''छोटे अपराध हैं, नैतिक भ्रष्टता शामिल नहीं'': हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने समझौते के आधार पर आईपीसी की धारा 354, 498ए के तहत दर्ज एफआईआर रद्द की

LiveLaw News Network

9 March 2022 5:25 AM GMT

  • हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने पक्षकारों के बीच हुए समझौते के आधार पर (कथित रूप से दहेज की मांग और शीलता भंग करने के आरोप में) पत्नी द्वारा दर्ज करवाई गई एफआईआर को रद्द करते हुए एक पति को राहत प्रदान की है।

    जस्टिस संदीप शर्मा ने कहा,

    ''याचिकाकर्ताओं द्वारा किए गए कथित अपराधों में नैतिक अधमता(भ्रष्टता) के अपराध या किसी तरह के गंभीर/जघन्य अपराध शामिल नहीं हैं, बल्कि वह छोटे अपराध हैं, इसलिए यह न्यायालय प्राथमिकी के साथ-साथ इससे जुड़ी सभी कार्यवाही को रद्द करना उचित समझता है। विशेष रूप से इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि याचिकाकर्ताओं और शिकायतकर्ता ने इस मामले में आपस में समझौता कर लिया है। इसलिए इस मामले में, दोषसिद्धि की संभावना बहुत ही कम है और आपराधिक कार्यवाही जारी रखने से कोई उपयोगी उद्देश्य पूरा नहीं होगा।''

    याचिकाकर्ता ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट का रुख किया था। जिसमें उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 498 ए (पत्नी के प्रति क्रूरता), 354 (महिला की शीलता भंग करने के इरादे से हमला या आपराधिक बल) रिड विद 34 के तहत दर्ज एफआईआर और उसके बाद शुरू हुई सभी कार्यवाही को रद्द करने की मांग की थी।

    मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता यानी पति और प्रतिवादी यानी पत्नी के बीच शादी के बाद कुछ मतभेद थे, जिसके चलते पति-पत्नी अलग-अलग रहने लगे। बाद में, प्रतिवादी की शिकायत पर एक एफआईआर दर्ज की गई, जिसमें उसने आरोप लगाया कि कम दहेज लाने के कारण उसके पति और परिवार के अन्य सदस्यों ने उसे लगातार प्रताड़ित किया है।

    जांच पूरी होने के बाद, पुलिस ने संबंधित अदालत में चालान पेश किया, लेकिन उस पर आगे की कोई कार्यवाही की जाती, इससे पहले ही मामले के पक्षकारों ने रिकॉर्ड पर रखे गए समझौते के माध्यम से अपने विवाद को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाने की बात कही।

    प्रतिवादी ने अपने वकील के साथ आकर कोर्ट में बताया कि उसने बिना किसी दबाव के याचिकाकर्ता-आरोपी के साथ समझौता कर लिया है। राज्य के वकील ने प्रस्तुत किया कि यदि एफआईआर को रद्द करने की मांग गई है और उसके बाद भी निचली अदालत के समक्ष लंबित सभी संबंधित कार्यवाही को जारी रखने की अनुमति दी जाती है, तो कोई उपयोगी उद्देश्य पूरा नहीं होगा।

    निष्कर्ष

    अदालत ने नरिंदर सिंह व अन्य बनाम पंजाब राज्य व अन्य (2014) 6 एससी केस 466, के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित निर्णय पर भरोसा किया, जहां अदालत ने समझौते को स्वीकार करने और कार्यवाही को रद्द करने या समझौते को स्वीकार करने से इनकार करते हुए आपराधिक कार्यवाही जारी रखने का निर्देश देने से संबंधित दिशानिर्देश तय किए थे।

    इस मामले में यह निर्णय दिया गया था कि वे आपराधिक मामले, जिनमें अत्यधिक और मुख्य रूप से सिविल चरित्र शामिल हैं, विशेष रूप से जो वाणिज्यिक लेनदेन से उत्पन्न होते हैं या वैवाहिक संबंधों या पारिवारिक विवादों से उत्पन्न होते हैं, उन्हें तब रद्द कर दिया जाना चाहिए जब पक्षकारों ने अपने सभी विवादों को आपस में सुलझा लिया हो।

    यह भी माना गया कि सीआरपीसी की धारा 482 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए, न्यायालयों को अपराध की प्रकृति और गंभीरता और उसके सामाजिक प्रभाव के बारे में उचित ध्यान रखना चाहिए।

    हाईकोर्ट ने कहा कि,

    ''कानून के पूर्वाेक्त विवरण से यह बिल्कुल स्पष्ट है कि हाईकोर्ट के पास उन मामलों में भी आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की अंतर्निहित शक्ति है जो कंपाउंडेबल नहीं हैं, लेकिन ऐसी शक्ति का प्रयोग संयम से और बड़ी सावधानी के साथ किया जाना चाहिए ... अदालत को यह जांच करनी चाहिए कि क्या दोषसिद्धि की संभावना कम और धूमिल है और आपराधिक मामले की निरंतरता आरोपी का उत्पीड़न करेगी और उसे पूर्वाग्रह में डाल देगी और क्या आपराधिक मामलों को रद्द नहीं करने से उसके साथ अत्यधिक अन्याय होगा?''

    कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 320 और सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दी गई शक्तियों के दायरे के अंतर को भी उजागर किया। धारा 320 में कंपाउंडिंग अपराधों के लिए एक आपराधिक न्यायालय की शक्ति निर्धारित की गई है, जबकि धारा 482 के तहत उन मामलों में भी आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के लिए ''अंतर्निहित शक्ति'' पर विचार किया जाता है, जो कंपाउंडेबल नहीं हैं और जहां पार्टियों ने आपस में मामले को सुलझा लिया है।

    वर्तमान मामले में, कोर्ट ने कहा कि चूंकि दोनों पक्षों ने आपस में समझौता कर लिया है और वे एक-दूसरे के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को आगे बढ़ाने में कोई दिलचस्पी नहीं रखते हैं, इसलिए आपराधिक कार्यवाही जारी रखने की अनुमति दिए जाने पर कोई उपयोगी उद्देश्य पूरा नहीं होगा।

    तदनुसार, इस मामले में दायर वर्तमान याचिका को स्वीकार कर लिया गया और आरोपी के खिलाफ दर्ज एफआईआर और उससे बाद शुरू हुई सभी कार्यवाही को रद्द कर दिया गया।

    केस का शीर्षक-अजय कुमार बनाम पंजाब राज्य व अन्य

    साइटेशन- 2022 लाइव लॉ (एचपी) 2

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें





    Next Story