सुप्रीम कोर्ट में याचिका : कथित तौर पर नफरत फैलाने वाली और फेक न्यूज के लिए आपराधिक मुकदमा चलाने के लिए अलग से कानून बनाने की मांग

LiveLaw News Network

31 Oct 2020 2:00 PM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट में याचिका : कथित तौर पर नफरत फैलाने वाली और फेक न्यूज के लिए आपराधिक मुकदमा चलाने के लिए अलग से कानून बनाने की मांग

    सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (पीआईएल) याचिका दायर की गई है, जिसमें मांग की गई है कि केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाए कि वह सोशल मीडिया के माध्यम से नफरत फैलाने वाली और फर्जी खबरें फैलाने के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाने के लिए अलग से कानून बनाएंं।

    इस याचिका में केंद्र सरकार, केंद्रीय गृह मंत्रालय, कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय, दूरसंचार मंत्रालय, ट्विटर कम्युनिकेशंस इंडिया प्राइवेट लिमिटेड और फेसबुक इंडिया को प्रतिवादी बनाया गया है।

    यह याचिका एडवोकेट विनीत जिंदल ने एडवोकेट राज किशोर चैधरी के माध्यम से दायर की है,जिसमें कहा गया है किः

    ''याचिकाकर्ता ने मजबूर होते हुए वर्तमान में यह जनहित याचिका दायर की है ताकि प्रतिवादियों को सोशल मीडिया प्लेटफार्मों को विनियमित/ नियंत्रित करने के लिए कानून बनाने का निर्देश दिया जा सकें।''

    इसके अलावा, याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया है कि हिंदू देवी के खिलाफ ट्विटर हैंडल @ArminNavabi से एक अरमिन नवाबी ने दो ट्वीट्स किए हैं,जिनमें अपमानजनक भाषा का उपयोग किया गया है। इनके मद्देनजर यह याचिका दायर की जा रही है।

    याचिका में यह भी कहा गया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक जटिल अधिकार है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मुकम्मल नहीं है और इसके साथ विशेष कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का पालन करना होता है इसलिए यह अधिकार कानून द्वारा प्रदान किए गए कुछ प्रतिबंधों के अधीन होता है।

    याचिका में कहा गया है कि,

    '' अलग-अलग देशों द्वारा लागू किए गए विनियमन मानकों को देखना भारत के लिए लाभदायक होगा ताकि वे अपने ऐसे दिशानिर्देशों को प्रस्तुत कर सकें, जो बोलने की आजादी और सोशल मीडिया प्लेटफार्मों की जवाबदेही के बीच संतुलन बना सकें।''

    गौरतलब है कि, इस याचिका में कहा गया है कि,

    ''हमारे देश ने अतीत में बहुत सारी सांप्रदायिक हिंसा देखी है, लेकिन आज के सोशल मीडिया के समय में, ये आक्रामकता केवल क्षेत्रीय या स्थानीय आबादी तक ही सीमित नहीं है, बल्कि ये पूरे देश को अपने साथ ले लेती हैं। अफवाहें, व्यंग्य और घृणा एक स्थानीय सांप्रदायिक झड़प में आग लगाने का काम करती है,परंतु यही आग सोशल मीडिया के जरिए तुरंत पूरे देश में फैल जाती है। इसने स्थानीय सांप्रदायिक संघर्ष और राष्ट्रीय सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के बीच सामाजिक दूरी को कम कर दिया है। आज, एक स्थानीय सांप्रदायिक संघर्ष को कुछ ही सेकंडों में राष्ट्रीय मुद्दा बनाया जा सकता है और बड़े सांप्रदायिक आख्यानों का निर्माण स्थानीय घटनाओं के पैचवर्क से किया जा सकता है।''

    दलील में कई घटनाओं के बारे में उल्लेख किया गया है, जो कथित रूप से सोशल मीडिया के कारण ट्रिगर किए गए थे, उदाहरण के लिए-

    - 2014 पुणे केस ,जो एक फेसबुक पोस्ट से संबंधित है, जिसमें योद्धा राजा शिवाजी महाराज, दिवंगत शिवसेना नेता बाल ठाकरे और अन्य का कथित अपमानजनक संदर्भ देते हुए मानहानि वाली तस्वीरें पोस्ट की गई थी।

    - 2013, मुजफ्फरनगर केस (एक फर्जी वीडियो साझा किया गया था जो सांप्रदायिक झड़पों को बढ़ाने का कारण बन गया था)

    - 2012 में तिब्बतियों के फर्जी और मॉर्फ किए गए वीडियो,इस दावे के तहत प्रसारित किए गए थे कि उन्होंने म्यांमार में रोहिंग्याओं का उत्पीड़न किया है, जिससे लोगों के बड़े पैमाने पर पलायन और यहां तक कि कुछ महानगरीय शहरों में कुछ दंगे भी हुए थे।

    -द इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट का हवाला देते हुए, दलील में कहा गया है कि सोशल मीडिया पोस्ट ने पश्चिम बंगाल में एक महीने में 7 सांप्रदायिक दंगे करवाए थे।

    गौरतलब है कि हफपोस्ट द्वारा साझा किए गए एक वीडियो का हवाला देते हुए, दलील में कहा गया है कि उत्तरी-पूर्वी दिल्ली में हिंदू-मुस्लिम दंगों के दौरान दिल्ली पुलिस के विभिन्न वीडियो वायरल होने लगे थे।

    इसी तरह एक वीडियो में दिखाया गया है कि पुलिस युवा, घायल मुस्लिम पुरुषों को परेशान कर रही है। इस संदर्भ में, दलील में कहा गया है, ''इस तरह के सबूतों ने उस लोकप्रिय धारणा को मजबूत करने में मदद की है,कि दिल्ली पुलिस या तो सांप्रदायिक हिंसा को विफल करने में लापरवाह रही है या उसमें उलझी रही।''

    इसके अलावा, दलील में कहा गया है कि भारत में सांप्रदायिक हिंसा भड़काने के लिए सोशल मीडिया एक हानिकारक भूमिका निभा रहा है और इस दुरुपयोग को रोकने के लिए समय आ गया है।

    यह तर्क दिया गया है कि सोशल नेटवर्किंग साइटें राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हैं क्योंकि इनका उपयोग मादक पदार्थों की तस्करी, मनी लॉन्ड्रिंग और मैच फिक्सिंग, आतंकवाद और हिंसा भड़काने और अफवाह फैलाने वाले उपकरणों आदि के लिए किया जा रहा है।

    याचिका में कहा गया है कि,''सोशल मीडिया इंस्ट्रूमेंट्स जैसे ब्लॉग्स, माइक्रोब्लॉग्स, डायलॉग बोर्ड्स, एसएमएस और शायद सबसे ज्वलंत समस्या यानी सोशल नेटवर्किंग वेब साइट्स जैसे फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप इत्यादि हैं।''

    याचिकाकर्ता ने निम्नलिखित राहत के लिए प्रार्थना की है-

    1.सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को विनियमित करने के लिए अलग कानून बनाने के लिए प्रतिवादियों को निर्देश देने वाला परमादेश जारी किया जाए।

    2.सोशल मीडिया हाउस यानी फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम आदि को सीधे तौर पर समाज के बीच नफरत फैलाने वाले भाषणों के लिए जिम्मेदार ठहराने के लिए प्रतिवादियों को निर्देश देने वाला परमादेश दिया जाए।

    3.सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से घृणा और नकली समाचार फैलाने में शामिल व्यक्तियों के आपराधिक केस चलाने के लिए अलग कानून बनाने के लिए प्रतिवादियों को निर्देश दिया जाए। जो परमादेश की प्रकृति में हो।

    4. प्रतिवादियों को एक तंत्र स्थापित करने का निर्देश दिया जाए कि जो कम समय सीमा के भीतर ही अभद्र भाषा और फर्जी समाचार को अपने आप हटा दें ताकि इस तरह के नफरत भरे भाषणों या नकली समाचारों के काउंटर उत्पादन को कम से कम किया जा सके।

    5. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से घृणा और नकली समाचार फैलाने के लिए दर्ज प्रत्येक मामले में एक विशेषज्ञ जांच अधिकारी नियुक्त करने के लिए भी प्रतिवादियों को निर्देश देने वाला परमादेश जारी किया जाए।

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