जज के व्यक्तिगत पूर्वाग्रह का अनुमान लगाने के लिए प्रतिकूल आदेश आधार नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ट्रांसफर याचिका खारिज की
LiveLaw News Network
13 Oct 2021 12:44 PM IST
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह कहा कि एक प्रतिकूल आदेश जज के व्यक्तिगत पूर्वाग्रह का अनुमान लगाने का आधार नहीं हो सकता है। कोर्ट ने कहा कि अगर ट्रांसफर याचिका को अनुमति देने के लिए इस आधार को स्वीकार किया जाता है तो न्याय के पहिये ठप हो जाएंगे।
जस्टिस जेजे मुनीर की खंडपीठ ने यह टिप्पणी एक याचिका पर की, जिसमें एक हिंदू विवाह याचिका को एडिशनल प्रिंसिपल जज, फैमिली कोर्ट, फिरोजाबाद से किसी अन्य कोर्ट में ट्रांसफर करने की मांग की गई थी। पीठ ने याचिका खारिज कर दी।
मामला
याचिका में ट्रांसफर के आधार के रूप में आवेदक (नेहा भारद्वाज) के मन में एडिशनल प्रिंसिपल जज, फैमिली कोर्ट, फिरोजाबाद की कोर्ट में पीठासीन जज की निष्पक्षता और ईमानदारी के संबंध में मौजूद संदेह को पेश किया गया था। उन्होंने पीठासीन जज की निष्पक्षता के बारे में संदेह का अनुमान लगाने के लिए पारित आदेशों का उल्लेख किया था।
उन्होंने याचिका में बताया था कि मामले में मुद्दों को 11.12.2017 को फ्रेम किया गया था, और मुद्दों को फ्रेम करने के बाद, प्रतिवादी ने कुछ दस्तावेजों को स्वीकार करने के लिए एक आवेदन दायर किया, जिन्हें मुद्दों को फ्रेम करने के बाद दायर नहीं किया जा सकता था।
चूंकि आवेदक को आवेदन 34Ga की तामील नहीं की गई थी, जिसके बाद उन्होंने अदालत में एक आवेदन दायर किया, जिसमें दस्तावेजों की एक प्रति तामील करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी। हालांकि, पीठासीन जज ने 25 जनवरी 2018 को मांग को खारिज कर दिया।
आवेदक इसके बाद हाईकोर्ट चली गई, जहां प्रतिवादी को उन्हें सभी दस्तावेज उपलब्ध कराने का निर्देश दिया गया।
उन्होंने दावा किया कि अदालत ने 11 अगस्त 2021 को सुनवाई निर्धारित की, उन्हें साक्ष्य पेश करने का अंतिम अवसर दिया, और 11 अगस्त 2021 को साक्ष्य पेश करने का अवसर समाप्त कर दिया। जिसके बाद मामले को बहस के लिए निर्धारित किया गया।
आवेदक ने जोर देकर कहा कि वह अपने पीठासीन अधिकारी के कठोर व्यवहार से हैरान थी।
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 25 के तहत उनकी 2014 की हिंदू विवाह याचिका संख्या 574 और 2014 की केस संख्या 75 को समेकित करने के लिए एक आवेदन दायर किया, जिसे पर अदालत ने कोई आदेश पारित नहीं किया और साक्ष्य पेश करने का अवसर कर दिया। जिसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट में ट्रांसफर याचिका दायर की।
आदेश
कोर्ट ने कहा कि फैमिली कोर्ट के पीठासीन जज के पक्षपाती होने का अनुमान लगाने के लिए जो कुछ भी निष्कर्ष निकालने का आग्रह किया गया था, वह अनुमान के दायरे में था और न्यायालय के प्रति अनादर के सामान्य रवैये का प्रकटीकरण था..।
कोर्ट ने कहा, "केवल इसलिए कि न्यायालय किसी मामले में तेजी से आगे बढ़ता है या अवैध रूप से एक प्रस्ताव को खारिज कर देता है, इसका मतलब यह नहीं है कि कोर्ट एक विशेष वादी के खिलाफ पक्षपाती है।"
कोर्ट ने आवेदक के ट्रांसफर की अनुमति देने के लिए कोई अच्छा आधार नहीं मिलने पर न्यायालय ने याचिका को खारिज कर दिया।
केस टाइटल- नेहा भारद्वाज बनाम पंकज भारद्वाज