(ऑनलाइन क्लासेस) ई-लर्निंग के लिए एसओपी एक प्रगतिशील कदम, इस पर सवाल उठाना राष्ट्रहित के खिलाफ : बाॅम्बे हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
9 July 2020 9:59 PM IST
बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को दिए एक आदेश में एक याचिकाकर्ता के लिए कुछ कठोर शब्द प्रयोग किए थे। इस याचिकाकर्ता ने, महाराष्ट्र सरकार द्वारा अनुमोदित स्कूली छात्रों की ऑनलाइन कक्षाओं के लिए 15 जून को जारी मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) को तर्कहीन कहते हुए चुनौती दी थी।
नागपुर पीठ के न्यायमूर्ति एसबी शुकरे और न्यायमूर्ति एसएम मोदक की पीठ ने इमरान शेख की तरफ से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करने के बाद कहा कि-
''यदि मानक संचालन प्रक्रिया ई-लर्निंग को प्रोत्साहित करती है और उसके बावजूद भी भारत का कोई भी नागरिक इसके इरादों और उद्देश्यों पर सवाल उठाता है तो ऐसा नागरिक केवल अपने देश के हित और भलाई के खिलाफ काम कर रहा है।''
शुरुआत में ही पीठ ने कहा कि-
''याचिका के वर्तमान रूप में याचिकाकर्ता ने जिस तरह की प्रार्थना की है,उसे देखने के बाद प्रथम दृष्टया हमारा मानना है कि याचिका शिक्षा के क्षेत्र में केवल एक प्रतिगामी या पीछे हटने वाले कदम का प्रतिनिधित्व करती है। इस याचिका में 15 जून 2020 को जारी इन मानक संचालन प्रक्रिया में निहित अंतर्विरोधों, दोषों और लकुना को इंगित नहीं किया गया है, ताकि इसको मनमाना,तर्कहीन या अनुचित कहा जा सकें और इसलिए शिक्षा के मौलिक अधिकार के उल्लंघन के आधार पर इस न्यायालय द्वारा इस मामले में हस्तक्षेप किया जा सकें।''
इसके अलावा अदालत ने कहा कि याचिका में उठाए गए सभी मुद्दें मूल रूप से मानक संचालन प्रक्रिया के कार्यान्वयन से संबंधित थे।
पीठ ने कहा कि-
''यदि मानक संचालन प्रक्रिया के कार्यान्वयन में कोई कठिनाइयाँ हैं, तो उन्हें राज्य सरकार द्वारा हल किया जा सकता है और जरूरत पड़ेगी तो केंद्र सरकार भी इसमें सहायता कर देगी,परंतु उनको उचित रूप से इंगित किया जाए। हालाँकि यह देखा गया है कि याचिकाकर्ता ने लकुना या कमियों को दूर कराने के लिए उपयुक्त सरकारों से संपर्क नहीं किया है।
आज हम 21 वीं सदी में हैं, जहां दुनिया को डिजिटल रूप से संचालित किया जा रहा है। इसलिए मानक संचालन प्रक्रिया ,जो ई-लर्निंग को व्यवस्था करती है और सीखने के डिजिटल और आभासी तरीकों को बढ़ावा देती है। ऐसे में सरकार द्वारा उठाया गया यह एक बड़ा प्रगतिशील उपाय है जो राष्ट्र मंडल में भारत की डिजिटल स्थिति को मजबूत व दृ़ढ़ बनाएगा। यदि मानक संचालन प्रक्रिया ई-लर्निंग को प्रोत्साहित करती है और उसके बावजूद भारत का कोई भी नागरिक इसके इरादों और उद्देश्यों पर सवाल उठाता है जो ऐसा नागरिक केवल अपने देश के हित और भलाई के खिलाफ काम कर रहा है।''
हालांकि कोर्ट ने यह भी कहा कि भारत का एक नागरिक मानक संचालन प्रक्रिया के प्रभावी कार्यान्वयन को लेकर कुछ मुद्दों को उठा सकता है, लेकिन इस काम के लिए उसका यह कर्तव्य बनता है कि वह संबंधित प्राधिकरण के समक्ष इनको इंगित करें। ताकि प्राधिकरण द्वारा आवश्यक सुधारात्मक उपाय किए जा सकें।
याचिकाकर्ता के वकील एडवोकेट एसपी बोदालकर ने कहा कि कठिनाई नीति के बाहरी कारकों से है। इस पर पीठ ने कहा कि-
''जब इन कारकों को ठीक किया जा सकता है, तो नीति को दोषपूर्ण या असंवैधानिक नहीं कहा जा सकता है। यह केवल तब हो सकता है जब नीति में निहित दोष या कमियां होती हैं या बाहरी कारक इस तरह की प्रकृति के होते हैं जो अकाट्य या स्थिर होते हैं या ऐसे होते हैं,जिनको दूर नहीं किया जा सकता है। ऐसी स्थिति में ही केवल नीति को निहित दोषपूर्ण बताया जा सकता है और यह कहा जा सकता है कि वह शिक्षा के मौलिक अधिकार को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगी।''
इस प्रकार न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि याचिकाकर्ता के लिए यह बेहतर होगा कि वह मानक संचालन प्रक्रिया के कार्यान्वयन में पाए गए दोषों या कमियों के लिए पहले संबंधित अधिकारियों से संपर्क करे।
पीठ ने यह भी कहा कि-
''निश्चित रूप से ऐसे आवश्यक तथ्यों और प्रमाणों (न केवल संदेह या काल्पनिक तथ्यों के आधार पर) को प्रस्तुत करने के बाद भी अगर याचिकाकर्ता को अधिकारियों से कोई उचित प्रतिक्रिया नहीं मिलती है,जो कानूनी रूप से स्वीकार्य प्रमाण है तो याचिकाकर्ता को कोर्ट के दरवाजे पर दस्तक देने की स्वतंत्रता होगी।''
इसप्रकार जनहित याचिका का निस्तारण कर दिया गया।
बुधवार को कर्नाटक हाईकोर्ट ने सरकार के उस आदेश पर रोक लगा दी थी,जिसके तहत ऑनलाइन कक्षाओं पर प्रतिबंध लगाया गया था। कोर्ट ने माना था कि इस तरह का प्रतिबंध शिक्षा के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करेगा।