स्थायी लोक अदालत के सदस्य को निलंबित करने के लिए कोई विशेष प्रावधान नहीं होने पर भी उनके खिलाफ गंभीर आरोपों की स्थिति में निलंबित किया जा सकता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
12 July 2021 9:51 AM IST
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि केवल इसलिए कि स्थायी लोक अदालत के सदस्य को निलंबित करने के लिए कोई विशेष प्रावधान नहीं है, इसका मतलब यह नहीं है कि उसके खिलाफ इस तरह के गंभीर आरोप होने पर भी उसे निलंबित नहीं किया जा सकता है।
न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति सौरभ लावानिया की खंडपीठ कमलेश कुमार दीक्षित की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने प्रारंभिक जांच के बाद स्थायी लोक अदालत, उन्नाव के सदस्यता से उनके निलंबन को चुनौती दी थी, जिसमें उन्हें प्रथम दृष्टया अवैध रूप से 5000 रुपये की रिश्वत लेने का दोषी पाया गया था।
ओएसडी, यूपीएसएलएसए द्वारा की गई जांच में यह भी पाया गया कि वह स्थायी लोक अदालत के अन्य अधिकारियों के साथ दुर्व्यवहार में शामिल था और एक अदालत की फाइल को गायब कर रहा था।
इसी आदेश से उनके विरुद्ध अंतिम जांच शुरू कर दी गई है और अध्यक्ष/जिला न्यायाधीश, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, उन्नाव को जांच अधिकारी नामित किया गया है।
आरोपी सदस्य, स्थायी लोक अदालत के लिए नामित होने से पहले, वह उन्नाव में ही एक अधिवक्ता रूप में कार्यरत था।
आरोपी- याचिकाकर्ता द्वारा न्यायालय के समक्ष यह तर्क दिया गया कि स्थायी लोक अदालत के सदस्य के निलंबन का कोई प्रावधान नहीं है, हालांकि स्थायी लोक अदालत ( अध्यक्ष और अन्य व्यक्तियों के नियुक्ति के अन्य नियम और शर्तें) नियम, 2003 के नियम 5 अनुसार जांच के आधार पर उसे हटाने का प्रावधान है।
कोर्ट का आदेश
अदालत ने याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोपों की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए कहा कि यह उन्नाव में स्थायी लोक अदालत के कामकाज के हित में नहीं है कि याचिकाकर्ता को जांच के लंबित रहने के दौरान काम करना जारी रखने की अनुमति दी जाए।
कोर्ट ने इसके अलावा कहा कि भले ही ऐसे सदस्य को निलंबित करने का कोई प्रावधान नहीं है, इसका मतलब यह नहीं है कि व्यक्ति के खिलाफ गंभीर आरोप होने पर उसे निलंबित नहीं किया जा सकता है।
अदालत ने कहा कि,
"आरोपी को काम करने से रोकना या उसे काम से निलंबित करना नियुक्ति की अवधि में निहित है, खासकर वर्तमान मामले के तथ्यों में।"
इसलिए न्यायालय स्थायी लोक अदालत के कामकाज और उसके सामने पेश होने वाले नागरिकों के व्यापक हित को देखते हुए भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हमारे असाधारण अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने के लिए इच्छुक नहीं था।
न्यायालय ने निर्देश दिया कि अंतिम जांच जो शुरू की गई है, उसे जल्द से जल्द पूरा किया जाएगा, बशर्ते याचिकाकर्ता इसमें सहयोग करें और इस तरह की जांच के आधार पर सक्षम प्राधिकारी द्वारा शीघ्रता से अंतिम निर्णय लिया जाएगा और उम्मीद की जाती है कि यह 2 महीने के भीतर पूरा हो जाएगा। ।
केस का शीर्षक - कमलेश कुमार दीक्षित बनाम यूपी राज्य