कथित तौर पर फर्जी एससी प्रमाणपत्र बनवाने के लिए समीर वानखेड़े को सिविल सेवा से बर्खास्त करने की मांग को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर

LiveLaw News Network

22 Nov 2021 11:07 AM IST

  • कथित तौर पर फर्जी एससी प्रमाणपत्र बनवाने के लिए समीर वानखेड़े को सिविल सेवा से बर्खास्त करने की मांग को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर

    बॉम्बे हाईकोर्ट में दायर एक याचिका में केंद्रीय नौकरी हासिल करने के लिए अनुसूचित जाति (एससी) से संबंधित झूठे जाति के दावे करने के लिए एनसीबी के क्षेत्रीय निदेशक समीर वानखेड़े को सिविल सेवाओं से बर्खास्त करने की मांग की गई है।

    जबरन वसूली के आरोप सामने आने से पहले समीर वानखेड़े शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान से जुड़े क्रूज ड्रग्स मामले की जांच कर रहे थे।

    बाद में मामला को एनसीबी की विशेष जांच टीम, दिल्ली को स्थानांतरित कर दिया गया।

    याचिका के अनुसार, वानखेड़े ने खुद के मुसलमान होने की बात को छुपाया। वह मुस्लिम माता-पिता दाऊद और ज़ाहिदा बानो की संतान हैं और एससी श्रेणी में भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) में शामिल हो गए।

    याचिका में कहा गया,

    "समीर वानखेड़े ने अपने धर्म को छुपाकर फर्जी तरीके से आईआरएस नौकरी पाने के लिए नकली जाति प्रमाण पत्र प्राप्त किया। हकीकत में वह अनुसूचित जाति के व्यक्ति के रूप में प्रदत्त लाभों से वंचित है, इसलिए वह अनुसूचित जाति कोटा से अपनी सिविल सेवा जारी रखने के हकदार नहीं है। वह आईआरएस नौकरी प्राप्त करने के लिए सरकार को धोखाधड़ी और झूठी जानकारी देने के लिए सजा पाने के लिए भी उत्तरदायी है।"

    सामाजिक कार्यकर्ता होने का दावा करने वाले अशोक महादेव कांबले द्वारा दायर याचिका में कहा गया कि जाति प्रमाण पत्र जांच समिति को वानखेड़े के जाति और धार्मिक दावों का सत्यापन करना चाहिए और उसके अनुसार आपराधिक कार्रवाई करनी चाहिए।

    याचिका में कहा गया,

    "माननीय न्यायालय प्रतिवादी नंबर एक और दो (यूओआई और संघ लोक सेवा आयोग) को समीर वानखेड़े की नियुक्ति को रद्द करने और उनकी जाति और धर्म का सत्यापन करने के बाद उन्हें सिविल सेवा से बर्खास्त करने के लिए निर्देश दें।

    अधिवक्ता नितिन सतपुते के माध्यम से दायर याचिका में आगे कहा गया कि समीर वानखेड़े के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करके प्रतिवादी नंबर पांच को गुमराह करने और लोक सेवक को झूठी जानकारी प्रदान करने का निर्देश देते हुए आपराधिक कार्रवाई की जाए।

    याचिका में आरोप लगाया गया कि समीर के पिता दाऊद/ध्यानदेव वानखेड़े मूल रूप से अनुसूचित जाति महार समुदाय से हैं, वह बिना धर्म बदले मुस्लिम महिला से शादी नहीं कर सकते थे।

    इसलिए जब दाऊद उर्फ ​​ध्यानदेव काचरूजी वानखेड़े ने जाहिदा बानो से शादी की तो खुद को मुसलमान बनाकर वह अनुसूचित जाति के सदस्य नहीं रहे।

    याचिका में कहा गया,

    "संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश 1950 बहुत स्पष्ट है। यदि व्यक्ति खुद को (हिंदू, सिख और बौद्ध) किसी अन्य धर्म में परिवर्तित कर रहे हैं तो वह अनुसूचित जाति के सदस्य का दर्जा खो देता है। उसे अनुसूचित जाति वर्ग का लाभ नहीं मिलेगा।"

    याचिकाकर्ता के उक्त आरोप वानखेड़े के उस जन्म प्रमाण पत्र पर निर्भर है, जिसे राज्य के कैबिनेट मंत्री नवाब मलिक ने ट्विटर पर प्रकाशित किया है। यह आगे 1986 से वानखेड़े के प्राथमिक विद्यालय छोड़ने के प्रमाण पत्र का हवाला देता है, जो कथित तौर पर उनके धर्म को मुस्लिम और उनके पिता का नाम दाऊद वानखेड़े के रूप में दर्शाता है।

    याचिका के अनुसार, उनके दूसरे स्कूल सेंट जोसेफ हाई स्कूल द्वारा 1989 में जारी किया गया स्कूल छोड़ने का एक प्रमाण पत्र भी उनके धर्म को मुस्लिम के रूप में दर्शाता है। हालांकि, यह बताता है कि अचानक वानखेड़े के एसएससी बोर्ड परीक्षा प्रमाण पत्र, 1995 से किसी भी धर्म का उल्लेख नहीं है, लेकिन जाति श्रेणी में 'महार' का उल्लेख है।

    याचिका में 1993 की एक घोषणा का हवाला दिया गया। इसमें वानखेड़े के पिता ने अपना नाम दाऊद से बदलकर ध्यानदेव रख लिया। इसके लिए यह तर्क दिया गया कि समीर के पिता ने अपने बेटे के जन्म प्रमाण पत्र में केवल अनुसूचित जाति कोटे में कॉलेज में प्रवेश पाने के लिए परिवर्तन किया।

    इस संबंध में याचिका में कहा गया,

    "उक्त घोषणा के आधार पर उनके (समीर वानखेड़े) धर्म में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। उप-पंजीयक ने जन्म प्रमाण पत्र में उसका नाम 'ध्यानदेव कचरूजी वानखेड़े' में सही किया गया और पिता का नाम केवल अनुसूचित जाति के छात्र कोटे से कॉलेज में प्रवेश पाने के लिए सही किया गया है। उक्त परिवर्तन दाऊद से ज्ञानदेव भी इसलिए किए गए ताकि सिविल सेवाओं में नौकरी सुरक्षित करने के लिए अनुसूचित जाति के सदस्य के रूप में जाति प्रमाण पत्र प्राप्त कर सके।"

    याचिका में कहा गया कि 2008 में समीर के दादा ने अपने पिता दाऊद/ज्ञानदेव के लिए जाति प्रमाण पत्र के लिए आवेदन किया था, जो आबकारी विभाग से वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक के रूप में सेवानिवृत्त हुए थे। 2007 में समीर वानखेड़े अनुसूचित जाति कोटे से यूपीएससी परीक्षा के लिए उपस्थित हुए और 2006 में अपनी पहली पत्नी, एक मुस्लिम महिला से शादी की।

    इसलिए याचिका में वानखेड़े के जातिगत दावों को सत्यापित करने के निर्देश दिए जाने की प्रार्थना की गई। साथ ही समीर वानखेड़े को सिविल सेवा के दौरान प्राप्त सभी लाभों की वसूली और साथ ही उनके द्वारा प्राप्त सभी वेतन और लाभों को 18% ब्याज के साथ वसूल करना; अंतरिम में उनके वेतन और अन्य लाभों को रोकें और अंत में 'भारतीय राजस्व सेवा' के साथ वानखेड़े की नियुक्ति को शून्य घोषित किए जाने की भी मांग की गई।

    मामले से संबंधित एक घटनाक्रम में बॉम्बे हाईकोर्ट सोमवार को नवाब मलिक को वानखेड़े के खिलाफ और अपमानजनक बयान पोस्ट करने से रोकने की मांग को लेकर समीर वानखेड़े के पिता-ध्यानदेव द्वारा दायर एक अंतरिम आवेदन पर आदेश पारित करने के लिए सहमत है।

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