संचालन से और यह कि एक अन्य सत्र न्यायालय के समक्ष अपील को वापस ले लिया गया था, इस तथ्य के बावजूद कि अदालत ने इस मामले में पहले ही नोटिस जारी कर दिया था, जिसमें प्रधान सत्र न्यायाधीश सक्षम नहीं थे, इन्होंने याचिकाकर्ता को यह आभास दिया कि उस अदालत के समक्ष मामले की निष्पक्ष सुनवाई नहीं होगी।
मौजूदा मामले में तथ्य यह था कि प्रतिवादी द्वारा घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम 2005 की धारा 12 के तहत मजिस्ट्रेट श्रीनगर की अदालत के समक्ष एक शिकायत दायर की गई थी, जिसने 25.07.2022 के आदेश के तहत याचिकाकर्ता को प्रतिवादी को प्रति माह रु.15,000/ भरणपोषण का भुगतान करने का निर्देश दिया था।
इस आदेश से व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने डीवी एक्ट की धारा 29 के तहत प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश श्रीनगर की अदालत में अपील दायर की, जिसे न्यायनिर्णयन के लिए द्वितीय अतिरिक्त जिला न्यायाधीश श्रीनगर की अदालत में स्थानांतरित कर दिया गया।
प्रतिवादी क्रमांक एक ने भी मजिस्ट्रेट द्वारा पारित उसी आदेश से व्यथित होकर याचिकाकर्ता और श्रीमती ताहिरा बेगम, जिन्हें प्रोफार्मा प्रतिवादी के रूप में रखा गया था, के खिलाफ प्रधान सत्र न्यायाधीश, श्रीनगर की अदालत के समक्ष डीवी एक्ट की धारा 29 के तहत एक अपील दायर की, जिसे उन्होंने अपने ही कोर्ट में रख लिया था।
इसके बाद प्रधान सत्र न्यायाधीश श्रीनगर ने द्वितीय अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश की अदालत को सौंपी गई अपील को भी वापस ले लिया। यह अन्य बातों के साथ-साथ इस वजह से था कि याचिकाकर्ता ने मामलों को किसी अन्य उपयुक्त अदालत में स्थानांतरित करने की मांग की।
बेंच से न्यायनिर्णयन की मांग करने वाला विवादास्पद प्रश्न यह था कि क्या प्रधान सत्र न्यायाधीश, एक बार अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश की अदालत को मामला सौंपते हुए, जब मामले में नोटिस पहले ही जारी किया जा चुका था, सक्षम है या अधिकार क्षेत्र में कि वह उस अदालत से मामला वापस लेले।
इस मामले पर फैसला सुनाते हुए जस्टिस चौधरी ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 409 के तहत सत्र न्यायाधीश के पास उन मामलों को वापस लेने की शक्ति नहीं है, जिनकी सुनवाई अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश की अदालत के समक्ष शुरू हो गई है।
कानून की उक्त स्थिति को ध्यान में रखते हुए पीठ ने रघुनंदन बख्शी और अन्य बनाम बीडी चंद ने 1997 केएलजे 98 में जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट के एक फैसले पर भरोसा किया, जिसमें कहा गया-
"सत्र न्यायाधीश द्वारा अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश की अदालत से केवल मामलों के परीक्षण के मामले में या अपील के संबंध में मामले को वापस लेने को धारा 528 सीआरपीसी के प्रावधानों के तहत अधिकृत किया गया है, हालांकि इस तरह के परीक्षण शुरू होने या अपील की सुनवाई शुरू होने से पहले ही ऐसा किया जा सकता है।
यदि विद्वान अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश मामले की सुनवाई या अपील की सुनवाई के साथ शुरू करते हैं, तो सत्र न्यायाधीश उन मामलों को वापस लेने की शक्ति से रहित होता है।"
खंडपीठ द्वारा स्थानांतरण याचिका की अनुमति दी गई थी।
केस टाइटलः महबूब उल हुसैन बनाम झसरा परवेज
साइटेशन: 2022 लाइवलॉ (जेकेएल) 210