बिना किसी आपत्ति के जांच में भाग लेने के बाद जांच समिति की कार्यवाही को चुनौती नहीं दी जा सकती: जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट

Brij Nandan

26 Dec 2022 10:33 AM GMT

  • बिना किसी आपत्ति के जांच में भाग लेने के बाद जांच समिति की कार्यवाही को चुनौती नहीं दी जा सकती: जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि एक व्यक्ति जो बिना किसी आपत्ति के जांच की कार्यवाही में भाग लेता है और बाद में जांच समिति के गठन को चुनौती देता है, यह पता चलने के बाद कि जांच का परिणाम उसके खिलाफ आया है, ऐसा करने का हकदार नहीं है।

    जस्टिस संजय धर ने कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के तहत गठित शिकायत समिति की जांच रिपोर्ट को चुनौती देने वाली एक महिला डॉक्टर की ओर से दायर याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। पूरे मामले के साथ-साथ गवाहों की गवाही और प्रतिवादी के खिलाफ लगाए गए आरोप साबित नहीं हुए थे।

    याचिकाकर्ता ने याचिका के माध्यम से स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग और उसके अधीनस्थ कार्यालयों की महिला कर्मचारियों के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायतों की जांच के लिए शिकायत समिति के गठन को भी चुनौती दी।

    अपनी याचिका में, याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि प्रतिवादी ने स्वास्थ्य सेवा कश्मीर के तत्कालीन निदेशक की हैसियत से उसे कुछ यौन संबंधित टिप्पणी की थी और उसका व्यवहार अत्यधिक "अरुचिकर और अप्रिय" था। यह भी आरोप लगाया गया था कि वह उसे किसी न किसी तरह से प्रताड़ित किया, जिसके परिणामस्वरूप उसने उसके खिलाफ उपराज्यपाल के कार्यालय में शिकायत दर्ज की, जिसके बाद प्रशासन ने जांच के लिए समिति का गठन किया।

    रिकॉर्ड के अवलोकन से पता चला कि बाद में, याचिकाकर्ता की शिकायत का संज्ञान लिया गया और मामला शिकायत समिति को भेजा गया, जिसने जांच करने के बाद निष्कर्ष निकाला कि प्रतिवादी के खिलाफ आरोप साबित नहीं हुए हैं। यह वह रिपोर्ट थी जो पीठ के समक्ष चुनौती का विषय थी।

    मामले पर निर्णय देते हुए जस्टिस धर ने कहा कि एक व्यक्ति जो बिना किसी आपत्ति के जांच की कार्यवाही में भाग लेता है और बाद में जांच समिति के गठन को चुनौती देता है, यह पता चलने के बाद कि जांच का परिणाम उसके खिलाफ आया है, ऐसा करने का हकदार नहीं है।

    पीठ ने कहा कि बिना किसी आपत्ति के जांच की कार्यवाही में भाग लेकर, डॉक्टर ने शिकायत समिति के गठन से सहमति जताई है और उन्होंने समिति के कामकाज या इसके गठन के संबंध में किसी भी स्तर पर कोई विरोध दर्ज नहीं कराया।

    अदालत ने कहा,

    "उन्हें समिति के गठन को चुनौती देने के लिए नहीं सुना जा सकता है, क्योंकि परिणाम उनके खिलाफ हो आया है।"

    अदालत ने इस तथ्य पर ध्यान दिलाया कि रिट याचिका में जारा सा भी जिक्र नहीं किया गया था कि याचिकाकर्ता कार्यवाही में भाग लेने में असहज महसूस कर रही हैं या उसने समिति के गठन के संबंध में कोई आपत्ति जताई है।

    कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने अपने आचरण से शिकायत समिति के गठन को स्वीकार कर लिया है और जांच की कार्यवाही में पूरी तरह से भाग लिया है और इसलिए उसे इस स्तर पर शिकायत समिति के गठन पर सवाल उठाने के लिए नहीं सुना जा सकता है जब जांच का परिणाम उसके खिलाफ आ गया है।

    केस टाइटल: डॉ. आरके बनाम यूटी ऑफ जे एंड के

    साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (जेकेएल) 265

    कोरम: जस्टिस संजय धर

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें:





    Next Story