"अधिकारी सुधारात्मक आवाजों के प्रति असहिष्‍णु होने के दोषी": इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फेसबुक पोस्ट में क्वारंटीन सेंटर के कुप्रंबंधन को उजागर किए जाने के बाद दर्ज एफआईआर को रद्द किया

LiveLaw News Network

15 Nov 2020 5:02 AM GMT

  • अधिकारी सुधारात्मक आवाजों के प्रति असहिष्‍णु होने के दोषी: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फेसबुक पोस्ट में क्वारंटीन सेंटर के कुप्रंबंधन को उजागर किए जाने के बाद दर्ज एफआईआर को रद्द किया

    इलाहबाद हाईकोर्ट ने बुधवार (04 नवंबर) को याचिकाकर्ता उमेश प्रताप स‌िंह के खिलाफ एक फेसबुक पोस्ट के मामलों मे एफआईआर दर्ज किए जाने पर राज्य के अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाई। उमेश प्रताप सिंह ने अपनी फेसबुक पोस्ट में प्रयाग राज‌ जिले में बने एक क्वारंटीन सेंटर के कुप्रबंधन और सुविधाओं की कमी को उजागर किया था।

    जस्टिस पंकज नकवी और जस्टिस विवेक अग्रवाल की खंडपीठ ने एफआईआर को खारिज किया और बहुत ही कड़े शब्दों मे दिए गए आदेश में कहा, "यह एफआईआर स्पष्ट रूप से दुर्भावानागस्त और दुष्‍प्रेरित है, इसे खारिज किया जाना चाहिए और इसे खारिज कर दिया जाता है।"

    कोर्ट ने आगे कहा, "यह स्पष्ट है कि एफआईआर अधिकारियों द्वारा क्वारंटीन सेंटर के प्रबंधन में हुए कुप्रबंधन और अव्यवस्‍थाओं के खिलाफ पैदा हुई असंतोष की आवाज को दबाने के लिए दर्ज की गई है।"

    मामला

    याचिकाकर्ता (उमेश प्रताप सिंह) ने अपने खिलाफ धारा 505 (2) और 501 आईपीसी के प्रावधानों और महामारी (संसोधन) विधेयक, 2020 की धारा 3 (2) के तहत तहत दायर एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी।

    याचिकाकर्ता ने अदालत से अनुरोध किया था कि उत्तरदाताओं-अधिकारियों को निर्देश दिया जाए कि वे उन्हें गिरफ्तारी न करें और परेशान न करें।

    याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि उन्होंने कोटवाबनी में बने क्वारंटीन सेंटर के कुप्रंबधन का मुद्दा फेसबुक पोस्ट में उठाया था, जिसके बाद एफआईआर, डॉ अमृत लाल यादव, अधीक्षक (सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, कोटवा बानी, जिला- प्रयागराज)(उत्तर दाता संख्या 5) ने दर्ज करवाई थी।

    उमेश प्रताप सिंह ने दलील दी ‌थी कि क्वारंटीन सेंटर में कुप्रबंधन और कमियों को उजागर करना आईपीसी की धारा 505 (2) और 501 के तहत अपराध नहीं है।

    उल्लेखनीय रूप से यह दलील दी गई थी कि चीफ जस्टिस ने खुद जनहित याचिका नंबर 574 ऑफ 2020 वाइड ऑर्डर डेटेड 07.05.2020 में क्वारंटीन सेंटर में पर्याप्त हाइजीनिक स्थितियों की कमी और अपर्याप्त उपचार का संज्ञान लिया था।

    इसलिए, यह तर्क दिया गया था कि यदि याचिकाकर्ता ने अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को हुई समस्याओं को उजागर किया था, तो यह मानहानि के दायरे में नहीं आएगा या शत्रुता को बढ़ावा देने या वर्गों के बीच घृणा फैलाने जैसा नहीं है।

    न्यायालय के अवलोकन

    न्यायालय ने देखा, "हमने सराहना की होती, अगर अधिकारियों ने फेसबुक पोस्ट पर ध्यान दिया होता और पोस्ट की सामग्री के विरोध में कुछ सामग्री लाते या कुछ सामग्री लाते, जिसमें यह दिखाया जाता है कि फेसबुक पोस्ट के बाद, उन्होंने क्वारंटीन सेंटर को बेहतर ढंग से प्रबंधित किया...."

    न्यायालय ने आगे कहा, "उत्तरदाताओं ने अपने कार्यों को सही ठहराने की कोशिश की है, जिससे पता चलता है कि राज्य अपने अधिकारियों पर नियंत्रण खो रहा है और वास्तव में, अधिकारी...सुधारवादी आवाज़ों के प्रति असहिष्णुता प्रदर्शित करने के दोषी हैं।"

    अदालत ने डॉ यादव को व्यक्तिगत रूप से अदालत के समक्ष उपस्थित होने के लिए कहा था। हालांकि, अदालत ने उल्लेख किया कि न तो डॉ यादव और न ही एजीए ने अदालत को संतुष्ट किया है कि कैसे "महामारी (संसोधन) विधेयक, 2020 के धारा 3 (2) या धारा 501, 505 (2) आईपीसी के तहत अपराधों है का आरोप लगाया गया है।"

    अंत में, न्यायालय ने प्रतिवादी संख्या 4 और 5 को अपने वेतन से याचिकाकर्ता को 5000 रुपए क्षतिपूर्ति लागत का भुगतान करने का निर्देश दिया, जिसकी प्रतिपूर्ति राज्य सरकार नहीं करेगी।

    केस टाइटल - उमेश प्रताप सिंह बनाम यूपी राज्य और 4 अन्य [2020 की आपराधिक विविध रिट याचिका संख्या - 6691]

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