'अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित हिंदू कानून को नकारने का संसद के पास कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है', 'ज्ञानवापी मस्जिद क्षेत्र में मंदिर की पुनर्स्थापना' के लिए वाराणसी में मुकदमा दायर
LiveLaw News Network
19 Feb 2021 11:54 AM IST
वाराणसी में सिविल सीनियर जज के समक्ष एक मुकदमा दायर किया गया है, जिसमें "ज्ञानवापी मस्जिद क्षेत्र में एक प्राचीन मंदिर की मुख्य गद्दी पर अनुष्ठान की बहाली" की मांग की गई है। मुकदमा मां गौरी के "अगले मित्र" के रूप में रंजना अग्निहोत्री और 9 अन्य लोगों ने दायर किया है। वादकारियों ने दावा किया है कि वो भगवान शिव के भक्त और उपासक हैं।
मुकदमे में गृह मंत्रालय के माध्यम से केंद्र सरकार, उत्तर प्रदेश राज्य, डीएम वाराणसी, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, वाराणसी, यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड, प्रबंधन समिति, अंजुमन इंतजामिया मस्जिद और न्यासी बोर्ड काशी विश्वनाथ मंदिर को प्रतिवादी बनाया गया है।
याचिका में मांग की गई है कि देवी गौरी, भगवान हनुमान, भगवान गणेशजी, नंदजी और भगवान विशेश्वर के भक्तों को विवादित क्षेत्र में दर्शन, पूजन और अनुष्ठान का अधिकार दिया जाए।
याचिका में कहा गया है कि प्रत्येक नागरिक को अनुच्छेद 25 के तहत अपने धर्म के अनुसार पूजा और अनुष्ठान का मौलिक अधिकार है और 26 जनवरी 1950 से पहले खड़ी की गई कोई भी "बाधा" अनुच्छेद 13(1) के आधार पर शून्य हो जाती है।
याचिका में कहा गया है- "एक मूर्ति पूजक अपनी पूजा को पूरा नहीं कर सकता है और पूजा की वस्तु के बिना आध्यात्मिक लाभ प्राप्त नहीं कर सकता है। पूजा करने में खड़ी की गई कोई भी बाधा भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत गारंटीकृत धर्म के अधिकार से वंचित किए जाने जैसा है।"
इसके अलावा, वादी ने दावा किया है कि 1669 में औरंगजेब के आदेशों से प्राचीन मंदिर को अपवित्र और क्षतिग्रस्त किया गया था। याचिका में कहा गया है, "यह ऐतिहासिक रूप से सिद्ध है कि 1585 में अकबर के वित्तमंत्री राजा टोडरमल ने, जो कि जौनपुर के गवर्नर थे, ने भगवान शिव मंदिर को अपने मूल स्थान पर पुनर्स्थापित किया था और पुनर्निर्माण कराया था, जिसमें एक केंद्रीय गर्भगृह था, जो आठ मंडप और पवैलियनों से घिरा हुआ था, जिसे पुराने मंदिर के रूप में जाना जाता है।"
याचिका में दावा करती है कि पुराणों के अनुसार, देवी गौरी की पूजा "भगवान विश्वनाथ की पूजा का फल प्राप्त करने के लिए अनिवार्य है।"
इसके अलावा, वादी की ओर से तर्क दिया गया है कि भक्त विवादित स्थान पर पूजा करते रहे हैं, जिसे 1990 में "मुस्लिमों को खुश करने" यूपी सरकार ने अयोध्या आंदोलन के दौर में बंद करा दिया।
याचिका में कहा गया है, "क्रूर इस्लामी शासकों में से एक औरंगज़ेब हिंदू मंदिरों को नष्ट करने में सिरमौर रहा। उसने काशी और मथुरा सहित कई मंदिरों को नष्ट करने के लिए वर्ष 1669 में 'फरमान' जारी किया था, जिनकी पूजा हिंदू प्रमुख रूप से करते थे। प्रशासन ने आदेश का पालन किया और वाराणसी में आदि विशेश्वर के मंदिर के एक हिस्से को ध्वस्त कर दिया और बाद में उसी स्थल पर 'ज्ञानवापी मस्जिद' का निर्माण किया गया, हिंदू मंदिर के धार्मिक चार्टर को नहीं बदल सके, और शृंगार गौरी, भगवान गणेश और अन्य सहयोगी देवताओं की मूर्तियां उसी परिसर में हैं।"
इस दलील को नकारते हुए कि उक्त संपत्ति वक्फ बोर्ड की है, याचिका में कहा गया है कि न तो मुगल शासन के दौरान लिखी गई ऐतिहासिक किताबों और न ही मुस्लिम इतिहासकारों ने कभी यह दावा किया है कि औरंगजेब ने आदि विशेश्वर के मंदिर ढांचे को ध्वस्त करने के बाद किसी वक्फ का निर्मण किया या मुस्लिम समुदाय के सदस्य या शासक ने ऐसी संपत्ति वक्फ को समर्पित की।
याचिका में कहा गया है, "संसद के पास कोई भी कानून बनाने की शक्ति नहीं है जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 द्वारा प्रदत्त अधिकारों को छीनती या निरस्त करती है। अधिनियम की धारा 4 हिंदुओं के धर्म के अधिकार का उल्लंघन करती है क्योंकि अदालत का दरवाजा खटखटाने का उनके अधिकार को उपासना स्थल, 1991 के जरिए छीन लिया गया है, और इसलिए अधिनियम की धारा 4 शून्य और अल्ट्रा वायर्स है।"
वादियों ने आगे कहा है "यह स्थान प्राचीन काल से हिंदुओं के लिए पवित्र है। मंदिर की मौजूदा व्यवस्था मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा ध्वस्त कर दी गई थी। यह प्रस्तुत किया जाता है कि हिंदुओं को मानसिक और आध्यात्मिक रूप से पीड़ित होने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है..."
वादियों ने निम्नलिखित राहतें मांगी हैं:
1. घोषण की प्रकृति का आदेश जारी किया कि क्षेत्र के भीतर उपासक दर्शन, पूजा के हकदार हैं।
2. यह पूरा विवाद वाराणसी शहर के केंद्र में दशाश्वमेघ स्थित देवता स्थान भगवान आदि विशेश्वर का है।
3. प्रतिवादियों के खिलाफ उन्हें, और उनके कार्यकर्ताओं, एजेंटों, अधिकारियों, पदाधिकारियों और उनके अधीन काम करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को रोकने और नए मंदिर के निर्माण में किसी भी तरह की आपत्ति या बाधा उत्पन्न करने पर रोक लगाने के लिए एक स्थायी निषेधाज्ञा की प्रकृति की डिक्री पारित करें..
4. गौरी शृंगार जी, मां गंगा, भगवान हनुमान, भगवान गणेश जी, नंद जी की पूजा बहाल की जाए। दर्शन और पूजा के लिए उचित व्यवस्था की जाए और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए उचित इंतजाम किए जाएं।