हमारी न्याय‌िक प्रणाली को एक हाइब्रिड सिस्टम की जरूरत है, जहां वकीलों को फिजिकल या वर्चुअल सुनवाई के बीच चुनाव की सुविधा दी जाए: जस्ट‌िस गौतम पटेल

LiveLaw News Network

27 Dec 2020 12:15 PM GMT

  • हमारी न्याय‌िक प्रणाली को एक हाइब्रिड सिस्टम की जरूरत है, जहां वकीलों को फिजिकल या वर्चुअल सुनवाई के बीच चुनाव की सुविधा दी जाए: जस्ट‌िस गौतम पटेल

    फोरम फॉर फास्ट जस्टिस, पब्लिक कंसर्न फॉर गवर्नेंस ट्रस्ट और नेशनल फेडरेशन ऑफ सोसाइटीज फॉर फास्ट जस्टिस ने शनिवार को एक वेबनिार का आयोजन किया, जिसका विषय था, " ए विजन फॉर वर्चुअल कोर्ट्स"।

    वेबिनार में भारतीय न्यायिक प्रणाली में वर्चुअल सुनवाई की आवश्यकता और महत्व पर चर्च की गई। वेबिनार के वक्ताओं में सुप्रीम कोर्ट ई-समिति के मौजूदा उपाध्यक्ष रिटायर्ड जस्टिस आरसी चव्हाण और बॉम्बे हाईकोर्ट के जज, जस्टिस गौतम एस पटेल शामिल थे। कार्यक्रम का संचालन पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त श्री शैलेश गांधी ने किया।

    जस्टिस गौतम पटेल ने कोरोनोवायरस महामारी के मद्देनजर फिजिकल सुनवाई से वर्चुअल अदालतों की ओर हुए तात्कालिक रुझान की चर्चा की। उन्होंने कहा "जनवरी 2020 में, हमें नहीं पता था कि हमारे रास्ते में क्या आने वाला है। फिर मार्च आया, जब सब कुछ बंद हो गया। हम कहां थे, हमने क्या किया, आज हम कहां हैं, यह एक वक्र है, जो हमें बताएगा कि हम यहां से कहां जाते हैं।"

    जस्टिस पटेल ने बताया कि शुरुआत में वर्चुअल सुनवाई के उनके लिए नई चीज थी, और ऑनलाइन वीडियो प्लेटफॉर्म कैसे काम करता है, वे इस बात से भी अपरिचित थे। उन्होंने कहा कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग और ई-कोर्ट का यह नया युग तब तक जारी रहना चाहिए जब तक कि यह दिखाने के लिए कुछ अनुभवजन्य साक्ष्य न हों कि ई-अदालतें फिजिकल सुनवाई की तुलना में कम कुशल और अधिक महंगी हैं।

    उन्होंने कहा, "वास्तव में, अनुभवजन्य साक्ष्य इसके विपरीत है कि ये बहुत ही सस्ती हैं। इनके पास अन्य दक्षताएं हैं। एक जज के रूप में मुझे लगता है कि इनमें यह कमी है एक उच्‍च स्तर को जिरह करते हुए अपने सामने नहीं देख पाता हूं। लेकिन यह बहुत ही कम कीमत है।"

    उन्होंने कहा कि भारतीय न्यायिक प्रणाली को ई-कोर्ट गवर्नेंस के एक हाइब्रिड मॉडल की जरूरत है, जिसमें अदालतों और वकीलों को फिजिकल सुनवाई में शामिल होने का विकल्प चुनने की अनुमति हो, साथ ही ऐसे वकीलों, वादकारियों के लिए वर्चुअल कोर्ट सुविधा भी उपलब्ध हो, जो उम्र, दूरी या किसी अन्य कारक के कारण फिजिकल सुनवाई में असमर्थ नहीं हैं।

    उन्होंने आगे कहा कि देश भर की सभी अदालतों में, विशेष रूप से उच्च न्यायालयों और सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइटों के बीच एकरूपता को अपनाने के लिए एक मानकीकृत ई-कोर्ट मॉडल होने की आवश्यकता है।

    उन्होंने कहा, "हमें न्यायपालिका के लिए मानकीकरण का पालन करना होगा। एक मानक होना चाहिए। जिस सॉफ्टवेयर का उपयोग किया जाता है, फाइलिंग प्रोटोकॉल और हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइटें भी एक मानकीकृत तरीके से होनी चाहिए। पूरा सर्च मैकेनिज्म अलग-अलग अदालतों में अलग-अलग है। एक इंटर-लिंक्ड सर्च प्लेटफॉर्म होना चाहिए, जहां एक साइट को सभी अदालतों की जानकारी देनी चाहिए।"

    जस्टिस पटेल ने ई-कोर्ट मैके‌निज्म के ऐसे मानकीकृत रूप को लागू करने में आने वाली समस्याओं के बारे में भी बात की। जस्टिस पटेल ने कहा कि ई-कोर्ट उन मामलों में एक मसला हो सकता है, जहां अदालती कार्यवाहियों और अदालतों में ट्रायल के दौरान अंडर ट्रायल अभियुक्त अपने वकील से बात करने में सक्षम न हो।

    उन्होंने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से मामलों के निस्तारण के अपने व्यक्तिगत अनुभव पर खुशी व्यक्त की।

    उन्होंने कहा, "मेरे क्लर्क एक अप्रैल से दिसंबर 2020 तक डेटा भेजा ‌है, और बॉम्बे हाईकोर्ट में सूचीबद्ध मामलों की कुल संख्या 1948 है, जिनमें 903 मामलों का निस्तारण किया गया है। जो मुझे लगता है कि मैंने फिजिकल अदालतों में नहीं हो पाता।"

    जस्टिस आरसी चव्हाण की टिप्‍पण‌ियां

    जस्टिस चव्हाण ने भारत जैसे विविधतापूर्ण आबादी वाले देश में ई-कोर्ट के महत्व पर चर्च की। उन्होंने फिजिकल मामलों की सुनवाई के कारण मामलों के लंबित होने और अन्य व्यावहारिक मुद्दों पर जोर दिया।उन्होंने बड़ी संख्या में कागजों की खपत के मुद्दे पर भी चर्च की, और कहा कि इससे पर्यावरणीय संसाधनों का निर्मम शोषण होता है।

    जस्टिस आरसी चव्हाण ने सुप्रीम कोर्ट ई-कमेटी के उपाध्यक्ष के रूप में, दर्शकों को COVID-19 के दौरान वर्चुअल सुनवाई के जरिए पर्याप्त कामकाज को सुनिश्चित करने के लिए समिति द्वारा किए गए प्रयासों के बारे में बताया।

    उन्होंने कहा, "मैं अदालतों से यह सुनिश्चित करने का अनुरोध करता हूं कि केवल उन्हीं व्यक्तियों को जिनकी उपस्थिति अदालत के लिए जरूरी है, शारीरिक रूप से उपस्थित होने की जरूरत है। 18,000 अदालतों में से लगभग 12,000 आपराधिक अदालतें हैं। इन अदालतों में, कम से कम एक चिकित्सा अधिकारी को उपस्थ‌ित होना आवश्यक है। इसके लिए पैसे कौन देगा? गरीब मरीज, जो अस्पताल में डॉक्टर की प्रतीक्षा कर रहे हैं। यह अत्याचार है और अकल्पनीय है। ऐसी पहल की गई हैं, जहां कई डॉक्टरों या सर्जनों को वीडियो कॉल्स के माध्यम से बुलाया जाता है।"

    जस्टिस चव्हाण ने अदालतों में पुलिस मशीनरी की उपस्थिति के कारण अति-भीड़ के मुद्दे पर भी प्रकाश डाला।

    उन्होंने कहा, "हम सभी सहमत होंगे कि हमारी पुलिस मशीनरी खराब तरीके से संचालित है। हमारे पास कानून और व्यवस्था बनाए रखने या अपराध को कम करने के लिए पर्याप्त पुलिसकर्मी नहीं हैं। हमारे पास पुलिसकर्मियों के लिए बहुत सारे वीआईपी कर्तव्य हैं, इसलिए पुलिस बल का आधा हिस्सा है पहले ही खराब हो चुके हैं। अन्य आधे जो काम कर रहे हैं उन्हें स्वाभाविक रूप से अदालतों में पेश होना है। "

    उन्होंने कागजों के उपयोग को कम करने का आवाह्न करते हुए अपनी बात समाप्त की। उन्होंने कहा‌, "जहां भी संभव हो कागज का उपयोग कम करें। व्यक्तिगत सुनवाई से बचें जब तक कि पूरी तरह से आवश्यक न हो और वर्चुअल अदालतों के जर‌िए अधिक से अधिक मामले और कार्यवाही के कई चरणों को आगे बढ़ाएं।"

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