पुलिस इन दिनों डिजिटल जानकारी, CCTV फुटेज पर विश्वास कर रही है, लेकिन उनके काम के सवाल पर इसका विवरण देने से कतराती है : एमपी हाईकोर्ट ने NDPS केस में ज़मानत स्वीकार की

LiveLaw News Network

9 July 2021 7:26 AM GMT

  • पुलिस इन दिनों डिजिटल जानकारी, CCTV फुटेज पर विश्वास कर रही है, लेकिन उनके काम के सवाल पर इसका विवरण देने से कतराती है : एमपी हाईकोर्ट ने NDPS केस में ज़मानत स्वीकार की

    Madhya Pradesh High Court

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने थाने के अंदर लगे सीसीटीवी कैमरों के संबंध में पुलिस के संस्करण में विरोधाभास पाते हुए एनडीपीएस मामले के संबंध में एक आरोपी को जमानत दे दी है। कोर्ट ने यह आदेश यह देखते हुए दिया कि पुलिस आजकल सीसीटीवी फुटेज और डिजिटल जानकारी के उपयोग पर निर्भर है, मगर जब अपने स्वयं के कामकाज की बात आती है, तो वह विवरण देने से कतराती है।

    न्यायमूर्ति सुबोध अभ्यंकर की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा:

    "यह ध्यान रखना दिलचस्प है कि तकनीकी प्रगति के कारण पुलिस आजकल आरोपी व्यक्तियों को अपराध से जोड़ने के लिए डिजिटल जानकारी जैसे टावर स्थानों, कॉल विवरण, सीसीटीवी फुटेज, व्हाट्सएप चैट, ईमेल इत्यादि पर बहुत अधिक निर्भर करती है। लेकिन जब उनके अपने काम करने की बात आती है, तो वह ब्योरा देने से कतराते हैं। ऐसा तभी किया जाता है जब आपके पास छिपाने के लिए कुछ होता है।"

    आरोपी द्वारा एनडीपीएस एक्ट की धारा 8, 22 और 29 के तहत दर्ज प्राथमिकी में जमानत की अर्जी दाखिल की गई थी। एक अन्य सह आरोपी के साथ कथित तौर पर 50 ग्राम ड्रग्स रखने के बाद आवेदक पिछले साल 8 दिसंबर से हिरासत में था।

    अदालत ने सह-आरोपी को उसके द्वारा प्रस्तुत सीसीटीवी फुटेज को ध्यान में रखते हुए जमानत दे दी थी, ताकि यह दिखाया जा सके कि वह घटना स्थल पर मौजूद नहीं था।

    ऐसा ही मामला उस आवेदक का भी था, जिसने दावा किया था कि उसे कथित मौके से गिरफ्तार नहीं किया गया था, बल्कि उसे थाने के अंदर पुलिस को बुलाया गया था। मामले में झूठा फंसाया गया और फिर उसे गिरफ्तार कर लिया गया।

    यह भी प्रस्तुत किया गया था कि उन्होंने सीआरपीसी की धारा 91 के तहत संबंधित पुलिस स्टेशन के सीसीटीवी फुटेज प्राप्त करने के लिए आवेदन किया था। हालांकि, उन्हें सूचित किया गया था कि फुटेज प्रदान नहीं किया जा सकता है, क्योंकि यह केवल 6-7 दिनों की अवधि के लिए सहेजा जाता है।

    हालांकि याचिकाकर्ता का मामला यह था कि एक अन्य मामले में पुलिस का रुख अलग था जिसमें उसी तारीख के सीसीटीवी फुटेज के संबंध में कहा गया था कि थाने में लगे कैमरे काम नहीं कर रहे हैं।

    मामले के तथ्यों को देखते हुए न्यायालय ने कहा:

    "मामले के ऐसे तथ्यों और परिस्थितियों के तहत जब पुलिस थाने में लगे सीसीटीवी कैमरे के संबंध में दो बिल्कुल विपरीत रुख रखती है और वही परमवीर सिंह (सुप्रा) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय के विपरीत है। इस न्यायालय की सुविचारित राय में आवेदक का आवेदन उसे संदेह का लाभ देकर अनुमति के योग्य है।"

    उक्त टिप्पणियों के साथ, अदालत ने आवेदक को व्यक्तिगत जमानत बांड पर एक लाख रुपये की राशि और इतनी राशि के एक जमानतदार के साथ जमानत दे दी।

    हाल के एक फैसले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने प्रथम दृष्टया विचार किया था कि दायित्व से बचने के लिए पुलिस अक्सर यह झूठा रुख अपनाती है कि पुलिस स्टेशन में लगे सीसीटीवी काम नहीं कर रहे हैं।

    यह देखा गया है कि पुलिस द्वारा लिया गया ऐसा रुख राज्य के आम नागरिकों के लिए अच्छा नहीं है, क्योंकि यह पुलिस को मानवाधिकारों और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की पूरी तरह से अवहेलना करते हुए कार्रवाई करने का अवसर देने का माहौल बनाता है। उन्हें थाने में किसी को भी हिरासत में लेने में सक्षम बनाता है। साथ ही आसानी से स्पष्टीकरण देने के लिए कि सीसीटीवी कैमरे उस अवधि के दौरान खराब थे, जब नागरिक कहता है कि उसे पुलिस स्टेशन में अवैध रूप से हिरासत में लिया गया था।

    शीर्षक: विक्की पुत्र जयपालदास परियानी बनाम मध्य प्रदेश राज्य

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