लाल किला ब्लास्ट ट्रायल की निगरानी के लिए कोर्ट-मॉनिटर्ड कमेटी की याचिका खारिज

Amir Ahmad

3 Dec 2025 3:27 PM IST

  • लाल किला ब्लास्ट ट्रायल की निगरानी के लिए कोर्ट-मॉनिटर्ड कमेटी की याचिका खारिज

    दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई करने से इनकार किया, जिसमें हाल ही में हुए लाल किला विस्फोट मामले के ट्रायल के सभी चरणों की निगरानी के लिए कोर्ट-मॉनिटर्ड कमेटी के गठन की मांग की गई।

    चीफ जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गडेला की खंडपीठ ने याचिका पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि यह एक अच्छा निबंध (Essay) है, रिट याचिका नहीं।"

    चीफ जस्टिस ने कहा,

    "यह एक अच्छा निबंध है कृपया कोर्ट का समय बर्बाद न करें।"

    जस्टिस गडेला ने टिप्पणी की,

    "ट्रायल अभी शुरू भी नहीं हुआ और आप हमसे निगरानी करने के लिए कह रहे हैं। हम उस स्थिति को समझते हैं, जहां कोई मामला सालों से लंबित हो, लेकिन यह तो अभी शुरू भी नहीं हुआ।"

    कोर्ट ने जताई नाराजगी,

    'अदालत के समक्ष शोध पत्र पेश न करें'

    याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि उन्हें कोर्ट से कुछ आश्वासन" चाहिए कि ट्रायल में देरी नहीं होगी जिसके लिए उन्होंने विभिन्न आतंकवाद मामलों में हुई देरी का हवाला दिया।

    कोर्ट ने इस पर कहा कि यह मुद्दा केवल आज की तारीख में एक आशंका है। चूंकि ट्रायल अभी शुरू नहीं हुआ है, इसलिए यह मान लेना सही नहीं है कि इसमें देरी होगी।

    चीफ जस्टिस ने कड़ा रुख अपनाते हुए कहा,

    "समझने की कोशिश करें आप कानून की अदालत में हैं। आप शोध पत्र पेश नहीं कर रहे हैं। आपको रिट याचिका और शोध पत्र के बीच अंतर करना होगा। हम आपके सुझावों का मनोरंजन करने के लिए यहाँ नहीं बैठे हैं। हम यहां एक रिट याचिका पर विचार करने के लिए बैठे हैं यदि आप किसी मौलिक अधिकार या संवैधानिक अधिकार या कानूनी रूप से लागू करने योग्य अधिकार के उल्लंघन को दिखाने में सक्षम हैं। ट्रायल तभी समाप्त होगा जब यह शुरू होगा।"

    केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए एएसजी चेतन शर्मा ने अदालत को सूचित किया कि मामला अब दिल्ली पुलिस के पास नहीं है। इसे NIA को स्थानांतरित कर दिया गया, जिसका याचिका में कोई उल्लेख नहीं है।

    कुछ बहस के बाद याचिकाकर्ता के वकील ने याचिका वापस ली। कोर्ट ने याचिका को वापस लिए जाने के आधार पर खारिज कर दिया।

    डॉ. पंकज पुष्कर द्वारा दायर इस याचिका में मामले में दिन-प्रतिदिन ट्रायल चलाने और अभियोजन पक्ष को न्यायिक समिति के समक्ष मासिक स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश देने की मांग की गई।

    याचिका में दंगा को भारत की संप्रभुता, राष्ट्रीय सुरक्षा और दिल्ली के लोगों की मनोवैज्ञानिक अखंडता पर हमला बताया गया।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि पिछले तीन दशकों में आतंकवाद के मुकदमों की व्यावहारिक वास्तविकताएं दर्शाती हैं कि प्रत्यक्ष संवैधानिक अदालत की निगरानी के बिना NIA के मामले देरी के कारण ध्वस्त हो जाते हैं। याचिका में कहा गया कि टाडा, पोटा और UAPA के तहत अभियोजन को पूरा होने में 12 से 27 साल लगते हैं, जिससे साक्ष्य नष्ट हो जाते हैं, गवाहों की याददाश्त कम हो जाती है और अंततः बड़े पैमाने पर बरी हो जाते हैं।

    याचिका में कोर्ट-मॉनिटर्ड स्पेशल रिजीम (CMSR) को व्यावहारिक संवैधानिक आवश्यकता बताया गया ताकि इस मामले को विलंबित या पटरी से उतरे आतंकवाद मुकदमों की लंबी सूची में शामिल होने से रोका जा सके।

    गौरतलब है कि 10 नवंबर को लाल किला के बाहर हुए इस विस्फोट में 13 लोग मारे गए थे।

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