पुलिस उन धाराओं का इस्तेमाल कर रही, जिन्हें अदालतें रद्द कर चुकी हैं, दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र को कानून की किताबों को अपडेट करने पर विचार करने का निर्देश दिया
LiveLaw News Network
22 Sept 2021 5:31 PM IST
दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को केंद्र सरकार से कहा है कि वह एक जनहित याचिका को प्रतिनिधित्व के रूप में विचार करे। याचिका कानून से ऐसे प्रावधानों को हटाने की मांग करती है, जिन्हें न्यायालयों द्वारा असंवैधानिक घोषित किया गया है।
एडवोकेट अंशुल बजाज द्वारा दायर याचिका में पुलिस थानों को प्रासंगिक संशोधित आपराधिक कानून की किताबों/ बेयर एक्ट्स और सुप्रीम कोर्ट और संबंधित हाईकोर्टों के निर्णयों को उपलब्ध कराने की मांग की गई है, जिससे उनके दायित्वों और जिम्मेदारियों को प्रचारित करेंगे।
याचिकाकर्ता का मामला था कि अपडेटेड बेयर एक्ट्स और कानून की किताबों के अभाव में, पुलिस नागरिकों पर इस तरह के असंवैधानिक प्रावधानों को लागू करना जारी रखा है। चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस अमित बंसल की पीठ ने केंद्र को सुझावों पर विचार करने और जल्द से जल्द इन्हें व्यावहारिक रूप देने के निर्देश दिए।
याचिका में कहा गया है, "कई आपराधिक कानून धाराएं हैं जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था, लेकिन पुलिस अधिकारियों ने इनका उपयोग जारी रखा है।"
याचिका में सुप्रीम कोर्ट की हाल ही में की गई एक टिप्पणी का उल्लेख किया गया है, जिसमें कोर्ट ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66 ए के तहत प्राथमिकी दर्ज करने की प्रैक्टिस पर आश्चर्य व्यक्त किया था, जिसे श्रेया सिंघल मामले में 2015 के फैसले में खारिज कर दिया गया था।
याचिका में बॉम्बे हाईकोर्ट के एक आदेश पर भी भरोसा किया गया, जिसमें औरंगाबाद क्षेत्राधिकार में वासमतनगर पुलिस स्टेशन के स्टेशन हाउस ऑफिसर को पुलिस स्टेशन में स्टॉक करने के लिए विभिन्न आपराधिक कानूनों के 'नवीनतम बेयर एक्ट्स' को खरीदने के लिए कहा गया था।
याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट नवतेज सिंह जौहर बनाम यूनियन ऑफ इंडिया आईपीसी की धारा 377 को असंवैधानिक घोषित किया जा चुका है, जिसके तहत "अप्राकृतिक यौन संबंध" को अपराध माना जाता था। जोसेफ शाइन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया में आईपीसी की धारा 497, जिसके तहत "व्यभिचार" को अपराध माना जाता था, उसे भी हटा दिया गया है। इसलिए, याचिका में कहा गया है कि न केवल वकीलों बल्कि पुलिस अधिकारियों को भी अपडेट रखना आवश्यक है।
केस शीर्षक: अंशुल बजाज बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य।