''याचिकाकर्ता ने वैवाहिक और लंबित सिविल विवादों में अपनी लड़ाई ''मजबूत'' करने के लिए यूएसए में रहने का झूठा दावा किया'' : तेलंगाना हाईकोर्ट ने लगाया जुर्माना
LiveLaw News Network
19 July 2020 9:45 PM IST
तेलंगाना हाईकोर्ट ने हाल ही में एक याचिकाकर्ता पर पांच हजार रुपये जुर्माना लगाया है क्योंकि उसने वैवाहिक और लंबित सिविल विवादों में अपनी लड़ाई को ''मजबूत'' करने के इरादे से अपनी पूर्व पत्नी के खिलाफ गलत शिकायत दर्ज कराई थी।
जस्टिस टी विनोद कुमार की पीठ ने याचिकाकर्ता को निर्देश दिया है कि वह जुर्माने की राशि तेलंगाना राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के पास जमा करा दे।
पीठ ने यह निर्देश देते हुए कहा कि-
''ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता का पूरा प्रयास था कि किसी भी तरह से वह अपनी पूर्व-पत्नी के खिलाफ मामला दर्ज करा दें ताकि वह अपने लंबित वैवाहिक और सिविल मामलों को सुलझा सके,जबकि कथित घटना से उन मामलों का कोई लेना-देना नहीं है। वही याचिकाकर्ता इस अदालत के समक्ष भी साफ मंशा के साथ नहीं आया है। उसने मनगढ़ंत तथ्य पेश किए हैं और घटनाओं का सही से खुलासा नहीं है। इसलिए वह भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत राहत पाने का हकदार नहीं है।''
याचिकाकर्ता ने संयुक्त राज्य अमेरिका में रहने का दावा करते हुए तेलंगाना पुलिस को एक ईमेल-शिकायत दर्ज की थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उसकी पूर्व पत्नी ने उसके बेटे का उसकी कस्टडी से अपहरण कर लिया है और उसे ज़बरदस्ती भारत ले आई है।
इतना ही नहीं उसने याचिकाकर्ता को धमकी दी है कि अगर उसके खिलाफ दायर संपत्ति के मामलों को वापस नहीं लिया गया तो वह बच्चे को नुकसान पहुंचा देगी।
अदालत ने पाया कि पूरी कहानी ''सिनेमाई ''थी। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ने ''वांछित तवज्जो'' प्राप्त करने की उम्मीद में इस तरह के झूठे दावे किए थे। इतना ही नहीं उसके यूएसए में रहने की बात भी झूठी है।
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ने शिकायत दर्ज कराते समय यह झूठा दावा किया था कि वह अमेरिका में रहता है और उसके बाद भी ऐसे ही दावे किए गए-
(1) उसके द्वारा शिकायत और हलफनामे में प्रदान किए गए संयुक्त राज्य अमेरिका के पते में बड़ी विसंगतियां थी।
(2) उसने जिस दिन अमेरिका से ईमेल शिकायत दर्ज की थी,उसके अगले दिन हैदराबाद में एक शपथ पत्र बनवाया।
(3) समय क्षेत्र सेटिंग्स में परिवर्तन करके उसने ईमेल शिकायत भेजी थी।
पीठ ने कहा कि-
''यह स्पष्ट है कि अपने ई-मेल में यूएसए समय क्षेत्र सेटिंग्स का उपयोग करने वाले याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी नंबर के पास शिकायत दर्ज कराते समय यह दिखाने की कोशिश की थी कि यह शिकायत संयुक्त राज्य अमेरिका से की जा रही है,जबकि याचिकाकर्ता हैदराबाद में था। उसे उम्मीद थी कि ऐसा करने से उसके द्वारा की जाने वाली शिकायत को वांछित तवज्जो मिलेगी।''
पीठ ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा बताए गए तथ्य भी उसके मामले में कोई ''विश्वसनीयता'' नहीं बना पाए-
''यूएसए से भारत की यात्रा के लिए एक व्यक्ति के पास पासपोर्ट, वीजा और आने-जाने के लिए इमीग्रेशन चेक से गुजरने की आवश्यकता होती है। इसके अलावा यात्रा करने के लिए एक हवाई-टिकट भी होना चाहिए। इसलिए यह उम्मीद नहीं की जा सकती है कि जब लड़के का कथित तौर पर अपहरण किया गया तो वह घर में वीजा के साथ अपना पासपोर्ट लेकर बैठा था।''
इसलिए अदालत को यह विश्वास हो गया कि याचिकाकर्ता ने पहले ही ''निर्धारित'' कर रखा था कि उसे कुछ बहाने से रिट याचिका दायर करनी है।
कोर्ट ने याचिकाकर्ता से यह भी सवाल किया कि उसने तेलंगाना पुलिस में शिकायत क्यों दर्ज कराई जबकि उसने खुद आरोप लगाया था कि उसकी पूर्व पत्नी आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में बच्चे के साथ रह रही थी।
पीठ ने कहा कि-
''इस मामले में जिस तरीके से घटनाओं का क्रम बताया गया है वो किसी सिनेमा की कहानी से कम नहीं है। यह अदालत इस बात का कारण भी नहीं समझ पाई कि प्रतिवादी नंबर दो के पास शिकायत क्यों दर्ज करवाई गई,जबकि कथित घटना यूएसए में घटित हुई थी। वहीं याचिकाकर्ता के स्वयं के दावे के अनुसार प्रतिवादी नंबर पांच अपहरणकर्ता बच्चे के साथ हनुमान जंक्शन, विजयवाड़ा, जिला कृष्णा, आंध्र प्रदेश राज्य में रह रही है।
इस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए याचिकाकर्ता ने कहा कि जब उसने अपने बेटे के जीवन और स्वतंत्रता के बारे में चिंता व्यक्त करते हुए शिकायत दर्ज की गई थी, तो प्रतिवादी पुलिस को ज़ीरो एफआईआर
दर्ज करनी चाहिए थी और कार्रवाई शुरू करते हुए मामले को संबंधित क्षेत्राधिकार वाले पुलिस स्टेशन के पास हस्तांतरित करना चाहिए था।
अदालत ने इसे ''धोखा देने का प्रयास'' बताते हुए स्पष्ट किया कि जब शिकायत दर्ज की गई थी, तो राज्य में ज़ीरो एफआईआर की व्यवस्था केवल महिलाओं के खिलाफ अपराधों जैसे कि महिलाओं के लापता होने के मामलों के लिए थी, न कि अन्य मामलों के संबंध में।
अदालत ने कहा,
''इस प्रकार,जिस समय याचिकाकर्ता ने शिकायत दर्ज की थी,उस समय ''जीरो'' एफआईआर अवधारणा लागू नहीं थी और जो अवधारणा मौजूद थी, वह वर्तमान प्रकृति की शिकायतों पर लागू नहीं होती थी।''
मामले का विवरण-
केस का शीर्षक- अल्लू श्रीनिवास राव बनाम तेलंगाना राज्य व अन्य।
केस नंबर-डब्ल्यूपी नंबर 12849/2019
कोरम- न्यायमूर्ति टी विनोद कुमार
प्रतिनिधित्व- अधिवक्ता डीवी राव (याचिकाकर्ता के लिए), सहायक सरकारी वकील ए मनोज कुमार (राज्य के लिए)