अवैध हिरासत में रखे गए व्यक्तियों को राज्य सरकार की ओर से मुआवजा दिया जाएगा: इलाहाबाद हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

14 Jun 2021 4:37 AM GMT

  • अवैध हिरासत में रखे गए व्यक्तियों को राज्य सरकार की ओर से मुआवजा दिया जाएगा: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इस बात पर जोर देते हुए कि सार्वजनिक प्राध‌िकरणों द्वारा उत्पीड़न के कारण दिया गया मुआवजा, ना केवल व्यक्ति को मुआवजा देता है, उसे व्यक्तिगत रूप से संतुष्ट करता है बल्कि सामाजिक बुराई को ठीक करने में मदद करता है, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में राज्य सरकार को एक नागरिक (25 हजार रुपए) मुआवजा देने की अपनी नीति को सख्ती से लागू करने का निर्देश दिया है। व्यक्ति को जिन्हें अवैध रूप से हिरासत में लिया गया है।

    ज‌स्टिस सूर्य प्रकाश केसरवानी और जस्टिस शमीम अहमद की खंडपीठ ने किसी भी अधिकारी द्वारा किसी भी नागरिक को अवैध रूप से हिरासत में रखने और अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू करने पर 25,000/- रुपये के मुआवजे का भुगतान करने और ऐसे अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही की शुरुआत करने की नीति के लिए राज्य सरकार की सराहना की।

    न्यायालय दो व्यक्तियों की अवैध हिरासत के मामले का निस्तारण कर रहा था, जिन्हें सत्यापन के बहाने व्यक्तिगत बांड और अन्य कागजात जमा करने के बावजूद हिरासत में रखा गया।

    कोर्ट ने कहा, "संवैधानिक या वैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करने वाले लोक प्राधिकरण कानून के तहत बनी अदालतों या आयोग के समक्ष अपने व्यवहार के लिए जवाबदेह हैं, जिन्हें कानून के शासन को बनाए रखने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।"

    लखनऊ विकास प्राधिकरण बनाम एमके गुप्ता (1994) 1 एससीसी 243 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा, "एक बार जब सक्षम प्राधिकारी द्वारा यह पाया जाता है कि एक शिकायतकर्ता उन लोगों की निष्क्रियता के लिए मुआवजे का हकदार है, जिन्हें अधिनियम के तहत कानून के अनुसार कर्तव्यों का निर्वहन करने का कार्य सौंपा गया है, तो शिकायतकर्ता को पब्‍लिक फंड से राशि का भुगतान किया जा सकता है, हालांकि यह राश‌ि उन लोगों से वसूल की जा सकती है, जो इस तरह के अक्षम्य व्यवहार के लिए जिम्मेदार पाए जाते हैं।"

    महत्वपूर्ण रूप से, न्यायालय ने कहा कि एक सामान्य नागरिक या एक आम आदमी शायद ही राज्य या उसके उपकरणों की ताकत का सामना कर सकता है और यदि कोई सार्वजनिक पदाधिकारी दुर्भावनापूर्ण या दमनकारी कार्य करता है और सत्ता के प्रयोग से उत्पीड़न और पीड़ा होती है तो यह शक्ति का प्रयोग नहीं बल्‍कि इसका दुरुपयोग है।

    न्यायालय ने यह भी देखा कि सार्वजनिक प्राधिकरणों द्वारा एक आम आदमी का उत्पीड़न सामाजिक रूप से घृणित और कानूनी रूप से अस्वीकार्य है और यह उसे व्यक्तिगत रूप से नुकसान पहुंचा सकता है।

    कोर्ट ने जोर देकर कहा, "एक सामान्य नागरिक शिकायत करने और लड़ने के बजाय कार्यालयों में अवांछित कामकाज के दबाव में इसके खिलाफ खड़े होने के बजाय झुक जाता है ... एक आधुनिक समाज में, कोई भी प्राधिकरण मनमाने ढंग से कार्य करने की शक्ति का दावा नहीं कर सकता है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिन मामलों पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता होती है, वो ऐसे पड़ रहते हैं और आदमी को लगतार दौड़ना पड़ता है।"

    अदालत ने यह भी कहा कि जहां यह पाया जाता है कि विवेक का प्रयोग (एक सार्वजनिक प्राधिकरण द्वारा) दुर्भावनापूर्ण था और शिकायतकर्ता मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न के लिए मुआवजे का हकदार है, तो अधिकारी एक सुरक्षात्मक कवर के तहत होने का दावा नहीं कर सकता है।

    राज्य की नीति

    उत्तर प्रदेश की राज्य सरकार ने 23 मार्च, 2021 के आदेश में धारा 107, 116, 116(3) और 151 सीआरपीसी के मामलों से निपटने के लिए एक नीति बनाई है और नीति में प्रावधान है कि:

    -संविधान के अनुच्छेद 21 के उल्लंघन में किसी व्यक्ति को अवैध रूप से हिरासत में रखने की स्थिति में दोषी अधिकारी (यदि दोषी पाया जाता है) के खिलाफ नियमानुसार अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।

    -अनुशासनात्मक कार्रवाई की रिपोर्ट 3 महीने के भीतर या लागू नियमों के तहत निर्धारित किसी भी अवधि के भीतर प्रस्तुत करनी होगी।

    -जहां किसी नागरिक को हिरासत में रखना वास्तव में अवैध पाया जाता है, उस व्यक्ति को 25 हजार रुपए का भुगतान मुआवजे के रूप में किया जाएगा।

    कोर्ट ने राज्य सरकार को दिए निर्देश

    -जहां किसी नागरिक को हिरासत में रखना वास्तव में अवैध पाया जाता है, उस व्यक्ति को 25 रुपए मुआवजे के रूप में भुगतान किया जाएगा।

    -राज्य सरकार 23.03.2021 के नीतिगत निर्णय के पैरा 12 को उत्तर प्रदेश राज्य के सभी बड़े समाचार पत्रों में प्रकाशित करेगी और इसे सभी ब्लॉक, तहसील में सार्वजनिक स्थानों पर डिस्प्ले करेगी।

    -आदेश की प्रति राज्य सरकार द्वारा समस्त उत्तर प्रदेश राज्य के समस्त जिला स्तर एवं तहसील स्तरीय बार एसोसिएशनों को भेजी जायेगी।

    केस टाइटिल - शिव कुमार वर्मा और अन्य बनाम यू.पी. और 3 अन्य

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