एक बार जब लेजर बकाया और देय राशि को विधिवत रूप से दर्शाता है तो सीमा की अवधि उसी तिथि से चलेगी: दिल्ली हाईकोर्ट

Avanish Pathak

3 Jun 2022 7:14 AM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि लेज़र/स्‍टेटमेंट के तहत बकाया और देय राशि की पावती, कार्रवाई का एक नया कारण है और सीमा की अवधि को बढ़ाता है।

    जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस जसमीत सिंह की खंडपीठ ने कहा कि सीमा अधिनियम की धारा 18 के तहत बुक ऑफ एकाउंट में बकाया राशि के रूप में दर्शाई गई राशि के लिए सीमा की अवधि ऐसी पावती की तारीख से बढ़ा दी जाएगी।

    कोर्ट ने आगे कहा कि एक पत्र जिसमें एक पार्टी ने स्पष्ट रूप से बकाया और देय राशि को स्वीकार किया है, भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 25 (3) के अर्थ में 'भुगतान करने का वादा' होगा।

    तथ्य

    उत्तर प्रदेश सरकार ने किसानों के लिए विभिन्न सब्सिडी योजनाएं शुरू की थीं। राष्ट्रीय बीज निगम लिमिटेड (अपीलकर्ता), भारत सरकार का एक उपक्रम है, जिसे किसानों 50% सब्सिडी मूल्य पर बीज की आपूर्ति करनी थी। सब्सिडी के शेष 50% उत्तर प्रदेश सरकार से दिए जाते।

    तदनुसार, अपीलकर्ता ने किसान को बीज की आपूर्ति के लिए प्रतिवादी के साथ 24.10.2009 को एक डीलरशिप समझौता किया। प्रतिवादी अनुमोदित किस्मों के प्रमाणित बीजों को रियायती मूल्य पर बेचने के लिए सहमत हो गया था और इसके लिए अपीलकर्ता से व्यापार छूट प्राप्त करना था।

    अनुबंध के खंड 11 के अनुसार, प्रतिवादी को सभी अभिलेखों को एकत्र करना और उनका रखरखाव करना था और उन्हें जिला कृषि विभाग के साथ सत्यापित करने के बाद अपीलकर्ता के क्षेत्रीय कार्यालय में जमा करना था।

    प्रतिवादी को व्यापार छूट के भुगतान को लेकर पक्षों के बीच विवाद उत्पन्न हो गया। तदनुसार, इसने समझौते में मध्यस्थता खंड को लागू किया और विवाद को मध्यस्थता के लिए संदर्भित किया गया।

    मध्यस्थ न्यायाधिकरण ने प्रतिवादी के दावों की अनुमति दी और प्रतिवादी द्वारा दायर किए गए सभी प्रति-दावों को खारिज कर दिया। नतीजतन, अपीलकर्ता ने ए एंड सी एक्ट की धारा 34 के तहत आपत्ति दर्ज की, जिसे एकल पीठ ने 05.01.2022 के एक आदेश के माध्यम से भी खारिज कर दिया। तद्नुसार अपीलार्थी ने आदेश 05.01.2022 के विरूद्ध अधिनियम की धारा 37 के अंतर्गत अपील दायर की।

    अपील का आधार

    अपीलकर्ता ने दिनांक 05.01.2022 के आदेश और मध्यस्थ निर्णय को निम्नलिखित आधारों पर चुनौती दी:

    -प्रतिवादी के दावों को पूर्व-दृष्टया परिसीमन से रोक दिया गया था क्योंकि वे वर्ष 2010-14 के लिए सब्सिडी से संबंधित हैं और दावा का विवरण वर्ष 2018 में दायर किया गया था। जाहिर है, 3 साल की अवधि दावे का बयान दाखिल करने से पहले समाप्त हो गई थी, इसलिए, मध्यस्थ के साथ-साथ एकल न्यायाधीश ने दावों की अनुमति देने में गलती की।

    -अपीलकर्ता ने भुगतान करने के लिए अपने दायित्व को स्वीकार नहीं किया, इसलिए, सीमा की अवधि कभी भी बढ़ाई नहीं गई।

    -व्यापार छूट के लिए प्रतिवादी का अधिकार सरकार द्वारा सब्सिडी राशि के भुगतान पर निर्भर था।

    कोर्ट का विश्लेषण

    न्यायालय ने अपीलकर्ता द्वारा प्रतिवादी को जारी किए गए विभिन्न पत्रों का उल्लेख किया, जिसमें प्रतिवादी ने प्रतिवादी को व्यापार छूट का भुगतान करने के लिए अपनी देयता को स्वीकार किया था। न्यायालय ने माना कि मध्यस्थ न्यायाधिकरण का यह मानना ​​सही था कि उक्त नोटिस भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 25(3) के अनुसार 'भुगतान करने का वादा' है।

    इसके अलावा, न्यायालय ने माना कि मध्यस्थ न्यायाधिकरण सीमा अधिनियम की धारा 18 को लागू करने में सही था, जब अपीलकर्ता ने अपनी एकाउंट/लेज़र में प्रतिवादी को बकाया राशि के रूप में स्वीकार किया है और सीमा की अवधि ऐसी पावती की तारीख से बढ़ा दी जाएगी, इसलिए, प्रतिवादी के दावे सीमा के भीतर थे।

    अदालत ने अपीलकर्ता के इस तर्क को खारिज कर दिया कि व्यापार छूट का भुगतान अपीलकर्ता को सरकार द्वारा सब्सिडी के भुगतान पर निर्भर था क्योंकि समझौते में ऐसा कोई खंड नहीं था जो इस तरह की आकस्मिकता का प्रावधान करता हो।

    इसी के तहत कोर्ट ने अपील खारिज कर दी।

    केस टाइटल: राष्ट्रीय बीज निगम लिमिटेड बनाम राष्ट्रीय कृषि बीज निगम

    साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (दिल्ली) 532

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

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