'समानांतर जांच': बीरभूम नरसंहार की जांच कर रहे भाजपा पैनल के खिलाफ याचिका दायर, कलकत्ता हाईकोर्ट ने सीबीआई और राज्य से जवाब मांगा

Shahadat

7 Jun 2022 7:41 AM GMT

  • समानांतर जांच: बीरभूम नरसंहार की जांच कर रहे भाजपा पैनल के खिलाफ याचिका दायर, कलकत्ता हाईकोर्ट ने सीबीआई और राज्य से जवाब मांगा

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने मंगलवार को हिंसा की जांच के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की पांच सदस्यीय तथ्य-खोज समिति (फैक्ट फाइंडिंग कमेटी) के गठन के खिलाफ दायर याचिका पर राज्य सरकार के साथ-साथ केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से जवाब मांगा।

    पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में स्थानीय अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) नेता भादु शेख की हत्या के प्रतिशोध में कथित रूप से दस लोग मारे गए थे।

    कोर्ट ने 25 मार्च, 2022 के आदेश में हिंसा की घटना की सीबीआई जांच का आदेश दिया था। इसके बाद 8 अप्रैल, 2022 को कोर्ट ने सीबीआई को टीएमसी नेता भादु शेख की हत्या की जांच करने का भी निर्देश दिया था। कोर्ट ने यह मानते हुए निर्देश दिया कि रिकॉर्ड पर सामग्री प्रथम दृष्टया बताती है कि दोनों घटनाओं के बीच घनिष्ठ संबंध हैं।

    याचिकाकर्ता प्रीति कर द्वारा दायर याचिका में कहा गया कि चूंकि सीबीआई पहले से ही इस घटना की जांच कर रही है, इसलिए भाजपा की तथ्यान्वेषी समिति द्वारा किसी 'समानांतर जांच' की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि इससे समग्र जांच की प्रगति में देरी हो सकती है।

    चीफ जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव और जस्टिस राजर्षि भारद्वाज की पीठ ने उठाई गई शिकायत का संज्ञान लेते हुए याचिकाकर्ता के वकील को दो दिनों के भीतर सीबीआई सहित सभी संबंधित वकीलों को याचिका की प्रतियां देने का निर्देश दिया।

    इसके अलावा, अदालत ने सीबीआई के साथ-साथ राज्य सरकार को सुनवाई की अगली तारीख से पहले मामले में निर्देश प्राप्त करने का निर्देश दिय।

    मामले की अगली सुनवाई 13 जून को होने वाली है।

    रिपोर्टों के अनुसार, भाजपा की तथ्य-खोज समिति ने मार्च, 2022 में हिंसा की घटना से संबंधित अपनी रिपोर्ट पार्टी प्रमुख जेपी नड्डा को सौंपी थी। रिपोर्ट में दावा किया गया कि "पुलिस और राजनीतिक नेतृत्व की मिलीभगत से माफिया पश्चिम बंगाल पर शासन कर रहे हैं।"

    भाजपा की तथ्यान्वेषी टीम ने कहा कि कानून-व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है और कानून का पालन करने वाले नागरिकों का सरकार और टीएमसी के शासन के तौर-तरीकों पर से विश्वास उठ गया है।

    बीरभूम हिंसा के बाद नड्डा ने पांच सदस्यीय तथ्य-खोज समिति का गठन किया था। इस सीमित में चार पूर्व आईपीएस अधिकारी और पश्चिम बंगाल राज्य भाजपा अध्यक्ष सुकांत मजूमदार शामिल है।

    समिति के सदस्यों में बृज लाल- राज्यसभा सांसद और उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी; लोकसभा सांसद और मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त सत्यपाल सिंह; राज्यसभा सांसद और पूर्व आईपीएस अधिकारी के.सी. राममूर्ति; सुकांतो मजूमदार- लोकसभा सांसद लोक और पश्चिम बंगाल भाजपा अध्यक्ष; भारती घोष- राष्ट्रीय प्रवक्ता और पश्चिम बंगाल के पूर्व आईपीएस अधिकारी शामिल हैं।

    पृष्ठभूमि

    सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के पंचायत नेता भादू शेख की कथित हत्या के बाद बीरभूम के बोगटुई गांव में हिंसा हुई। 21 मार्च को बदमाशों द्वारा कथित तौर पर उन पर बम फेंकने के बाद उनकी मौत हो गई थी।

    घटना के घंटों बाद हिंसा भड़क उठी और शेख की हत्या के दो आरोपी पुरुषों सहित कई घरों पर कथित रूप से हमला किया गया और आग लगा दी गई, जिसमें महिलाओं और बच्चों सहित आठ लोगों की मौत हो गई।

    पुलिस ने बोगतुई गांव में जले हुए घरों से मुख्य रूप से महिलाओं और बच्चों के आठ जले हुए शव बरामद किए। तीन घायलों को स्थानीय अस्पताल में भर्ती कराया गया। इस नरसंहार में 25 प्रतिशत झुलसी एक महिला ने रविवार को दम तोड़ दिया। फिलहाल मरने वालों की संख्या दस है।

    हिंसा का संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार ने घटना की जांच के लिए अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (CID), ज्ञानवंत सिंह की अध्यक्षता में विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया था। हालांकि, बाद में हाईकोर्ट के निर्देशों के अनुसार जांच सीबीआई को सौंप दी गई थी।

    राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने भी मामले का स्वत: संज्ञान लिया है और मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक, पश्चिम बंगाल को नोटिस जारी कर चार सप्ताह के भीतर मामले में विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। इस मामले में रजिस्टर्ड एफआईआर में गांव में लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उठाए गए कदम और राज्य सरकार द्वारा प्रदान की गई कोई राहत या पुनर्वास की स्थिति भी शामिल है।

    अदालत ने पिछले महीने सूरी में प्रधान मजिस्ट्रेट, किशोर न्याय बोर्ड, बीरभूम द्वारा दो नाबालिग आरोपी व्यक्तियों को दी गई जमानत को रद्द करने की मांग वाली प्रार्थना को खारिज कर दिया था, क्योंकि पीड़ित पक्षों के पास पुनर्विचार याचिका दायर करने का उपाय है। हाईकोर्ट किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 (2015 अधिनियम) की धारा 102 के तहत जमानत रद्द करने की ऐसी याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता है।

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