पुलिस गैरकानूनी नजरबंदी के मामलों को छिपाने के लिए अक्सर दावा करती है कि पुलिस थाने में लगे सीसीटीवी कैमरेकाम नहीं कर रहे: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

15 Jun 2021 4:00 AM GMT

  • पुलिस  गैरकानूनी नजरबंदी के मामलों को छिपाने के लिए अक्सर दावा करती है कि पुलिस थाने में लगे सीसीटीवी कैमरेकाम नहीं कर रहे: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य में स्थानीय पुलिस अधिकारियों द्वारा याचिकाकर्ता की कथित गैरकानूनी हिरासत के खिलाफ दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए प्रथम दृष्टया टिप्पणी की कि दायित्व से बचने के लिए पुलिस अक्सर झूठा रुख अपनाती है कि पुलिस स्टेशन में लगाए गए सीसीटीवी काम नहीं कर रहे हैं।

    न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन की खंडपीठ ने कहा,

    "यह अदालत प्रथम दृष्टया महसूस करती है कि पुलिस द्वारा गैरकानूनी हिरासत के मामलों को छिपाने के लिए पुलिस यह तर्क देती है कि सीसीटीवी कैमरे खराब हैं।"

    इसमें कहा गया है कि पुलिस द्वारा लिया गया ऐसा रुख राज्य के आम नागरिकों के लिए अच्छा नहीं है, क्योंकि यह पुलिस को मानवाधिकारों और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की पूर्ण अवहेलना करते हुए दण्ड से मुक्ति के साथ कार्य करने का अवसर देने का माहौल बनाता है। थाने में किसी को भी हिरासत में लें और आसानी से स्पष्टीकरण दें कि सीसीटीवी कैमरे उस अवधि के दौरान काम नहीं कर रहे थे, जबकि नागरिक कहता है कि उसे पुलिस स्टेशन में गैरकानूनी रूप से हिरासत में लिया गया था।

    अदालत ने हिरासत की कथित तारीख के सीसीटीवी फुटेज प्रस्तुत नहीं करने के कारणों के संबंध में स्थानीय पुलिस और अभियोजक द्वारा दिए गए बयानों में विरोधाभास का उल्लेख करने के बाद यह टिप्पणी की है।

    पुलिस ने दावा किया कि सीसीटीवी फुटेज नहीं दिया जा सकता, क्योंकि कैमरे 17 फरवरी से काम नहीं कर रहे हैं। दूसरी ओर अभियोजक ने कहा कि उक्त अवधि के सीसीटीवी फुटेज याचिकाकर्ता को नहीं दिखाए जा सकते, क्योंकि इससे स्रोत मुखबिर की पहचान का पता चलेगा। .

    पीठ ने विपरीत रुख पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए टिप्पणी की,

    "याचिकाकर्ता के मामले के तथ्य मध्य प्रदेश राज्य में एक बहुत ही चौंकाने वाली स्थिति को प्रकट करते हैं।"

    यह नोट किया गया कि फुटेज को तार्किक रूप से नहीं देने के लिए अभियोजक के बहाने का मतलब है कि सीसीटीवी कैमरे काम कर रहे थे और वास्तव में एक फुटेज था। लेकिन दूसरी ओर पुलिस ने दावा किया कि फरवरी, 2021 से कैमरे ही खराब हो गए थे।

    इन परिस्थितियों में बेंच ने कहा कि मामला एक बड़े मुद्दे का खुलासा करता है और इसलिए उसने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई की अगली तारीख पर डीआईजी-भोपाल (शहरी) और एसपी (दक्षिण भोपाल) को तलब किया है।

    उन्हें एक स्पष्टीकरण के साथ आने के लिए कहा गया है कि 17.2.2021 से कैमरे क्यों खराब थे? क्या अधिकारियों को कैमरों की खराबी के बारे में सूचित किया जाना था, जो कि पीएस पिपलानी, भोपाल के एसएचओ द्वारा विधिवत सूचित किया गया था? यदि उन्हें इस बात की जानकारी दी गई थी कि उन अधिकारियों ने कम से कम समय में कैमरों को ठीक करने के लिए क्या कदम उठाए हैं।

    पृष्ठभूमि

    इस मामले में याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था कि उसे 22 फरवरी को भोपाल के सैर सपाटा से अवैध रूप से उठाया गया था। उसे पीएस पिपलानी ले जाया गया और वहां दो दिनों तक रखा गया। याचिकाकर्ता के परिवार को सूचित किया गया था कि उसे कुछ समय में रिहा कर दिया जाएगा, लेकिन बाद में उसके खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज की गई, जहां यह झूठा आरोप लगाया गया कि याचिकाकर्ता को 23 फरवरी को ड्रग्स रखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।

    इसलिए याचिकाकर्ता ने विशेष न्यायाधीश, एनडीपीएस के समक्ष एक आवेदन दिया। आवेदन में कहा गया था कि पिपलानी पुलिस स्टेशन के 22.02.2021 से 24.02.2021 तक के सीसीटीवी फुटेज को सुरक्षित किया जाए और अदालत के सामने लाया जाए, जिससे स्पष्ट रूप से पता चलेगा कि उस समय के दौरान याचिकाकर्ता गैरकानूनी हिरासत में था।

    इसके जवाब में अभियोजक ने प्रस्तुत किया कि उक्त अवधि के सीसीटीवी फुटेज याचिकाकर्ता को नहीं दिखाए जा सकते, क्योंकि इससे स्रोत की पहचान का पता चलेगा। हालांकि, अदालत को दी गई पुलिस रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ कि सीसीटीवी फुटेज क्यों नहीं दिए जा सकते, क्योंकि थाना में 17.2.2021 से सीसीटीवी कैमरे काम नहीं कर रहे थे।

    केस शीर्षक: ऋत्विक कौशल बनाम मध्य प्रदेश राज्य

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