[POCSO Act] पीड़िता के निजी अंगों पर चोटों का अभाव यह मानने का कोई आधार नहीं कि पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट नहीं हुआ: दिल्ली हाईकोर्ट

Shahadat

14 Aug 2023 11:41 AM GMT

  • [POCSO Act] पीड़िता के निजी अंगों पर चोटों का अभाव यह मानने का कोई आधार नहीं कि पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट नहीं हुआ: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि पीड़िता के निजी अंगों पर चोटों का न होना यह मानने का आधार नहीं हो सकता कि पॉक्सो एक्ट के तहत पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट नहीं हुआ।

    जस्टिस अमित बंसल ने जून 2017 में साढ़े चार साल की बच्ची से बलात्कार करने के लिए व्यक्ति की सजा को बरकरार रखते हुए यह टिप्पणी की।

    अदालत ने पाया कि वह व्यक्ति, जो नाबालिग का पड़ोसी था, अभियोजन पक्ष के वर्जन को हिला नहीं सका, जिसने उचित संदेह से परे अपने मामले को सफलतापूर्वक साबित कर दिया।

    अदालत ने कहा,

    “ट्रायल कोर्ट ने सही ढंग से देखा कि यौन अपराधों के मामलों में निजी अंगों पर चोट विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है जैसे कि सम्मिलन की गहराई, अन्य। यह जरूरी नहीं कि हर मामले में चोट ही लगे। इसलिए केवल चोटों का न होना यह मानने का आधार नहीं हो सकता कि प्रवेशन यौन हमला नहीं हुआ।'

    इसमें कहा गया कि व्यक्ति सबूत पेश करके या अभियोजन पक्ष के सबूतों को बदनाम करके पॉक्सो एक्ट के तहत उसके खिलाफ लगाए गए अनुमान का सफलतापूर्वक खंडन करने में विफल रहा।

    जस्टिस बंसल ने भारतीय दंड संहिता, 1860 (आईपीसी) की धारा 342, 363 और 376 और पॉक्सो एक्ट की धारा 6 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए 18 सितंबर, 2021 के आदेश के जरिए अपनी दोषसिद्धि को चुनौती देने वाली व्यक्ति की अपील खारिज कर दी।

    अदालत ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को भी बरकरार रखा, जिसमें उसे पॉक्सो एक्ट के तहत 12 साल के कठोर कारावास और आईपीसी की धारा 363 और धारा 342 के तहत क्रमशः तीन साल और छह महीने के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई।

    अदालत ने कहा,

    “उपरोक्त चर्चा के मद्देनजर, मुझे आईपीसी की धारा 342/363/376 और पॉक्सो एक्ट की धारा 6 के तहत अपराध के लिए अपीलकर्ता को दोषी ठहराने वाले आक्षेपित फैसले में कोई खामी नहीं मिली। उपरोक्त के मद्देनजर, अपील में कोई योग्यता नहीं है और इसे खारिज किया जाता है।”

    इसमें कहा गया कि पीड़िता ने पुलिस द्वारा सीआरपीसी की धारा 164 के तहत और एमएलसी के समक्ष डॉक्टर को दर्ज कराए गए अपने बयान में स्पष्ट रूप से कहा कि उस व्यक्ति ने उसके निजी अंगों के अंदर अपनी उंगली डाली।

    अदालत ने कहा,

    “मुकदमे के दौरान अपने बयान में पीड़िता ने कहा कि अपीलकर्ता उसे अपने घर ले गया और उसका अंडरवियर उतार दिया। उसके निजी अंगों में अपनी उंगली डाल दी। उन्होंने आगे कहा कि उन्हें दर्द भी महसूस हुआ। पीड़िता ने अदालत में अपीलकर्ता की पहचान भी की।”

    इसमें कहा गया,

    “इसमें कोई संदेह नहीं कि पीड़िता अपने अन्य सभी बयानों में सुसंगत रही और स्पष्ट रूप से कहा कि अपीलकर्ता ने उसके निजी अंगों में अपनी उंगली डाली। दरअसल, कोर्ट के सामने अपनी गवाही में उसने कहा कि इस हरकत से उसे काफी शारीरिक पीड़ा हुई। इस प्रकार, सीआरपीसी की धारा 164 के तहत उसके बयान में विरोधाभास मामूली है। यह उसकी गवाही को अविश्वसनीय नहीं बनाता। ट्रायल कोर्ट ने सही कहा कि घटना के समय पीड़िता बहुत छोटी थी और मामूली विरोधाभास उसकी गवाही पर अविश्वास करने का आधार नहीं हो सकते।'

    अदालत ने यह भी देखा कि पीड़िता के बयानों की उसकी मां के बयान से पुष्टि हुई, जिन्होंने स्पष्ट रूप से बताया कि पीड़िता के घर आने के तुरंत बाद उसने उससे घटना के बारे में पूछा, जिस पर उसने जवाब दिया कि उस व्यक्ति ने उसके निजी अंगों के अंदर अपनी उंगली डाली।

    केस टाइटल: रंजीत कुमार यादव बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली राज्य

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