एक बार जमानत मिलने के बाद, आरोपी को न केवल जांच में शामिल होना होगा बल्कि इसमें भागीदारी भी करनी होगी: दिल्ली हाईकोर्ट

Avanish Pathak

11 Nov 2023 1:57 PM GMT

  • एक बार जमानत मिलने के बाद, आरोपी को न केवल जांच में शामिल होना होगा बल्कि इसमें भागीदारी भी करनी होगी: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि एक बार जमानत मिलने के बाद एक आरोपी से हमेशा न केवल जांच में शामिल होने की उम्मीद की जाती है, बल्कि इसमें भागीदारी की भी अपेक्षा की जाती है, जबकि इस बात पर जोर दिया गया है कि जांच में "शामिल होने" और "भागीदारी" के बीच एक स्पष्ट अंतर है।

    जस्टिस सौरभ बनर्जी ने कहा,

    "हाल ही में एक प्रवृत्ति बढ़ रही है, जिसमें एक आरोपी, अदालत में वकील के जर‌िए बयान देने या कोर्ट की ओर से शर्तें लगाए जाने के बावजूद बिना किसी वास्तविक भागीदारी के केवल कागज पर 'शारीरिक' रूप से जांच में शामिल होने का विकल्प चुनता है।''

    अदालत ने कहा कि यदि आरोपी केवल जांच में शामिल होता है और इसमें भाग नहीं लेता है, तो जमानत और विशेष रूप से अग्रिम जमानत देने का उद्देश्य विफल हो जाएगा।

    जस्टिस बनर्जी ने कहा कि इससे चल रही जांच में बाधा उत्पन्न होगी। अदालत ने बलात्कार के एक मामले में एक सरकारी स्कूल शिक्षक को अग्रिम जमानत देते हुए यह टिप्पणी की।

    मामले में भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 328 (जहर या नशा आदि के माध्यम से चोट पहुंचाना) 376 (बलात्कार) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत अपराध के लिए जून में एफआईआर दर्ज की गई थी।

    शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि उसकी और आरोपी की मुलाकात एक ऑनलाइन डेटिंग एप्लिकेशन पर हुई थी। उसने कहा कि एक दिन जब वह आरोपी के घर गई तो उसने उसके पेय में कुछ मिलाकर उसे नशीला पदार्थ दे दिया जिसके बाद उसने उसके साथ यौन दुराचार किया।

    आरोपी को राहत देते हुए, अदालत ने कहा कि आरोपों की सत्यता परीक्षण का विषय है और शिकायतकर्ता आरोपी के क्रेडिट/डेबिट कार्ड से ई-कॉमर्स वेबसाइटों पर विभिन्न लेनदेन करने में लगी हुई थी।

    कोर्ट ने कहा,

    “आवेदक एक सरकारी स्कूल शिक्षक है, उसकी पत्नी और दो बच्चे हैं। आवेदक का परिवार है इसलिए उसके फरार होने की संभावना न के बराबर है। आवेदक द्वारा शिकायतकर्ता को दी गई किसी भी धमकी की कोई शिकायत नहीं है। आवेदक का इतिहास साफ-सुथरा है और किसी भी प्रकार की शिकायत/एफआईआर में शामिल होने का उसका कोई पिछला इतिहास नहीं है। आवेदक द्वारा सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने और/या गवाहों को प्रभावित करने की शायद ही कोई संभावना है।''

    जस्टिस बनर्जी ने आगे कहा कि आरोपी से हिरासत में पूछताछ की कोई आवश्यकता नहीं है और इस स्तर पर उसे जमानत नहीं देने से समाज में उसकी बदनामी और अपमान हो सकता है।

    अदालत ने कहा, "इसलिए, आवेदक को अग्रिम जमानत के वर्तमान आवेदन की अनुमति देने के लिए संदेह का लाभ देने के लिए इस न्यायालय के पास रिकॉर्ड पर पर्याप्त सामग्रियां हैं।"

    केस टाइटलः विनीत सुरेलिया बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली राज्य

    साइटेशन: 2023 लाइव लॉ (डेल) 1114

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