पुलिस पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन की "बॉस" नहीं; एफआईआर दर्ज किए बिना/औपचारिक प्रक्रिया अपनाए बिना शिकायतों की जांच नहीं कर सकती: जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट
Avanish Pathak
8 Aug 2022 1:10 PM IST
जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि पुलिस को पब्लिक एडमिस्ट्रेटिव सिस्टम के सुपर बॉस के रूप में कार्य नहीं करना चाहिए।
जस्टिस राहुल भारती की पीठ ने कहा,
"यदि एक रैंक धारक पुलिस अधिकारी द्वारा किसी लोक सेवक की निगरानी की जाती है, वह भी प्राप्त शिकायत के बहाने, जिसे पहले औपचारिक प्रक्रिया में शामिल नहीं किया गया तो निश्चय ही लोक सेवक का अपना कार्य करने और अपने कर्तव्यों को पूरा करने में भरोसा कमजोर पड़ जाएगा।"
अदालत एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसके संदर्भ में याचिकाकर्ता ने, जो पीएचई विभाग में कनिष्ठ अभियंता के रूप में कार्यरत था, कार्रवाई पर सवाल उठाया था, जिसमें पुलिस अधीक्षक डोडा ने उसके खिलाफ की गई एक गुमनाम शिकायत और एसएचओ की कार्रवाई पर विचार किया था। याचिकाकर्ता के विभाग प्रमुख को भेजे गए आक्षेपित पत्र में याचिकाकर्ता के बारे में जानकारी मांगी गई थी।
याचिकाकर्ता ने याचिका में कह कि उसके खिलाफ यह गुमनाम शिकायत निहित स्वार्थ रखने वाले ऐसे लोगों ने दर्ज कराई थी, जो उसके ससुर के साथ समझौता करने के लिए राजनीतिक स्कोर कर रहे हैं।
याचिकाकर्ताओं ने आगे तर्क दिया कि मामले के इस सभी कथित पहलूओं का कानूनी पहलू के संदर्भ में कोई असर नहीं था, जो कि प्रतिवादी एसएसपी डोडा और एसएचओ, डोडा थाना की सक्षमता है कि वह उक्त गुमनाम शिकायत पर ध्यान दें और एफआइआर दर्ज किए बिना अपने स्तर पर इस पर कार्रवाई करें।
मामले पर फैसला सुनाते हुए जस्टिस भारती ने इस मामले में पुलिस के काम करने के तरीके पर तंज कसा और कहा कि प्रतिवादियों की ओर से दायर आपत्तियों के अध्ययन से पता चलता है कि यह कहीं नहीं बताया गया है कि कैसे प्रतिवादी संख्या 2 यानी पुलिस अधीक्षक डोडा ने उक्त शिकायत को याचिकाकर्ता के विभाग प्रमुख संदर्भित करने के बजाय स्वीकार कैसे लिया।
पीठ ने प्रतिवादियों की कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह भी सामने नहीं आ रहा है कि प्रतिवादी थाना प्रभारी, पुलिस थाना डोडा कैसे प्रतिवादी कार्यकारी अभियंता, पीएचई डिवीजन डोडा को एक पत्र को भेजकर उस पर तुरंत कार्रवाई करने के मकसद से उक्त अनाम शिकायत का इस्तेमाल किया, जिससे याचिकाकर्ता के बारे में जानकारी मांगी गई।
कानूनी दृष्टिकोण से स्थिति की जांच करते हुए, पीठ ने कहा कि उक्त गुमनाम शिकायत में लगाए गए आरोपों की प्रकृति को देखते हुए, यह पता लगाना मुश्किल है कि किस कानून ने प्रतिवादी थाना प्रभारी पुलिस स्टेशन डोडा को याचिकाकर्ता के खिलाफ प्रतिवादी कार्यकारी अभियंता, पीएचई डिवीजन डोडा को यह विवादित संचार भेजने में सक्षम बनाया।
पीठ ने दर्ज किया,
प्रतिवादी नंबर 4 ने इस मामले में कोई प्राथमिकी या प्रारंभिक जांच दर्ज नहीं की थी ताकि प्रतिवादी संख्या तीन यानि कार्यपालक अभियंता, पीएचई संभाग डोडा को विवादित संचार को संबोधित करने में उसकी ओर से किए गए कथित कार्य को औपचारिक और आधिकारिक बनाया जा सके।
कोर्ट ने कहा,
"यह अजीब है कि गुमनाम शिकायत के लेखक ने कहीं भी इस तथ्य का उल्लेख नहीं किया है कि उसने शिकायत को सीधे पुलिस अधीक्षक, डोडा को संबोधित करने के लिए चुना है, न कि संबंधित मुख्य अभियंता को। और शिकायत में कोई संदर्भ नहीं है कि शिकायतकर्ता ने वास्तव में पहले संबंधित मुख्य अभियंता या याचिकाकर्ता के वरिष्ठ अधिकारियों को उनकी आधिकारिक स्थिति से संबंधित याचिकाकर्ता की ओर से चूक के कथित कृत्यों के बारे में अवगत कराया था। यह पहलू दिखाता है कि उक्त गुमनाम शिकायत और कुछ नहीं बल्कि एक लोक सेवक को परेशान करने के उद्देश्य से की गई एक व्यवस्था थी।"
याचिका को स्वीकार करते हुए, पीठ ने तदनुसार थाना प्रभारी, पुलिस स्टेशन डोडा द्वारा कार्यकारी अभियंता, पीएचई डिवीजन डोडा को जारी किए गए संचार को रद्द कर दिया।
केस टाइटल: सादात हुसैन बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य।
साइटेशन : 2022 लाइव लॉ (जेकेएल) 92