सार्वजनिक संस्थाओं को समय पर RTI आवेदन का निपटान नहीं करने की अनुमति देना सूचना के अधिकार अधिनियम के उद्देश्य को विफल कर देगा: दिल्ली उच्च न्यायालय

LiveLaw News Network

1 Sep 2021 7:13 AM GMT

  • सार्वजनिक संस्थाओं को समय पर RTI आवेदन का निपटान नहीं करने की अनुमति देना सूचना के अधिकार अधिनियम के उद्देश्य को विफल कर देगा: दिल्ली उच्च न्यायालय

    Delhi High Court

    दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा कि एक सार्वजनिक संस्था, ब्यूरो ऑफ फार्मा पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग्स ऑफ इंडिया (बीपीपीआई) को मौजूदा मामले में एक आरटीआई आवेदन का समयबद्ध निस्तारण नहीं करने की अनुमति देना सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 के के उद्देश्य को विफल कर देगा।

    जस्टिस रेखा पल्ली ने यह मौखिक टिप्पणी की। वह क्रैडल लाइफ साइंसेज प्राइवेट लिमिटेड नामक एक कंपनी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। कंपनी ने लोक सूचना अधिकारी, रसायन और उर्वरक मंत्रालय और बीपीपीआई से दो आरटीआई आवेदनों के तहत जानकार‌ियां मांगी थी, जिसे देने से इनकार कर दिया गया था, जिसके बाद व्यथ‌ित होकर मौजूदा याचिका दायर की गई थी।

    अदालत ने कहा, "प्रतिवादी संख्या 2 (बीपीपीआई) को समय पर आरटीआई आवेदनों का निपटान नहीं करने की अनुमति देने से आरटीआई अधिनियम का उद्देश्य विफल हो जाएगा।"

    याचिकाकर्ता कंपनी का मामला था कि बीपीपीआई ने 15 विभिन्न राज्यों में वितरक के रूप में नियुक्ति के लिए आवेदन आमंत्रित किया था। जिसके बाद याचिकाकर्ता कंपनी ने बिहार राज्य में बीपीपीआई के वितरक के रूप में नियुक्त होने के लिए आवेदन दायर किया था।

    याचिकाकर्ता के अनुसार, बीपीपीआई ने अन्य दो आवेदकों के साथ उनके आवेदनों का मूल्यांकन करने के बाद उन्हें शॉर्टलिस्ट किया था।

    याचिकाकर्ता का यह भी मामला था कि बीपीपीआई के प्रतिनिधि ने उसके कार्यालय और गोदाम का भौतिक निरीक्षण किया था। हालांकि, याचिकाकर्ता बीपीपीआई द्वारा शुरू में शॉर्टलिस्ट किए गए तीन आवेदकों के बजाय चार शॉर्टलिस्ट किए गए आवेदकों का दूसरा निरीक्षण करने की कार्रवाई से व्यथित था।

    जिसके बाद याचिकाकर्ता कंपनी ने 14 दिसंबर, 2020 को एक आरटीआई आवेदन दायर कर आरटीआई अधिनियम के तहत जानकारी मांगी थी। एक और आरटीआई आवेदन 31 दिसंबर, 2020 को दायर किया गया था, जिसमें अधिनियम के तहत कुछ अतिरिक्त जानकारी मांगी गई थी।

    याचिका में कहा गया, "सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 7 एक सार्वजनिक निकाय के लोक सूचना अधिकारी को किसी व्यक्ति के जीवन या स्वतंत्रता से संबंधित मामलों को छोड़कर 30 दिनों की अवधि के भीतर आरटीआई आवेदन का निपटान करने का आदेश देती है। जहां तक ​​वर्तमान मामले का संबंध है, सात महीने से अधिक समय बीत जाने के बावजूद प्रतिवादियों द्वारा जानकारी प्रस्तुत नहीं की गई है, जो प्रतिवादी द्वारा संवेदनहीन रवैया दिखाता है्र जो केंद्र सरकार का साधन है।"

    बीपीपीआई की ओर से पेश हुए वकील ने अदालत के समक्ष कहा कि इसी तरह की एक याचिका को इस साल जनवरी में हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था, इसलिए वर्तमान याचिका पर ध्यान नहीं दिया गया।

    इस पर कोर्ट ने कहा, "ऐसा कोई कारण नहीं है कि प्रतिवादी संख्या 2 (बीपीपीआई) के पास याचिकाकर्ता के आरटीआई आवेदनों पर शीघ्रता से कार्रवाई न करने का आधार होगा।"

    अदालत ने बीपीपीआई को आरटीआई आवेदनों पर तेजी से निर्णय लेने और चार सप्ताह के भीतर निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार निर्धारित प्रक्रिया का पालन करने के बाद एक आदेश पारित करने का निर्देश देकर रिट याचिका को अनुमति दी थी।

    अदालत ने स्पष्ट किया, " इस अदालत ने पक्षों के बीच परस्पर विवाद के संबंध में कोई राय व्यक्त नहीं की है।"

    प्रतिनिधित्व: याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता प्रशांत कुमार ने किया।

    केस का शीर्षक: क्रैडल लाइफ साइंसेज प्राइवेट लिमिटेड बनाम यूओआई और अन्य।

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