वैवाहिक विवादों में माता-पिता द्वारा नाबालिग बच्चों के भरण-पोषण के लिए आवेदन न करने की स्थिति में बच्चों के हितों की रक्षा करना न्यायालय का कर्तव्य : मद्रास हाईकोर्ट

Shahadat

4 Jan 2023 11:25 AM GMT

  • वैवाहिक विवादों में माता-पिता द्वारा नाबालिग बच्चों के भरण-पोषण के लिए आवेदन न करने की स्थिति में बच्चों के हितों की रक्षा करना न्यायालय का कर्तव्य : मद्रास हाईकोर्ट

    Madras High Court

    मद्रास हाईकोर्ट ने तलाक की याचिका पूनमल्ले से तिरुचिरापल्ली ट्रांसफर करने की मांग को लेकर दायर महिला की याचिका को अनुमति देते हुए कहा कि माता-पिता अपने नाबालिग बच्चों का भरण-पोषण करने के लिए बाध्य हैं और किसी औपचारिक आवेदन की गैर मौजूदगी में न्यायालय का कर्तव्य है कि वह नाबालिग बच्चों के हितों की रक्षा के लिए अंतरिम भरण-पोषण का आदेश देने पर विचार करे।

    जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम ने कहा कि हालांकि अंतरिम भरण-पोषण का आदेश इस शर्त पर है कि पत्नी या पति, जो दावा करता है, उसके पास उसके या उसके समर्थन के लिए पर्याप्त स्वतंत्र आय न हो, यह भरण-पोषण के दावे का कोई जवाब नहीं है कि पत्नी शिक्षित है और अपना भरण-पोषण कर सकती है।

    अदालत ने कहा कि यह माना गया कि अगर पत्नी कमा रही है तो यह दलील पति द्वारा गुजारा भत्ता दिए जाने पर रोक के रूप में काम नहीं कर सकती। पीठ ने कहा कि भरण-पोषण देने के लिए पति का दायित्व पत्नी की तुलना में ज्यादा है।

    अदालत ने कहा,

    "भरण-पोषण का उपाय सामाजिक न्याय का उपाय है, जैसा कि संविधान के तहत पत्नी और बच्चों को अभाव में भटकने से रोकने के लिए परिकल्पित किया गया है, जिसकी भारतीय संविधान की प्रस्तावना और अनुच्छेद 39 और 15 (3) सामाजिक न्याय और महिला और बच्चों को सक्षम बनाने के लिए सकारात्मक राज्य कार्रवाई की परिकल्पना की गई है।“

    अदालत ने कहा कि "विभिन्न पहलुओं पर दबाव" के कारण वैवाहिक विवादों के पक्षकार नाबालिग बच्चों के लिए भी अंतरिम भरण-पोषण देने के लिए कोई औपचारिक आवेदन दायर नहीं कर रहे हैं।

    अदालत ने कहा,

    "ऐसी परिस्थितियों में यह सुनिश्चित करना न्यायालय का कर्तव्य है कि पति और पत्नी के बीच वैवाहिक विवादों के लंबित रहने के दौरान किसी औपचारिक आवेदन के अभाव में नाबालिग बच्चे के हितों की रक्षा के लिए अंतरिम भरण-पोषण प्रदान किया जाए।"

    कोर्ट ने कहा कि कई मामलों में बेरोजगार माताएं अपने नाबालिग बच्चों का भरण-पोषण कर रही हैं, जिससे उनके उम्रदराज माता-पिता पर बोझ पड़ रहा है।

    अदालत ने कहा,

    "दादा-दादी अपने नाबालिग बच्चों के बोझ तले दबे हैं और उन नाबालिग बच्चों के पिता कमाने वाले सदस्य हैं और भरण-पोषण की अपनी जिम्मेदारी से बच रहे हैं, जिसे अदालतें बर्दाश्त नहीं कर सकतीं। प्राथमिक प्रकृति की होने के कारण बच्चों का भरण-पोषण करना पिता का कर्तव्य है। पिता पति-पत्नी के बीच वैवाहिक विवाद होने पर नाबालिग बच्चे/बच्चों का भरण-पोषण करने के लिए बाध्य है।"

    महिला के वकील ने कहा कि उसका पति नाबालिग बच्चे के लिए भी अंतरिम गुजारा भत्ता नहीं दे रहा है, जिसके बाद अदालत ने यह टिप्पणी की। महिला अपने 11 महीने के बच्चे के साथ फिलहाल तिरुचिरापल्ली में अपने माता-पिता के साथ रह रही है।

    सुनवाई के दौरान पति के वकील ने कहा कि वह नाबालिग बच्चे के लिए अंतरिम गुजारा भत्ता देने को तैयार है। यह भी तर्क दिया गया कि महिला डेंटिस है और वह पूनमल्ली में केस लड़ सकती है।

    हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि चूंकि उसकी पत्नी उसे बच्चे को देखने की अनुमति नहीं दे रही है, इसलिए वह अंतरिम भरण-पोषण का भुगतान करने की "स्थिति में" नहीं होंगे।

    अदालत ने कहा कि उक्त तर्क उस व्यक्ति के "रवैये और आचरण को दर्शाता है", जो कोई और नहीं बल्कि 11 महीने की बच्ची का पिता है। प्रतिवादी, जो लोक सेवक है, उसके इस तरह के दृष्टिकोण को किसी भी परिस्थिति में अदालत द्वारा प्रोत्साहित नहीं किया जाना चाहिए।

    अदालत ने कहा,

    "प्रतिवादी पिता होने के नाते बच्चे के भरण-पोषण के लिए जिम्मेदार है। इस प्रकार उसे बच्चे की आजीविका के लिए याचिकाकर्ता के साथ भरण-पोषण साझा करना होगा, जो अब याचिकाकर्ता पत्नी की कस्टडी में है। अंतरिम भरण-पोषण 5,000/- रुपये प्रति माह का भुगतान प्रतिवादी द्वारा याचिकाकर्ता को प्रत्येक कैलेंडर माह के 10 वें दिन या उससे पहले करने का निर्देश दिया जाता है, जिसे याचिकाकर्ता के बैंक खाते में जमा किया जाए।"

    अदालत ने आगे कहा कि केवल मुलाक़ात के अधिकार से इनकार को भरण-पोषण के भुगतान से छूट का आधार नहीं बनाया जा सकता, क्योंकि मुलाक़ात के अधिकार अन्य तथ्यों और परिस्थितियों पर आधारित होते हैं।

    पिता की जिम्मेदारी प्रकृति में प्राथमिक होने के कारण पति-पत्नी के बीच वैवाहिक विवाद होने पर नाबालिग बच्चे के भरण-पोषण के लिए पिता कर्तव्यबद्ध होते हैं। मुलाक़ात के अधिकार से इनकार करना भरण-पोषण के भुगतान से छूट देने का आधार नहीं है। मुलाक़ात का अधिकार अन्य तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर तय किया जाना है, जो नाबालिग बच्चे के भरण-पोषण के अनुदान से जुड़ा नहीं है।

    यह देखते हुए कि महिला बेरोजगार है और 11 महीने की बच्ची की देखभाल कर रही है, अदालत ने कहा कि उसके पति द्वारा दायर तलाक के मामले को उस स्थान पर ट्रांसफर किया जाना है, जहां वह वर्तमान में रह रही है।

    अदालत ने याचिका की अनुमति देते हुए कहा,

    "पूनमल्ली के सब-कोर्ट को निर्देश दिया जाता है कि इस आदेश की प्रति प्राप्त होने की तारीख से चार सप्ताह की अवधि के भीतर मामले के कागजात तिरुचिरापल्ली में फैमिली कोर्ट को भेज दें।"

    केस टाइटल: पी गीता बनाम वी. किरुभरण

    साइटेशन: लाइवलॉ (मैड) 2/2023

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