मद्रास हाईकोर्ट में TNDALU में पीएचडी आवेदन के लिए उम्मीदवार को 2 साल का एलएलएम करने की शर्त के खिलाफ याचिका दायर

LiveLaw News Network

21 May 2021 1:14 PM GMT

  • God Does Not Recognize Any Community, Temple Shall Not Be A Place For Perpetuating Communal Separation Leading To Discrimination

    मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट में एक याचिका दायर करके पीएचडी के आवेदन के लिए दो वर्षीय मास्टर डिग्री वाले पोस्ट ग्रेजुएट्स को ही अनुमति दिये जाने को लेकर तमिलनाडु डॉ. अम्बेडकर लॉ यूनिवर्सिटी पीएचडी नियमावली 2020 (पीएचडी रेग्यूलेशन्स) की शर्त को चुनौती दी गयी है।

    न्यायमूर्ति अनिता सुमंत और न्यायमूर्ति सेंथिल कुमार रमामूर्ति की डिवीजन बेंच ने गुरुवार को इस मामले को सुनवाई के लिए स्वीकार किया। इस बीच याचिकाकर्ता को यूनिवर्सिटी में पीएचडी के लिए आवेदन की अनुमति दे दी गयी है।

    एडवोकेट एम निर्मल कुमार, अदीब मोहम्मद और टी अरिवोली के जरिये सुगन्या जेबा सरोजिनी द्वारा दायर याचिका में पीएचडी रेग्यूलेशन्स को चुनौती दी गयी है जो केवल लॉ में दो वर्षीय मास्टर डिग्री वाले पोस्ट ग्रेजुएट्स उम्मीदवार को ही आवेदन की अनुमति प्रदान करती है। इस शर्त को गैर तार्किक और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करार देते हुए याचिकाकर्ता ने दलील दी है कि अपनी पीएचडी नियमावली को प्रभावी बनाकर तमिलनाडु डॉ. अम्बेडकर लॉ यूनिवर्सिटी ने पीएचडी प्रोग्राम में प्रवेश के उद्देश्य के लिए वैध मास्टर डिग्री को भी अवैध करार दे दिया है।

    यह दावे के साथ प्रमाणित करता है कि उपरोक्त शर्त पीएचडी एडमिशन के उद्देश्य से वैध फुल टाइम मास्टर डिग्री वाले पोस्ट ग्रेजुएट को दो भागों में वर्गीकृत करती है, पहला 'लॉ में दो वर्षीय मास्टर डिग्री' रखने वाले और दूसरा- 'अन्य' श्रेणी, जो समानता के अधिकार का उल्लंघन है।

    इतना ही नहीं, इस तथ्य का संज्ञान लेते हुए भी कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की 2012 की गाइडलाइंस के तहत देश के ज्यादातर विश्वविद्यालयों ने अपने दो वर्षीय एलएलएम प्रोग्राम को एक वर्षीय प्रोग्राम में तब्दील कर दिया है, यह कहा जा सकता है कि तमिलनाडु डॉ. अम्बेडकर लॉ यूनिवर्सिटी ने जान बूझकर और अतार्किक तरीके से उन उम्मीदवारों को पीएचडी में प्रवेश के आवेदन से रोका है जिनके पास वैध मास्टर डिग्री मौजूद है।

    इससे इतर, यह भी दलील दी गयी है कि दो वर्षीय और एक वर्षीय मास्टर डिग्री रखने वाले व्यक्तियों के बीच विभेद अवास्तविक और व्यापक भेदभाव पूर्ण तथा शासकीय न्यायशास्त्र के सिद्धांतों के विरुद्ध है।

    याचिकाकर्ता ने यद्यपि संबद्ध यूनिवर्सिटी की लॉ पीएचडी में आवेदन की अनुमति का अंतरिम अनुरोध किया है, लेकिन उसने संबंधित नियमावली की शर्त को संविधान के सिद्धांतों के विपरीत घोषित करने की न्यायालय से मांग भी की है।

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