पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने तलाक की याचिका दायर करने के लिए एक वर्ष की अनिवार्य अवधि को माफ करते हुए तलाक की याचिका मंज़ूर की

LiveLaw News Network

13 Sep 2021 12:25 PM GMT

  • पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने तलाक की याचिका दायर करने के लिए एक वर्ष की अनिवार्य अवधि को माफ करते हुए तलाक की याचिका मंज़ूर की

    पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने पिछले महीने एक जोड़े को तलाक की अनुमति दे दी।

    यह जोड़ा शादी के बाद केवल दो दिनों तक साथ रहा था।

    न्यायमूर्ति रितु बाहरी और न्यायमूर्ति अर्चना पुरी की खंडपीठ ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 14 के तहत युगल द्वारा दायर आवेदन को अनुमति दी।

    अपनी याचिका में जोड़े ने प्रार्थना की थी कि धारा 13-बी के तहत याचिका दायर करने से पहले विवाह विच्छेद के अधिनियम की एक वर्ष की अनिवार्य अवधि को माफ किया जाए।

    शादी 15 फरवरी, 2021 को हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार संपन्न हुई थी।

    शादी के तुरंत बाद युगल और अपीलकर्ता (शिवानी यादव) के बीच मतभेद पैदा हो गए। लड़की 17 फरवरी को यह महसूस करते हुए अपने माता-पिता के घर वापस आ गई कि वे साथ नहीं रह सकते।

    अंतत: 20 मई 2021 को हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13-बी के तहत एक संयुक्त याचिका दायर कर आपसी सहमति से तलाक की डिक्री की मांग की गई।

    परिवार न्यायालय, गुरुग्राम के प्रधान न्यायाधीश ने जुलाई, 2021 में विवाह विच्छेद की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया।

    हाईकोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि एक वर्ष की समाप्ति से पहले धारा 13-बी के तहत एक याचिका प्रस्तुत करने के उद्देश्य से अधिनियम की धारा 14 प्रासंगिक है।

    न्यायालय ने कहा,

    "उपरोक्त धारा के प्रावधान में कहा गया कि असाधारण कठिनाई या असाधारण भ्रष्टता के मामले में यदि यह न्यायालय को प्रतीत होता है, तो एक वर्ष का समय कम किया जा सकता है।"

    मनदीप कौर बाजवा बनाम चेतनजीत सिंह रंधावा में कोर्ट के एक कोऑर्डिनेट बेंच के फैसले पर भी भरोसा किया गया था। उस मामले में कोर्ट ने कहा कि दोनों पक्ष शादी के बाद लगभग तीन महीने तक पति-पत्नी के रूप में साथ रहे। दोनों युवा थे और यह ध्यान में रखते हुए कि वे विवाह योग्य उम्र में थे, एक वर्ष की अवधि की छूट की अनुमति दी गई थी। आगे यह भी देखा गया कि अधिनियम की धारा 14(1) के प्रावधान का लाभ उठाने के लिए याचिकाकर्ता (ओं) द्वारा इस तरह की असाधारण कठिनाई और भ्रष्टता स्थापित की जानी चाहिए।

    मौजूदा मामले में बेंच ने पाया कि शादी के तुरंत बाद ही दोनों एक दूसरे से अलग हो गए थे।

    इस पर कोर्ट ने आगे नोट किया कि,

    "विवाह के समय अपीलकर्ता शिवानी यादव की आयु 22½ वर्ष थी और वह एमएससी की छात्रा थी। प्रतिवादी अमित यादव की आयु साढ़े 23 वर्ष थी। दोनों युवा हैं।"

    बेंच ने कहा,

    "दोनों पक्षों को शादी के समय उनके द्वारा दिए गए सभी लेख पहले ही मिल चुके हैं। आगे कहा गया कि उनमें से कोई भी अतीत या भविष्य के रखरखाव के संबंध में कुछ भी दावा नहीं करेगा। चूंकि, युगल केवल दो दिनों के लिए एक साथ रहे थे, इसलिए एक वर्ष की अनिवार्य अवधि को माफ करने के लिए अधिनियम की धारा 14 के तहत दायर उनके आवेदन को अनुमति देने के लिए यह पर्याप्त आधार है। इसके अलावा, हिंदू विवाह अधिनियम (अनुलग्नक ए) की धारा 13-बी के तहत दायर याचिका के अनुसार -1) पक्षकारों द्वारा आपसी समझौते का विधिवत पालन किया गया है।"

    दोनों पक्ष वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए अदालत में पेश हुए और अदालत को सूचित किया कि उनके बीच कोई विवाद नहीं है।

    इस प्रकार यह माना गया कि न्यायालय के समक्ष दिए गए बयान धारा 13-बी के तहत तलाक की डिक्री देने के लिए पर्याप्त है। विशेष रूप से अपीलकर्ता शिवानी यादव (उम्र 22½ वर्ष) और प्रतिवादी अमित यादव (उम्र 23½ वर्ष) को ध्यान में रखते हुए 15.02.2021 को शादी कर ली और 17.02.2021 को अलग हो गए।

    इस विचार के साथ आक्षेपित आदेश को अपास्त किया जाता है और एचएमए की धारा 14 के तहत आवेदन के साथ धारा 13-बी के तहत याचिका की अनुमति दी जाती है।

    केस शीर्षक: शिवानी यादव बनाम अमित यादव

    अपीलकर्ता की ओर से अधिवक्ता अमन प्रिय जैन तथा प्रतिवादी की ओर से अधिवक्ता राहुल वत्स उपस्थित हुए।

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