पीजी मेडिकल कोर्स: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने COVID प्रभावित जिलों में काम कर चुके इन-सर्विस डॉक्टरों को प्रोत्साहन अंक देने से इनकार किया
LiveLaw News Network
15 Jan 2022 1:30 PM IST

Madhya Pradesh High Court
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने माना है कि विशिष्ट वर्गीकरण के अभाव में सिविल और जिला अस्पतालों में कार्यरत सरकारी डॉक्टर और चिकित्सा अधिकारी भी पीजी मेडिकल पाठ्यक्रमों में सेवारत डॉक्टरों के लिए तय आरक्षण के लाभ के हकदार हैं। हालांकि मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने ऐसे डॉक्टरों को 10 प्रतिशत अतिरिक्त/प्रोत्साहन अंक देने से इनकार कर दिया है, जिन्होंने COVID-19 प्रभावित जिलों में सेवा की हो।
जस्टिस सुजॉय पॉल और जस्टिस अरुण शर्मा की पीठ एमबीबीएस-क्वालिफाइड डॉक्टरों की एक याचिका पर विचार कर रही थी, जो राज्य के स्वास्थ्य सेवा विभाग में नियमित कर्मचारियों के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं और अपने पदस्थापना स्थल को "कठिन क्षेत्र" [पीजी मेडिकल कोर्स में प्रवेश के उद्देश्य से] मानकर उन्हें 10 प्रतिशत अतिरिक्त/प्रोत्साहन अंक देने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
उनकी प्रार्थना को आंशिक रूप से खारिज करते हुए, अदालत ने कहा कि "कठिन क्षेत्र" का मतलब "कठिन सेवाएं नहीं है और इसलिए, उन्हें इसके लिए अतिरिक्त/प्रोत्साहन अंक देने का कोई सवाल ही नहीं था।
मामला
मामले में याचिकाकर्ता दो चिकित्सा अधिकारी हैं जो इंदौर और हरदा के जिला अस्पतालों में कार्यरत हैं। वे पीजी डिग्री सीटों पर "इन-सर्विस उम्मीदवारों" के लिए 30 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने की राज्य नीति के तहत लाभ की मांग कर रहे थे। वे "कठिन क्षेत्रों" में काम कर रहे इन-सर्विस उम्मीदवारों के लिए राज्य नीति के तहत अंकों के प्रोत्साहन की भी मांग कर रहे थे।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि मध्य प्रदेश चिकित्सा शिक्षा प्रवेश नियम, 2018 और उसके बाद की अधिसूचनाओं के अनुसार, वे "सेवारत कर्मचारियों" की परिभाषा में आते हैं क्योंकि वे चिकित्सा अधिकारी हैं। इसलिए उन्हें आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए।
दूसरे मुद्दे के संबंध में, यह तर्क दिया गया कि भले ही उन्होंने इंदौर और हरदा के शहरी क्षेत्रों में काम किया, लेकिन उन्होंने जिला अस्पतालों में COVID-19 महामारी के चरम दरमियान काम किया। उन्होंने अपने साथ-साथ अपने परिवार के जीवन को भी दांव पर लगाया।
इसलिए, COVID से पहले अधिसूचना में इस्तेमाल किए गए "कठिन क्षेत्रों" की परिभाषा को मौजूदा स्थिति के साथ तालमेल बिठाना चाहिए। उन्होंने अपने वकील सिद्धार्थ आर गुप्ता के माध्यम से तर्क दिया ।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश "कठिन क्षेत्रों" की व्याख्या से परहेज करते हुए कोर्ट ने कहा कि यह नीतिगत निर्णय था और इसलिए, इसमें बहुत सीमित आधार पर हस्तक्षेप किया जा सकता है।
कोर्ट ने कहा, "कोर्ट पॉलिसी में कुछ भी दोबारा नहीं लिखेगा, या डालेगा और इस संबंध में सबसे उपयुक्त राज्य है।"
केस शीर्षक: डॉ विजेंद्र धनवारे और अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य

