'अर्थहीन जनहित याचिका, निजता के संवैधानिक अधिकार को समझने का कोई प्रयास नहीं किया गया': उड़ीसा हाईकोर्ट ने COVID-19 मरीजों के इलाज के सीसीटीवी कवरेज की मांग वाली याचिका खारिज की
LiveLaw News Network
15 Jun 2021 2:45 AM GMT
![अर्थहीन जनहित याचिका, निजता के संवैधानिक अधिकार को समझने का कोई प्रयास नहीं किया गया: उड़ीसा हाईकोर्ट ने COVID-19 मरीजों के इलाज के सीसीटीवी कवरेज की मांग वाली याचिका खारिज की अर्थहीन जनहित याचिका, निजता के संवैधानिक अधिकार को समझने का कोई प्रयास नहीं किया गया: उड़ीसा हाईकोर्ट ने COVID-19 मरीजों के इलाज के सीसीटीवी कवरेज की मांग वाली याचिका खारिज की](https://hindi.livelaw.in/h-upload/images/750x450_orissa-high-court-minjpg.jpg)
Orissa High Court
उड़ीसा हाईकोर्ट ने हाल ही में "कोरोना रोगियों के इलाज को अधिक पारदर्शी और जनता के प्रति जवाबदेह बनाने के लिए" सभी COVID-19 अस्पतालों में सीसीटीवी कैमरे और डिस्प्ले बोर्ड लगाने की मांग करने वाली एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया।
मुख्य न्यायाधीश डॉ. एस. मुरलीधर और न्यायमूर्ति केआर महापात्र की खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता ने उन प्रभावों को ध्यान में नहीं रखा, जो इस तरह के कदम से विभिन्न अस्पतालों में भर्ती मरीजों की निजता पर पड़ सकते हैं।
खंडपीठ ने कहा,
"याचिका केवल एक प्रेस क्लिपिंग के आधार पर दायर की गई प्रतीत होती है, जिसमें आवश्यक तथ्यों को इकट्ठा करने के लिए कोई होमवर्क नहीं किया गया है, जो इस तरह की प्रार्थना की नींव बना सकता है। याचिकाकर्ता और उसके वकील ने इस तरह के निहितार्थ को न तो समझा है और न ही इसकी जांच की है।"
बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा निजता के संवैधानिक अधिकार से संबंधित कानूनी स्थिति को समझने का कोई प्रयास नहीं किया गया है, जैसा कि जस्टिस केएस पुट्टस्वामी (सेवानिवृत्त) बनाम भारत संघ में सुप्रीम कोर्ट के फैसले में बताया गया है।
इसके अलावा, इस तरह के अपर्याप्त शोध, 'अर्थहीन जनहित याचिका' दाखिल करने की प्रथा को हतोत्साहित करते हुए बेंच ने कहा कि भले ही हाईकोर्ट के पास संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत न्याय करने की विशाल शक्तियाँ हैं। फिर भी एक निष्पक्ष और वस्तुनिष्ठ तरीके से जनहित याचिका दायर करने के लिए आगे आने वाले संगठनों की जिम्मेदारी है कि वे तथ्यों को इकट्ठा करें और समस्या के "कानूनी और तथ्यात्मक आयामों की पूरी समझ" के साथ उन्हें अदालत के सामने रखे।
खंडपीठ ने यह भी टिप्पणी की,
"यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कई मौकों पर इस तरह की कवायद किए बिना ऐसी याचिकाओं की प्रतियां मीडिया को सौंप दी जाती हैं, इससे पहले कि उन्हें अदालत के सामने सूचीबद्ध किया जाता है और इसकी जांच की जाती है। याचिका दाखिल करने की ऐसी आधे-अधूरी कवायद क्या हो सकती है इसे 'अर्थहीन' जनहित याचिका कहा जा सकता है, जो इस मुद्दे और संबंधित निर्वाचन क्षेत्र के लिए फायदे से ज्यादा नुकसान पहुंचा सकती है।"
केस शीर्षक: भारतीय विकास परिषद बनाम ओडिशा राज्य और अन्य।
ऑर्डर डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें