असम पुलिस के कथित फर्जी मुठभेड़ों की स्वतंत्र जांच की मांग को लेकर गुवाहाटी हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर

LiveLaw News Network

25 Dec 2021 7:22 AM GMT

  • गुवाहाटी हाईकोर्ट

    गुवाहाटी हाईकोर्ट 

    गुवाहाटी हाईकोर्ट के समक्ष एक जनहित याचिका (PIL) याचिका दायर की गई। इस याचिका में असम पुलिस के कथित फर्जी मुठभेड़ों की स्वतंत्र जांच की मांग की गई है।

    दिल्ली के एक वकील आरिफ जवादर ने उक्त याचिका दायर की है। याचिका में वकील ने हाईकोर्ट की निगरानी में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई), विशेष जांच दल (एसआईटी) या किसी अन्य राज्य की किसी अन्य पुलिस टीम की निगरानी में एक स्वतंत्र एजेंसी द्वारा जांच की मांग की है।

    उनके द्वारा दायर याचिका में पुलिस कर्मियों द्वारा कथित आरोपियों की फर्जी मुठभेड़ में हत्याओं को लेकर भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत एक अपराध के लिए एफआईआर दर्ज करने की भी मांग की है।

    जनहित याचिका में राज्य सरकार के अलावा, असम पुलिस, कानून और न्याय विभाग, NHRC और असम मानवाधिकार आयोग को प्रतिवादी पक्ष के रूप में नामित किया गया है।

    इसके अलावा, याचिका में आरोप लगाया गया कि असम पुलिस और कथित आरोपियों के बीच मई, 2021 से अब तक 80 से अधिक फर्जी मुठभेड़ हुई हैं। इन मुठभेडों में 28 लोगों की मौत हुई और 48 से अधिक घायल हुए।

    याचिका में दावा किया गया कि जो लोग मारे गए या घायल हुए वे खूंखार अपराधी नहीं थे। यह तथ्य पुलिस के तौर-तरीकों पर सवाल खड़ा करता है।

    याचिका में कहा गया,

    "सभी समाचार पत्रों में प्रकाशित पुलिस के बयान के अनुसार, यह कहा गया कि कथित आरोपी ने पुलिस कर्मियों की सर्विस रिवॉल्वर छीनने की कोशिश की और आत्मरक्षा में पुलिस को जवाबी कार्रवाई करनी पड़ी और कथित आरोपी को मारना या घायल करना पड़ा। सभी घायल या मृत व्यक्ति उग्रवादी नहीं थे। इसलिए उन्हें पिस्तौल का उपयोग करने के लिए प्रशिक्षित नहीं किया गया था। इस बात की बहुत कम संभावना है कि वे सर्विस रिवॉल्वर को छीनकर उसका उपयोग पुलिस बल के खिलाफ कर सकते थे, जो कि अधिक संख्या में और भारी हथियारों से लैस थे। ऐसा नहीं हो सकता कि सभी कथित आरोपी सर्विस रिवॉल्वर छीन सकते हैं। वह भी एक प्रशिक्षित पुलिस अधिकारी की रिवॉल्वर जिसकी पिस्तौल आमतौर पर उस अधिकारी की कमर की बेल्ट में रस्सी से बंधी होती है।"

    याचिकाकर्ता ने पहले 10 जुलाई, 2021 को ईमेल के माध्यम से राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के पास एक शिकायत दर्ज कराई थी। इसमें फर्जी मुठभेड़ों की जांच शुरू करने के लिए कहा गया था। हालांकि, याचिका में यह कहा गया कि NHRC के बजाय असम मानवाधिकार आयोग ने केवल 12 जुलाई, 2021 को स्वत: संज्ञान लेते हुए नोटिस जारी किया।

    याचिका में कहा गया,

    "मामले के इस दृष्टिकोण में इस माननीय न्यायालय को इस बात की जांच करने की आवश्यकता है कि असम मानवाधिकार आयोग कैसे और क्यों इस मामले का संज्ञान ले सकता है जब इस संबंध में एक शिकायत NHRC के समक्ष लंबित है। ऐसा प्रतीत होता है कि राज्य आयोग ने 1993 की धारा 36(1) के तहत NHRC को उसके अधिकार क्षेत्र से रोकने के लिए मामले का स्वत: संज्ञान लिया। हालांकि मामला पहले से ही NHRC के समक्ष लंबित है।"

    जनहित याचिका में यह भी कहा गया कि असम सरकार ने अब तक मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 की धारा 30 के तहत किसी भी सत्र न्यायालय को मानवाधिकार न्यायालय के रूप में नामित नहीं किया है।

    याचिका में अंत में उचित सत्यापन के बाद पीड़ित परिवार को सीधे मौद्रिक मुआवजे की मांग की गई और पीयूसीएल और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य, (2014) 10 एससीसी 635 के मामले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा फर्जी मुठभेड़ की जांच के संबंध में जारी 16 दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन करने के लिए स्वतंत्र एजेंसी को निर्देश जारी किया गया।

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