ऑर्डर VII रूल्स 11 सीपीसी के तहत आवेदन पर विचार करते समय लिखित बयान में दी गई प्रतिवादी की दलील पूरी तरह अप्रासंगिक: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

21 Jan 2022 9:04 AM GMT

  • ऑर्डर VII रूल्स 11 सीपीसी के तहत आवेदन पर विचार करते समय लिखित बयान में दी गई प्रतिवादी की दलील पूरी तरह अप्रासंगिक: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    Madhya Pradesh High Court

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने दीवानी न्यायालय के ऑर्डर के खिलाफ दीवानी पुनरीक्षण पर निर्णय करते हुए माना कि ऑर्डर VII रूल 11 सीपीसी के तहत प्रस्तुत आवेदन को अस्वीकार करना अवैध होगा यदि अदालत ने प्रतिवादी के लिखित बयान की मांग की है, बजाय शिकायत में दिए बयानों पर निर्णय करने पर।

    जस्टिस अनिल वर्मा ने कहा,

    "ऑर्डर VII रूल 11 सीपीसी के क्लॉज (ए) और (डी) के तहत एक आवेदन पर निर्णय लेने के उद्देश्य के लिए वाद में दिए बयान महत्वर्ण हैं; प्रतिवादी द्वारा लिखित बयान में दी गई दलीलें उस स्तर पर पूरी तरह से अप्रासंगिक होंगी, इसलिए, ऑर्डर VII रूल 11 सीपीसी के तहत आवेदन पर निर्णय लिए बिना लिखित बयान दर्ज करने का निर्देश निचली अदालत द्वारा अधिकार क्षेत्र के प्रयोग को छूने वाली प्रक्रियात्मक अनियमितता नहीं हो सकता है।"

    मामले में कोर्ट दरअसल एक दीवानी न्यायालय के आदेश के खिलाफ दायर एक दीवानी पुनरीक्षण का निस्तारण कर रही थी, जिसमें ऑर्डर VII रूल 11 सीपीसी के तहत याचिकाकर्ता/प्रतिवादी के आवेदन को इस आधार पर खारिज कर दिया गया था कि उनकी दलीलों और सभी पक्षों द्वारा पेश किए गए सबूतों के आधार पर उनके तर्क पर फैसला सुनाया जाएगा।

    याचिकाकर्ता/प्रतिवादी का मामला यह था कि प्रतिवादी/वादी ने वाद भूमि के कब्जे के साथ-साथ बिक्री विलेखों की घोषणा और उन्हें रद्द करने के लिए एक मुकदमा दायर किया था। याचिकाकर्ताओं/प्रतिवादियों को नोटिस तामील करने के बाद, उन्होंने ऑर्ड VII रूल 11 के तहत वाद को खारिज करने की मांग की।

    उन्होंने सिविल कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया कि उक्त भूमि विवाद मध्य प्रदेश भू-राजस्व संहिता, 1959 की धारा 170-बी और धारा 257 के प्रावधानों के तहत आता है, जो स्पष्ट रूप से दीवानी अदालत को मामले में अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने से रोकता है।

    हालांकि, सिविल जज ने आवेदन को खारिज कर दिया और इसलिए, पुनरीक्षण दायर किया गया था।

    प्रतिवादी / वादी ने तर्क दिया कि मुकदमा एमपीएलआरसी की धारा 257 के तहत कवर नहीं किया गया था, इसलिए, मामले पर विचार करने के लिए सिविल कोर्ट का अधिकार क्षेत्र था। अत: पुनरीक्षण याचिका में कोई दम नहीं था और यह खारिज किए जाने योग्य थी।

    निचली अदालत द्वारा आवेदन को खारिज करते हुए लिए गए आधारों की जांच करते हुए, अदालत ने आदेश VII नियम 11 के प्रावधानों के पहलुओं को स्पष्ट किया। इसने नोट किया कि -

    ऑर्डर VII रूल्स 11 सीपीसी यह स्पष्ट करता है कि प्रासंगिक तथ्य जिन पर एक आवेदन पर निर्णय लेने के लिए ध्यान देने की आवश्यकता है, वे वाद में दिए गए कथन हैं। ट्रायल कोर्ट ऑर्डर VII रूल्स 11 सीपीसी के तहत वाद के किसी भी चरण में शक्ति का प्रयोग कर सकता है,- वाद को पंजीकृत करने से पहले या ट्रायल के समापन से पहले प्रतिवादी को किसी भी समय सम्मन जारी करने के बाद.... ऑर्डर VII रूल्‍ 11 सीपीसी के क्लॉज (ए) और (डी) के तहत एक आवेदन पर निर्णय लेने के उद्देश्य के लिए वादपत्र में दिए गए तथ्य महत्वपूर्ण हैं; प्रतिवादी द्वारा लिखित बयान में की गई दलीलें उस स्तर पर पूरी तरह से अप्रासंगिक होंगी, इसलिए, ऑर्डर VII रूल्स 11 सीपीसी के तहत आवेदन का निर्णय किए बिना लिखित बयान दर्ज करने का निर्देश प्रक्रियात्मक अनियमितता नहीं हो सकता है...।

    अदालत ने मामले को निचली अदालत को सौंपते हुए निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता/प्रतिवादी द्वारा ऑर्डर VII रूल 11 के तहत दायर आवेदन को पक्षकारों को सुनवाई का अवसर प्रदान करने के बाद, कानून के अनुसार वाद में दिए गए कथनों के आधार पर तय किया जाए।

    याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता वीके जैन ने किया। वैभव जैन ने उन्हें सहयोग दिया। प्रतिवादी का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता एएस गर्ग ने किया। निधि बोहरा ने उन्हें सहयोग दिया।

    राज्य का प्रतिनिधित्व अमय बजाज ने किया।

    केस टाइटल: Foti Rakabchand Jain through LRs Vs. Foti Ratanlal Jain through LRs

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