नियमित जमानत की मांग करने वाले व्यक्ति को अदालत की कस्टडी में होना चाहिए, जिसे फिजिकल कस्टडी में रखने की आवश्यकता नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Shahadat

4 Oct 2022 12:59 PM IST

  • नियमित जमानत की मांग करने वाले व्यक्ति को अदालत की कस्टडी में होना चाहिए, जिसे फिजिकल कस्टडी में रखने की आवश्यकता नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि जमानत अर्जी दाखिल करते समय आरोपी का फिजिकल कस्टडी में होना अनिवार्य नहीं। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर आरोपी फिजिकल कस्टडी से बाहर है, लेकिन उसकी स्वतंत्रता अदालत द्वारा लगाई गई शर्तों के अधीन है यानी आरोपी क्रिएटिव कस्टडी में है तो वह नियमित जमानत के लिए आवेदन कर सकता है।

    जस्टिस सौरभ विद्यार्थी की पीठ ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 420 और 120 बी के तहत आरोपों का सामना कर रहे जितेंद्र को नियमित जमानत देते हुए इस प्रकार कहा। कोर्ट ने कहा कि उसका नाम एफआईआर में नहीं है बल्कि जांच के दौरान उसका नाम सामने आया।

    संक्षेप में मामला

    मामले के तथ्यों के अनुसार, सीएमएस इंफोसिस्टम्स प्रा. लिमिटेड एक कंपनी है, जो एटीएम में नकदी लोड करने, उतारने और नकदी की निकासी और जमा करने के लिए सेवाएं प्रदान करती है। कंपनी ने अपने तीन कर्मचारियों के खिलाफ बीएनए मशीन से पैसे निकालकर करीब 26 लाख 63 हजार पांच सौ रुपये के गबन में शामिल होने का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज कराई है।

    हालांकि एफआईआर में याचिकाकर्ता का नाम नहीं है। जांच के दौरान यह पाया गया कि निकाली गई राशि का एक हिस्सा उसके बैंक खाते में जमा किया गया। इस प्रकार, उसे मामले में फंसाया गया। उसे 21 जून, 2021 को गिरफ्तार किया गया और 25 जून, 2021 को अल्पकालिक जमानत पर रिहा कर दिया गया। वर्तमान में आवेदक हिरासत में नहीं है। उसने हाईकोर्ट में नियमित जमानत के लिए आवेदन किया है।

    शिकायतकर्ता कंपनी के वकील ने प्रारंभिक आपत्ति उठाई कि वर्तमान में आवेदक हिरासत में नहीं है और किसी व्यक्ति की जमानत याचिका पर तभी विचार किया जा सकता है जब वह हिरासत में हो। इसलिए, उन्होंने तर्क दिया कि आवेदक को जमानत पर रिहा करने की मांग करने वाला वर्तमान आवेदन सुनवाई योग्य नहीं है।

    दूसरी ओर, आवेदक की ओर से पेश सीनियर वकील अनूप त्रिवेदी ने प्रस्तुत किया कि सिविल जज (सीनियर डिवीजन), एफ.टी.सी., गौतमबुद्धनगर ने उसे 25 जून, 2021 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2020 की रिट याचिका नंबर 01 में जेल में फिर से फैले कोविड-19 संक्रमण के दौरान कुछ प्रतिबंधों के अधीन पारित आदेश के मद्देनजर अंतरिम जमानत दी।

    सीनियर एडवोकेट त्रिवेदी ने आगे तर्क दिया कि चूंकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित आदेश अभी भी लागू है, क्योंकि इसे रद्द नहीं गया। इसलिए आवेदक ने अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण नहीं किया।

    अंत में यह तर्क दिया गया कि आवेदक फिजिकल कस्टडी में है। हालांकि उसे अंतरिम जमानत पर रिहा कर दिया गया है। वह न्यायालय द्वारा जारी निर्देश के अधीन है, इसलिए वह न्यायालय की रचनात्मक हिरासत में है। इस प्रकार, उसे नियमित जमानत दी जा सकती है।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    अदालत ने शुरू में देखा कि जमानत पर रिहाई का दावा करने के लिए व्यक्ति को अदालत की हिरासत में होना चाहिए, जो जरूरी नहीं कि फिजिकल कस्टडी में हो। चूंकि, वर्तमान मामले में आवेदक को 21 जून, 2021 को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद उसे 25 जून, 2021 को अदालत द्वारा लगाई गई शर्त के अधीन अंतरिम जमानत पर रिहा कर दिया गया। वह न्यायालय द्वारा जारी निर्देशों के अधीन रहा। इस प्रकार, उसे कोर्ट की फिजिकल कस्टडी में माना जाएगा।

    इसलिए अदालत ने शिकायतकर्ता के वकील द्वारा उठाई गई प्रारंभिक आपत्ति में बल नहीं पाया और इसे खारिज कर दिया गया।

    इसके अलावा, कोर्ट ने नोट किया कि आवेदक के खिलाफ एकमात्र आरोप यह है कि उसके बैंक खाते में निश्चित राशि जमा की गई। कोर्ट ने कहा कि आवेदक के खाते में केवल राशि जमा की गई, बिना किसी कमीशन के कथित तौर पर उसके द्वारा किया गया है, प्रथम दृष्टया आवेदक द्वारा आरोपित अपराध को अंजाम नहीं देता।

    इसे ध्यान में रखते हुए कि आवेदक बैंक या कैश हैंडलिंग सेवा प्रदाता कंपनी का कर्मचारी नहीं है और उसकी बीएनए मशीन तक कोई पहुंच नहीं है। साथ ही जांच के दौरान आवेदक का नाम सामने आया जब शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि उसके बैंक खाते में कुछ पैसा जमा किया गया है। अदालत ने उसे संबंधित अदालत की संतुष्टि के लिए व्यक्तिगत बांड और समान राशि में दो जमानत देने पर जमानत दे दी।

    उपस्थिति:

    आवेदक के लिए वकील :- अभिजीत सिंह, अनुपम दुबे

    विपक्ष के वकील:- जी.ए., विक्रांत राणा

    केस टाइटल- जितेंद्र @ जितेंद्र कुमार सिंह बनाम यूपी राज्य [आपराधिक MISC जमानत आवेदन नंबर- 37894/2021]

    केस साइटेशन: लाइव लॉ (एबी) 457/2022

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