गुड्स/सर्विस के मूल्य के बदले किए गए 'भुगतान' के आधार पर तय होती है उपभोक्ता फोरम की पेक्यूनिएरी ज्यूरिस्डिक्शन-एनसीडीआरसी

LiveLaw News Network

5 Sep 2020 3:07 PM GMT

  • गुड्स/सर्विस के मूल्य के बदले किए गए भुगतान के आधार पर तय होती है उपभोक्ता फोरम की पेक्यूनिएरी ज्यूरिस्डिक्शन-एनसीडीआरसी

    एक महत्वपूर्ण आदेश में राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) ने माना है कि उपभोक्ता फोरम के विशेष अधिकार क्षेत्र या पेक्यूनीएरी ज्यूरिस्डिक्शन का निर्धारण करने के लिए, केवल वस्तुओं/सेवाओं के मूल्य के बदले किए गए 'भुगतान' पर विचार किया जाना चाहिए, न कि 'खरीदी' गई वस्तु/सेवा के मूल्य पर।

    यह आदेश न्यायमूर्ति आरके अग्रवाल (अध्यक्ष) और डॉ एसएम कांतिकर (सदस्य) की खंडपीठ ने कोलकाता स्थित कारखाने की ओर से दायर एक उपभोक्ता शिकायत पर सुनवाई करते हुए दिया है। यह शिकायत बीमा कंपनी नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के खिलाफ की गई थी।

    शिकायतकर्ता ने बताया था कि कंपनी ने उनके 28,00,20,000 रुपये के बीमे के दावे गलत तरीके से निरस्त कर दिया था। जबकि यह बीमा उन्होंने 4,43,562 रुपये के प्रीमियम का भुगतान करके खरीदा था।

    इस बिंदु पर, आयोग ने कहा कि वर्तमान मामले में किया गया भुगतान मूल्य 10,00,00,000 (जबकि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 58 (1) (ए) (i) के अनुसार यह एनसीडीआरसी का विशेष अधिकार क्षेत्र है) रुपये से ''कम'' है। इसलिए उनको यह निर्धारित करना है कि क्या यह शिकायत उसके समक्ष अनुरक्षणीय या विचार योग्य है ?

    आयोग ने कहा कि अगर यह मामला उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत आता तो एनसीडीआरसी के पास इस मामले में सुनवाई करने का अधिकार क्षेत्र होता क्योंकि ''माल या सेवाओं के मूल्य और मुआवजे'' को लेकर ही उनके विशेष अधिकार क्षेत्र को निर्धारित किया जाता।

    इसका अर्थ यह है कि वस्तुओं या सेवाओं के मूल्य के साथ ही मुआवजे को भी यह निष्कर्ष निकालने के लिए जोड़ा जाता कि क्या उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 21 (ए) (i) के तहत राष्ट्रीय आयोग का अधिकार क्षेत्र बनता है या नहीं? राष्ट्रीय आयोग के पास उन शिकायतें पर विचार करने का अधिकार क्षेत्र था जहाँ वस्तु या सेवाओं और मुआवजे का मूल्य 1,00,00,000 रुपये से अधिक होता था।

    परंतु नए कानून के तहत, राष्ट्रीय आयोग के पास उन शिकायतों पर विचार करने का अधिकार क्षेत्र है, जहां ''माल या सेवाओं के मूल्य के लिए किया गया भुगतान'' 10,00,00,000 रुपये से अधिक है।

    आयोग ने कहा कि यह परिवर्तन ये सुनिश्चित करने के इरादे से किया गया है ताकि उपभोक्ता ''उपयुक्त'' उपभोक्ता फोरम से संपर्क करें।

    यह सच है कि 1986 के पूर्व अधिनियम के तहत, यदि कोई व्यक्ति 60,00,000 रुपये में एक संपत्ति खरीदने के लिए सहमत होता है और बाद में वह उपभोक्ता फोरम से संपर्क कर 50,00,000 रुपये मुआवजे के साथ अपना पैसा वापिस दिलाए जाने की मांग करता है तो ऐसे में मूल्य 1,00,00,000 रुपये से अधिक होगा और उपभोक्ता अपनी शिकायत राष्ट्रीय आयोग के समक्ष दायर कर सकता था।

    आयोग ने कहा कि शब्द ''और मुआवजा'' की जगह शब्द ''पेड या भुगतान'' कर दिया गया है,जो निश्चित तौर पर उपभोक्ताओं को सीधे राष्ट्रीय आयोग के पास जाने से रोकने के लिए किया गया है।

    आयोग ने यह भी कहा कि-

    ''ऐसा प्रतीत होता है कि संसद ने 2019 के अधिनियम को लागू करते समय इस तथ्य पर विचार किया है और यह सुनिश्चित करने के लिए ऐसा किया गया है ताकि उपभोक्ता एक उचित उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग से ही संपर्क करें, चाहे वह जिला, राज्य या राष्ट्रीय आयोग हो और फोरम के विशेष अधिकार क्षेत्र का निर्धारण करते समय केवल भुगतान किए गए मूल्य को ही ध्यान में रखा जाए। इसीलिए जिला उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग,राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग और राष्ट्रीय आयोग के विशेष अधिकार क्षेत्र के लिए धारा 34 (1), 47 (1) (ए) (i) और 58 (1) (ए) (i) में विशिष्ट प्रावधान किए गए हैं।''

    ऐसे में वर्तमान मामले में दायर शिकायत पर विचार करने का अधिकार क्षेत्र आयोग के पास नहीं है और इसे खारिज किया जाता है।

    केस का शीर्षक- मैसर्स पयारीदेवी चाबीराज स्टील्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड व अन्य।

    आदेश की काॅपी डाउनलोड करें।



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