सुप्रीम कोर्ट में याचिका, आंध्र प्रदेश में सिविल जज परीक्षा के लिए वकील के रूप तीन साल की प्रैक्टिस की आनिवार्य अर्हता को रद्द करने की मांग

LiveLaw News Network

30 Dec 2020 5:15 AM GMT

  • National Uniform Public Holiday Policy

    Supreme Court of India

    सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका में आंध्र प्रदेश में सिविल जज की परीक्षा के लिए आवश्यक अर्हता, वकील के रूप तीन साल की प्रैक्टिस, को समाप्त करने की मांग की गई है।

    आंध्र प्रदेश राज्य न्यायिक सेवा नियम, 2007 के नियम 5 (2) (a) (i), जिसे 28.07.2017 को G.O.Ms.no. 29 और 03.12.2020 की नोटिफिकेशन संख्या 9/2020 - RC के क्लॉज III(a) के जर‌िए अध‌िसूचित किया गया था, को आंध्र प्रदेश राज्य न्यायिक सेवा की सिविल जज परीक्षा के अभ्यर्थी रेगलगड्डा वेंकटेश ने अपनी याचिका में संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के उल्लंघन में बताया है।

    "मामले के संक्ष‌िप्त तथ्य यह हैं कि वर्ष 2008 में तत्कालीन संयुक्त आंध्र प्रदेश (विभाजन से पहले) ने G.O.Ms. no. 119, कानून मंत्रालय, 02.08.2008 के जर‌िए 'आंध्र प्रदेश राज्य न्यायिक सेवा नियम, 2007' अधिसूच‌ित किया, जिसका नियम 5 (2) (a) (i) निम्नानुसार है:

    '2. सिविल जज:

    (a) सीधी भर्ती द्वारा: सिविल जजों की श्रेणी में नियुक्त किया जाने वाला व्यक्ति होगा:

    (i) भारत में विधि द्वारा स्थापित किसी भी विश्वविद्यालय द्वारा प्रदत्त कानून की डिग्री धारक व्यक्त‌ि,"

    एडवोकेट चिराग शर्मा और बालाजी येलामंजुला और एओआर एमपी शोरवाला के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है,

    'वर्ष 2014 में संयुक्त आंध्र प्रदेश को तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में विभाजित कर दिया गया। हालांकि, दोनों नवगठित राज्यों का एक ही उच्च न्यायालय (कॉमन हाईकोर्ट) यानी आंध्र प्रदेश और तेलंगाना उच्च न्यायालय, हैदराबाद था। इसके बाद 28.07.2017 को, आंध्र प्रदेश राज्य ने 2007 के नियमों में कुछ संशोधन अधिसूचित किए।

    2007 के नियमों के नियम 5 (2) (a) (i), जिस पर सवाल उठाया गया है, को इस प्रकार संशोधित किया गया,

    '2. "सिविल जज:

    (a) सीधी भर्ती द्वारा: सिविल जजों की श्रेणी में नियुक्त किया जाने वाला व्यक्ति होगा:

    (i) वह, जो समाचार पत्रों में विज्ञापन के प्रकाशन की तारीख से, कम से कम 3 वर्ष पहले से, एक वकील के रूप में प्रैक्टिस कर कर रहा है,"

    इस प्रकार, इस संबंध में, यह प्रस्तुत किया गया है कि वर्ष 2017 में आंध प्रदेश राज्य द्वारा नियम 5 (2) (a) (i) में किए गए संशोधन के अनुसार, सिविल जज के रूप में सीधी भर्ती की पात्रता के लिए, समाचार पत्रों में विज्ञापन के प्रकाशन की तारीख से, कम से कम तीन वर्ष पहले से, वकील के रूप में अभ्यास करना अनिवार्य है....

    याचिका में कहा गया है कि नियम 5 (2) (a) (i) में ऐसा ही संशोधन तेलंगाना ने भी अधिसूचित किया था।

    "दोनों राज्यों द्वारा अधिसूचित संशोधनों के खिलाफ रिट याचिकाओं के बैच कॉमन हाईकोर्ट में दायर किए गए थे, जिसमें नियम 5(2)(a)(i)को संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के ‌खिलाफ बताते हुए चुनौती दी गई।"

    उपरोक्त रिट याचिकाएं लंबित ही थीं कि जनवरी 2019 में कॉमन हाईकोर्ट को तेलंगाना उच्च न्यायालय, हैदराबाद और उत्तरदाता संख्या 2 के बीच विभाजित कर दिया गया। यह उल्लेख करना प्रासंगिक है ‌कि उच्च न्यायालय के विभाजन के बाद रिट याचिकाओं के एक बैच को तेलंगाना हाईकोट को संदर्भ‌ित किया गया, जिसमें नियम 5 (2) (a) (i) के संशोधन को चुनौती दी गई, जिसे बाद में तेलंगाना राज्य द्वारा 5 (2) (a) (i) किए गए संशोधन को असंवैधानिक करार देते हुए, और "ऑल इंडिया जज एसोसिएशन और अन्य बनाम भारत संघ और अन्‍य [2002 (4) एससीसी 247] में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के खिलाफ मानते हुए, अनुमति दी गई।"

    इस प्रकार, उक्त निर्णय के आलोक में यह प्रस्तुत किया जाता है कि सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक सेवाओं में प्रवेश और प्रतिस्पर्धा के लिए पात्रता के रूप में अधिवक्ता के रूप में तीन सालों के अनिवार्य अभ्यास के खिलाफ फैसला दिया है। इसके अलावा, तेलंगाना उच्च न्यायालय ने भी नियम 5 (2) (a) (i) में संशोधन असंवैधानिक करार दिया है।

    य‌ाचिका में कहा गया है, "दूसरी ओर, उत्तरदाता संख्या 1 ने वर्ष 2017 में, ऑल इंडिया जज एसोसिएशन और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य (सुप्रा) में माननीय सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विपरीत उक्त ‌नियम को अधिसूचित किया। इसके बाद उत्तरदाता संख्या 1 के अनुरूप, उत्तरदाता संख्या 2 (आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट) ने अधिसूचना जारी की है, और सिविल जज पद पर भर्ती के लिए आवेदन आमंत्रित किए।"

    याचिका में कहा गया है कि आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा 03.12.2020 को एक अधिसूचना संख्या 9/2020 - RC जारी की गई था, जिसके जरिए आंध्र प्रदेश राज्य न्यायिक सेवा में सिविल जज (जूनियर डिवीजन) के पद पर नियुक्ति के लिए आवेदन आमंत्रित किए गए, जिसमें तीन साल की प्रैक्टिस की शर्त रखी गई थी।

    अधिसूचना के प्रकाशन के बाद, उत्तरदाता संख्या 2 के समक्ष रिट याचिकाओं का एक बैच दायर किया गया, जिसमें उक्त खंड की वैधता को चुनौती दी गई। उत्तरदाता द्वारा इस मामले को 04.02.2021 के लिए सूचीबद्ध किया गया है , जबकि सिविल जज परीक्षा के लिए आवेदन की अंतिम तिथि 02.01.2021 है।

    याचिका में कहा गया है, "माननीय न्यायालय के उपरोक्त फैसलों के विपरीत प्रश्नगत नियम/खंड को थोपने से याचिकाकर्ता, और कई ऐसे इच्छुक उम्मीदवारों को कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है और इस प्रकार यह याचिकाकर्ता के लिए अत्यावश्यक है कि वह माननीय न्यायालय से संपर्क करें।"

    Next Story