ओडिशा भूमि विखंडन निवारण अधिनियम की धारा 37 | तहसीलदार पुनर्विचार प्राधिकारी के निर्देश के विरुद्ध अधिकारों के रिकॉर्ड में संशोधन नहीं कर सकते: हाईकोर्ट
Shahadat
12 Sept 2022 11:22 AM IST
उड़ीसा हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि तहसीलदार अधिकारों के रिकॉर्ड ('आरओआर') में संशोधन या सुधार नहीं कर सकता है, जो ओडिशा चकबंदी और भूमि के विखंडन की रोकथाम अधिनियम, 1972 (ओसीएच और पीएफएल अधिनियम) की धारा 37 के तहत संशोधन प्राधिकरण के निर्देशों के खिलाफ जा रहा हो।
जस्टिस विश्वनाथ रथ की एकल न्यायाधीश पीठ ने इस तरह के विचलन को अलग करते हुए कहा,
"तहसीलदार ने अपने सीमित अधिकार क्षेत्र में ओसीएच और पीएफएल अधिनियम (ओडिशा भूमि विखंडन निवारण अधिनियम)की धारा 37 के तहत सक्षम प्राधिकारी के निर्देश से भिन्न निर्णय लिया, जो कानून की नजर में स्वीकार्य नहीं है। इस न्यायालय की राय के लिए जब तक सक्षम प्राधिकारी का आदेश ओसीएच और पीएफएल अधिनियम, 1972 की धारा 37(1) के तहत बरकरार रहता है, तब तक तहसीलदार अधीनस्थ प्राधिकारी होने के कारण इसके लिए बाध्य है।"
पृष्ठभूमि:
ओसीएच और पीएफएल अधिनियम की धारा 37(1) के अन्तर्गत कार्यवाही के निस्तारण में पुनर्विचार प्राधिकारी ने राज्य प्राधिकरणों के साथ-साथ उसमें शामिल निजी पक्षों को सुनवाई का अवसर प्रदान करने के बाद निम्नानुसार निर्देशित किया:
"तहसीलदार बालीपटना को निर्देश दिया जाता है कि सभी दस्तावेजों का सत्यापन कर याचिकाकर्ता और प्रतिवादी पक्षकारों के पक्ष में वाद भूमि को अलग-अलग अकाउंट बनाकर 02 से 19 तक दर्ज करें और हल अकाउंट नंबर में 542 सर्कुलर नंबर XLII-65/87, 8089/LRS दिनांक: 13-07-1987 के अनुसार राजस्व बोर्ड, ओडिशा कटक द्वारा जारी कानून की उचित प्रक्रिया के बाद हल प्लॉट नंबर 154 और 155 से कब्जे के नोट को हटा दें।"
तथापि, तहसीलदार ने उक्त निर्देश से विचलित होकर उपरोक्त आदेश के विरुद्ध आरओआर में संशोधन किया।
निर्धारण के लिए मुद्दा:
क्या तहसीलदार पुनर्विचार प्राधिकारी की दिशा के विचलन में अधिकारों के रिकॉर्ड के सुधार की शक्ति का प्रयोग करने में सही है?
न्यायालय के निष्कर्ष:
अदालत ने कहा कि तहसीलदार ने सक्षम प्राधिकारी द्वारा लिए गए निर्णय के बाद जो कार्यवाही की, वह ओसीएच और पीएफएल अधिनियम की धारा 37 (1) के तहत जारी निर्देश के खिलाफ है। खंडपीठ ने कहा कि कानून की नजर में तहसीलदार का उक्त कार्य अनुमेय नहीं है और उसकी सुविचारित राय में जब तक उपरोक्त प्रावधान के तहत सक्षम प्राधिकारी का आदेश बरकरार रहता है, तब तक तहसीलदार अधीनस्थ प्राधिकारी होने के लिए बाध्य है।
अदालत ने पाया कि कार्यवाही के निपटान में तहसीलदार ने अपने अधिकार क्षेत्र को पार कर लिया और यहां तक कि सीनियर अधिकारी के निर्देश के विपरीत भी काम किया। तद्नुसार, न्यायालय ने तहसीलदार के आक्षेपित आदेश में हस्तक्षेप करते हुए उसे निरस्त कर दिया और पुनर्विचार प्राधिकारी के निर्देश के अनुसार मामले को पुनर्विचार के लिए तहसीलदार को वापस भेज दिया।
केस टाइटल: अनुग्रह नारायण पटनायक बनाम ओडिशा राज्य और अन्य।
केस नंबर: डब्ल्यू.पी.(सी) नंबर 20072/2022
निर्णय दिनांक: 7 सितंबर, 2022
कोरम: जस्टिस विश्वनाथ रथ
याचिकाकर्ता के वकील: मेसर्स. ए. मोहंती जी.एम. रथ, ए.एस. मोहंती, एल. प्रधान
प्रतिवादियों के लिए वकील: एस.पी. पांडा, अतिरिक्त सरकारी वकील
साइटेशन: लाइव लॉ (ओरि) 132/2022
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