उड़ीसा हाईकोर्ट ने कथित हत्या के मामले में एफआईआर दर्ज करने से इनकार करने वाले पुलिस अधिकारी की फील्ड पोस्टिंग पर रोक लगाई, संवेदनशील होने के लिए ट्रेनिंग का आदेश दिया

Shahadat

13 Dec 2022 5:39 AM GMT

  • उड़ीसा हाईकोर्ट ने कथित हत्या के मामले में एफआईआर दर्ज करने से इनकार करने वाले पुलिस अधिकारी की फील्ड पोस्टिंग पर रोक लगाई, संवेदनशील होने के लिए ट्रेनिंग का आदेश दिया

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने हत्या जैसे गंभीर आरोप से जुड़े एक मामले में प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज करने में पुलिस की निष्क्रियता और संस्थागत सुस्ती के खिलाफ कड़ी कार्रवाई में राज्य की पुलिस में प्रभारी निरीक्षक (आईआईसी) के लिए 'संवेदनशील होने के लिए ट्रेनिंग' का निर्देश दिया। कोर्ट ने पुलिस आयुक्त, भुवनेश्वर को अगले एक साल के लिए अधिकारी को कोई भी 'फील्ड पोस्टिंग' सौंपने से रोकने का भी निर्देश दिया।

    जस्टिस संजीब कुमार पाणिग्रही की एकल न्यायाधीश पीठ ने उक्त पुलिस अधिकारी के कृत्य की निंदा करते हुए कड़ी टिप्पणी की,

    "पुलिस द्वारा दिखाई गई निष्क्रियता निंदनीय है। यदि यहां लगाए गए आरोपों में रत्ती भर भी सच्चाई है तो पुलिस द्वारा इस तरह की बदनामी कड़ी निंदा की जानी चाहिए। पुलिस का मुख्य मिशन नागरिकों को समाज के अवांछित तत्वों से बचाना है। लेकिन अगर इसकी कार्रवाइयां समुदाय को आपराधिक उत्पीड़न के प्रति अधिक संवेदनशील बनाने के लिए हैं तो यह कानून प्रवर्तन में लोकप्रिय विश्वास को कम करेगा।"

    याचिकाकर्ता एक वृद्ध माता-पिता हैं, उन्होंने आरोप लगाया कि उनके बेटे की हत्या की गई और प्रार्थना की कि जांच अपराध शाखा या किसी अन्य स्वतंत्र एजेंसी को सौंपी जाए, क्योंकि पुलिस ने उसकी शिकायत दर्ज करने से इनकार कर दिया, भले ही उक्त हत्या को सात महीने से अधिक समय बीत चुका हो।

    इस प्रकार, अदालत ने संबंधित आईआईसी को 23 नवंबर, 2022 को तलब किया। हालांकि, वह इस तथ्य के बावजूद एफआईआर दर्ज न करने के लिए कोई ठोस स्पष्टीकरण नहीं दे सकीं कि मृतक के बूढ़े माता-पिता ने कई मौकों पर उक्त पुलिस स्टेशन का दरवाजा खटखटाया था।

    इसलिए अदालत ने पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) को मामले की जांच करने और सात दिनों के भीतर इस संबंध में रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश दिया। डीसीपी ने अपने पत्र दिनांक 03.12.2022 में कहा कि न तो रसीद रजिस्टर और न ही उक्त पुलिस स्टेशन में रखे गए किसी अन्य कागज/रिकॉर्ड में याचिकाकर्ता द्वारा दर्ज की गई ऐसी किसी रिपोर्ट का उल्लेख है।

    बेंच ने तब कहा,

    "वास्तव में यह अनुमानित तथ्य है कि जब शिकायतकर्ता को पुलिस अधिकारी द्वारा कोई शिकायत प्राप्त करने से मना कर दिया गया तो यह स्वाभाविक है कि पुलिस स्टेशन में किसी भी रसीद प्रमाण या रिकॉर्ड का कोई निशान नहीं होगा।"

    अदालत ने कहा कि आश्चर्यजनक रूप से याचिकाकर्ता द्वारा हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने के बाद पुलिस ने लिखित शिकायत को स्वीकार किया और 24.11.2022 को एफआईआर दर्ज की। यह आरोप लगाया गया कि पुलिस की ओर से इस तरह की निष्क्रियता का उद्देश्य आरोपी को बचाना है, जो पुलिस अधिकारी बताया जाता है।

    अदालत ने इस पर निराशा जाहिर करते हुए कहा,

    "यह अदालत इस बात की थाह लेने में विफल रही है कि याचिकाकर्ता को एफआईआर दर्ज करने के लिए इस अदालत से आदेश लेने के लिए हाईकोर्ट जाने के लिए क्यों मजबूर होना चाहिए, यह संबंधित पुलिस स्टेशन की असंवेदनशीलता को दर्शाता है।"

    तदनुसार, पुलिस आयुक्त, भुवनेश्वर को आदेश दिया गया कि संबंधित अधिकारी को एक वर्ष के लिए कोई फील्ड पोस्टिंग न सौंपे। साथ ही उसे एक महीने के लिए बीजू पटनायक राज्य पुलिस अकादमी, भुवनेश्वर में संवेदीकरण प्रशिक्षण के लिए भेजे जाने का निर्देश दिया।

    निष्कर्ष निकालने से पहले अदालत ने डीसीपी को व्यक्तिगत रूप से मामले की जांच की निगरानी करने और तीन महीने के भीतर अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश दिया।

    गौरतलब है कि इसी खंडपीठ में डॉ. जस्टिस एस.के. पाणिग्रही ने हाल ही में संज्ञेय मामलों में एफआईआर दर्ज करने में लगातार निष्क्रियता के लिए पुलिस विभाग की जमकर खिंचाई की थी।

    कोर्ट ने ओडिशा के डीजीपी को अनिवार्य रूप से एफआईआर दर्ज करने के निर्देश जारी किए, ताकि सभी पुलिस थानों में इसे आगे प्रसारित किया जा सके।

    जस्टिस पाणिग्रही ने पुलिस की सुस्ती के एक अन्य मामले में आदेश पारित करते हुए हाल ही में डीजीपी से महिलाओं के खिलाफ हिंसा से जुड़े मामलों में ई-एफआईआर दर्ज करने की संभावनाएं तलाशने को कहा था।

    केस टाइटल: बंधन टोप्पो बनाम ओडिशा राज्य व अन्य।

    केस नंबर: सीआरएलएमपी नंबर 2153/2022

    आदेश दिनांक: 6 दिसंबर, 2022

    कोरम : जस्टिस डॉ. एस.के. पाणिग्रही।

    याचिकाकर्ता के वकील: शिवशंकर मोहंती

    उत्तरदाताओं के वकील: डी. मुंड, अतिरिक्त सरकार वकील

    साइटेशन: लाइवलॉ (मूल) 163/2022

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